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चीन ने एक बार फिर अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया है. इस बार चीनी सेना की स्थापना के 90 साल पूरे होने पर रविवार को मंगोलिया के एक सैन्य अड्डे परेड का आयोजन किया गया. इस दौरान चीन की सैन्य क्षमता को दिखाने के लिए पारंपरिक मिसाइलों, परमाणु मिसाइलों समेत सबसे घातक और विध्वंसक हथियारों का प्रदर्शन किया गया.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने परेड के दौरान खुली जीप में सवार होकर सैन्य बलों का निरीक्षण किया, उन्होंने सैन्य सूट पहन रखा था.
बता दें कि डोकलाम में भारत और चीनी सैनिकों के बीच गतिरोध चल रहा है. चीनी राष्ट्रपति ने अपने भाषण के दौरान इसका जिक्र नहीं किया. लेकिन उन्होंने कहा 'मुझे दृढ विश्वास है कि हमारी वीर सेना में सभी दुश्मनों को मात देने का साहस और क्षमता है.’
इस पूरे आयोजन को चीन की मीडिया ने बड़ी कवरेज दी है, जिसका मकसद भारत को चेतावनी देना भी दिख रहा है.
एक ऐसा देश जो साम्यवाद से बढ़कर राज्य समर्थित पूंजीवाद की ओर बढ़ चुका है और जहां कारोबार की अहमियत किसी भी दूसरे चीज से ज्यादा है वो भारत जैसे विशाल 'बाजार' को खो देना चाहेगा ? इस बात का जवाब चीन और भारत के बीच कारोबार से समझा जा सकता है.
पिछले कुछ सालों में चीन भारत में सबसे बड़े कारोबारी साझेदार के तौर पर उभरा है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के मामले में साल 2011 में चीन जहां 35वें स्थान पर था, वहीं अब वो 17वें स्थान पर आ गया है. साल 2011 में भारत में कुल चीनी निवेश 102 मिलियन डॉलर था.
पिछले साल 1 बिलियन डॉलर का चीनी एफडीआई का रिकॉर्ड दर्ज किया गया. मार्केट एनालिस्ट इस आंकड़े को 2 बिलियन डॉलर से भी अधिक का आंकते है.
कुल द्विपक्षीय कारोबार-
ऐसा भी नहीं है कि लगातार बढ़ते चीनी निवेश के दौरान भारत-चीन के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हों, सीमा विवाद, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे को लेकर दोनों देशों में तनातनी रही लेकिन तब भी चीनी FDI में बढ़ोतरी देखने को मिली है.
इससे जाहिर है कि चीन भी भारत को एक बड़े बाजार के तौर पर देख रहा है. सीधे युद्ध के मैदान में उतरकर वो इस बाजार को खोना नहीं चाहेगा.
इंडिया स्पेंड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) और एवलोन कंसल्टिंग ने 2015-16 में अपनी संयुक्त रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि चीन में श्रम लागत भारत के मुकाबले 1.5 से तीन गुणा अधिक है.
रिपोर्ट के मुताबिक कई हल्के इंजीनियरिंग संबंधी उद्योगों में चीन भारत के ‘मुकाबले पिछड़’ रