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छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने को जोगी से हाथ नहीं मिलाएगी कांग्रेस:देव

टीएस सिंह देव ने बताया मुख्यमंत्री उम्मीदवार पर क्या है कांग्रेस की नीति

नीरज गुप्ता
भारत
Updated:
कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव
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कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव
(फोटोः नीरज गुप्ता)

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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है. मुख्यमंत्री रमन सिंह चौथी बार सरकार बनाने का दावा कर रहे हैं, तो वहीं कांग्रेस 15 साल से सत्ता पर काबिज बीजेपी को उखाड़ फेंकने की पूरी कोशिश कर रही है. इस मुकाबले में अजित जोगी और मायावती की जोड़ी भी अपना दम दिखाने को तैयार है.

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों को लेकर सदन के भीतर रमन सिंह सरकार को घेरने वाले नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के कद्दावर नेता टीएस सिंह देव ने क्विंट हिंदी से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की चुनौतियों और कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद की दावेदारी तक तमाम सवालों के बेबाकी के साथ जवाब दिए.

(फोटोः Quint Hindi)

अगर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनी तो क्या मैं ये मानूं कि मैं उनके मुख्यमंत्री उम्मीदवार से बात कर रहा हूं?

सरकार बनने की सूरत में विधायक दल और आलाकमान तय करेगा कि मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी किसे दी जाए. हम ज्वॉइंट लीडरशिप में चुनाव लड़ रहे हैं. आगे भी मिलकर काम करेंगे.

लेकिन क्या आपको नहीं लगता कि अगर कांग्रेस पार्टी पहले से सीएम उम्मीदवार घोषित करती तो फायदा होता. लोगों में बीजेपी से नाराजगी तो दिखती है लेकिन कांग्रेस पार्टी को लेकर वो कंफ्यूज्ड भी दिखते हैं.

मतदाता जागरुक हैं. वो जानते हैं कि किन-किन की संभावना बन सकती है. जहां तक चेहरे की बात है तो कर्नाटक में हमने चेहरा सामने रखा, लेकिन सफलता नहीं मिली. पंजाब में मिली लेकिन हिमाचल में नहीं मिली. यूपी में बीजेपी का चेहरा नहीं था, लेकिन उन्हें 80 फीसदी सीटें मिली. तो कोई फिक्स फॉर्मूला नहीं है.

जनसभा स्थल पर उमड़े लोग(फोटोः नीरज गुप्ता)

छत्तीसगढ़ में पहली बार तिकोना मुकाबला देखने जा रहा है. हालिया सर्वे बता रहे हैं कि अजित जोगी और मायावती का गठबंधन कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाएगा और आपके रास्ते की रुकावट बनेगा.

अजित जोगी प्रचार करते हैं कि अनुसूचित जाति, आदिवासी, सतनामी समाज वगैरह में उनका प्रभाव है और वो आसानी से जीत हासिल कर लेगें. लेकिन 2003 में जिन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए चुनाव की अगुवाई करने का मौका मिला था वहां तो वो कांग्रेस को बहुमत नहीं दिला पाए. जैसै-जैसे जोगी जी का कांग्रेस में प्रभाव कम हुआ है वैसे-वैसे कांग्रेस की स्थिति आदिवासी इलाकों में बेहतर हुई है. वो ट्राइबल का सर्टिफिकेट लेकर राजनीति करते हैं लेकिन सब जानते हैं कि उनके पिता सतनामी थे.

आपका मतलब है कि गठबंधन कांग्रेस के वोट बैंक पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा?

मायावती जी का जहां तक सवाल है तो वो अगर बीजेपी या कांग्रेस से जुड़ती. तो उन्हें फायदा हो सकता था. पिछले चुनावों में उनका वोट शेयर 4.5 से 6 फीसदी तक रहा है, लेकिन ये उनका अपना वोट है. तो वो कहीं और गठबंधन करती हैं तो बीजेपी और कांग्रेस को नुकसान नहीं पहुंचाती. अगर इन पार्टियों से जुड़ती तो फायदा हो सकता था. जोगी जी कांग्रेस में रहकर जो भितरघात करते थे और बीजेपी को फायदा पहुंचाते थे. लेकिन कांग्रेस से जाने के बाद नुकसान पहुंचाने की उनकी क्षमता 25 फीसदी से ज्यादा नहीं रहेगी. कई सीटों पर कांग्रेस को काम जरूर करना पड़ेगा, लेकिन ज्यादा सीटों पर बीजेपी को नुकसान होगा.

जनसभा को संबोधित करते कांग्रेस नेता टीएस सिंह देव(फोटोः नीरज गुप्ता)

त्रिशंकु विधानसभा आने की सूरत में क्या कांग्रेस के दरवाजे चुनाव बाद गठबंधन के लिए खुले हैं?

मैं अपनी तरफ से कह सकता हूं, पार्टी की राय अलग हो सकती है. लेकिन जोगी जी के साथ पोस्ट पोल अलायंस की कोई संभावना नहीं है. उससे बेहतर हम लोगों के पास दोबारा जाना चाहेंगे. जोड़तोड़ की सरकार को सफल नहीं होने देना चाहिए. जिनके साथ मन और सोच नहीं मिलता उनके साथ मिलकर क्या सरकार चलाएंगे. सत्ता लोलुपता के लिए जोगी जी जैसी मानसिकता के लोगों के साथ कभी काम नहीं करना चाहिए. मेरी सोच इसमें स्पष्ट है.

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वो पहले तीन मुद्दे क्या हैं जो आपको लगता है कि वोटर को कांग्रेस पार्टी के लिए वोट करने के लिए उकसाएंगे?

15 साल बहुत हो गए.. बीजेपी के वादे, नीतियां, अधिकारी राज हमने देख लिया. 35 किलो चावल का वादा 7 किलो पर आ गया. मुफ्त बिजली की बात थी लेकिन बिजली बिल बढ़कर आ रहे हैं. बिल पर रमन सिंह जी का मुस्कुराता हुआ चेहरा आता है, लेकिन बिल दोगुने से ज्यादा आता है. ये नेगेटिव परसेप्शन हैं. किसानों के लिए आपने कुछ नहीं किया. चुनाव से पहले डेढ़ सौ रुपये का टिफिन बांटकर आप सोचते हो कि चुनाव जीत लेंगे. मोबाइल फोन जो बांट रहे हो वो गरम होकर फट जा रहा है. लोग कह रहे हैं कि पांच साल की सरकार में आप दो हजार का मोबाइल देकर हमारा वोट चाहते हो, लेकिन अगर हमारे बच्चों को एक महीने की नौकरी दे देते तो वो नौ हजार रुपये पाता. वो चार मोबाइल खरीद लेता. लोगों को तोहफे नहीं डिलिवरी चाहिए. किसान को वादे के मुताबिक न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दे रहे.

मैं बिलासपुर, बेमेतरा, मुंगेली, रायपुर जैसे कई जिलों मे घूमा. लोन माफी जैसे वादों के बावजूद किसानों का कहना है कि सिंचाई की कमी, सूखा जैसी असली समस्याओं पर कोई पार्टी बात करने को तैयार नहीं है.

हमने अपने मेनिफेस्टो में छत्तीसगढ़ की सिंचाई क्षमता पांच साल में दोगुनी करने का वादा किया है. जहां 5 फीसदी से कम सिंचित क्षेत्र है वहां डीप बोरवेल के जरिये पंप से पानी देने की बात कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में कही है. किसान मुझसे भी कहते हैं कि हमें लोन माफी नहीं पानी और वाजिब दाम चाहिए. कांग्रेस ने उनकी भावनाओं को पूरी तरह से घोषणा पत्र में सम्मलित किया है. बीजेपी को रुकना पड़ा कांग्रेस के घोषणा पत्र के लिए और हमारी घोषणाओं के बाद उन्हें हजार रुपये की पेंशन की याद आई.

(फोटोः नीरज गुप्ता)

अमित शाह कहते हैं कि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ को नक्सल मुक्त कर दिया है. नरेंद्र मोदी कहते हैं कि कांग्रेस नक्सलियों से सहानुभूति रखने वाले ‘अर्बन नक्सलियों’ का समर्थन करती है. इसका आपके पास क्या जवाब है?

बीजेपी के दोनों राष्ट्रीय नेता अमित शाह और नरेंद्र मोदी गलत और झूठी बातों को करने से कोई परहेज नहीं करते. इनको सच्चाई से कोई मतलब नहीं. महेंद्र कर्मा की शहादत की भूमि बस्तर में खड़े होकर ये कहते हैं कि कांग्रेस वाले नक्सलियों से मिले हैं. नक्सलियों और बीजेपी सरकार के मिलने का झीरम घाटी से बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है. 30 से ज्यादा लोगों की शहादत हुई. महेंद्र कर्मा, विद्या चरण शुक्ल, नंद कुमार पटेल जैसी कांग्रेस की टॉप लीडरशिप खत्म हो गई. बीजेपी ने सीबीआई और एनआईए से जांच की बात की. एक ज्यूडिशियल कमीशन बिठाया, लेकिन किसी फ्रंट पर कुछ नहीं है. अमित शाह के आने से पहले चार दिन लगातार नक्सली घटनाएं होती हैं. और वो कहते हैं कि नक्सलवाद पर हमने काबू पा लिया. जब छत्तीसगढ़ बना था तो 4-5 हजार फोर्स था बस्तर में. आज 40-50 हजार फोर्स है.

छत्तीसगढ़ में अर्बन नक्सल के नाम पर या नक्सलियों से सहानुभूति रखने के नाम पर पत्रकारों के खिलाफ काफी मुकदमे किए गए जो बाद में झूठे निकले. क्या कांग्रेस के पास पत्रकारों और स्वंससेवी कार्यकर्तांओं को लेकर कोई पॉलिसी है?

घोषणापत्र में इसका स्पष्ट उल्लेख है कि पत्रकार, डॉक्टर और वकीलों के लिए सुरक्षा कानून अलग से लाया जाएगा. जिसे सलाह मशविरे के बाद विधानसभा में जल्द से जल्द प्रस्तुत किया जाएगा.

शराबबंदी की घोषणा क्या महिला वोटरों पर डोरे डालने की कोशिश है?

छत्तीसगढ़ में महिलाओं ने इस पर बड़े पैमाने पर आंदोलन किए. उनका मानना है कि नई पीढ़ी पर शराब का बहुत बुरा असर पड़ रहा है. हम लोग जिस गांव में जाते हैं हर जगह महिलाएं और पुरुष भी इसका विरोध करते हैं. ये काफी जटिल फैसला है. हमने जनता की मंशा का सम्मान करते हुए कठिन फैसला लिया है. पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं पर फैसला छोड़ा गया है.

नक्सलवाद से निपटने के लिए क्या पॉलिसी है?

आमजनों का विश्वास जीतने के लिए हम झूठे मुकदमें बंद करेंगे. अगर सबूत है तो 3-6 महीने में सजा सुनाइये. संविधान के प्रावधानों के तहत वार्ता के दरवाजे खुले रहेंगे. नौकरी, राशन, स्वास्थ्य शिक्षा को नक्सल प्रभावित इलाकों तक पहुंचाने का काम कांग्रेस करेगी. नक्सल प्रभावित पंचायतों के लिए एक करोड़ रुपये की राशि चिन्हित की गई है. पुलिस के अत्याचार बंद होंगे. अगर इसके बाद भी गोली चलेगी तो उसका जवाब बड़े पैमाने पर ताकत और मनोबल के साथ होगा. इस पर समझौता नहीं होगा.

इन सब बातों के बावजूद कांग्रेस पार्टी आखिरी छोर के कार्यकर्ता तक पहुंचने में नाकाम रहती है. हमने गुजरात और कर्नाटक में भी इसे देखा.

व्यक्ति अनुभव से सीखता है. ये उदाहरण हमें सचेत करते हैं. हमने बूथ स्तर पर साथियों को जोड़ने की पहल की है. ऑनलाइन और सोशल मीडिया कनेक्टिविटी बढ़ाई है. शक्ति जैसे प्लेटफॉर्म को लॉन्च किया है. ब्लॉक लेवल पर जिम्मेदारियां दी गई हैं. जहां कमजोरी है वहां नुकसान होगा जिसकी भरपाई की कोशिश कर रहे हैं. जो मैच के दिन बेहतर खेलेगा वही जीतेगा. हम हर सेशन में अच्छे से अच्छा करने की कोशिश कर रहे हैं और हम चाहते हैं कि छत्तीसगढ़ इस 15 साल पुरानी थकी हुई सरकार से छुटकारा पाए और कांग्रेस की काम करने वाली सरकार बने.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 12 Nov 2018,11:12 AM IST

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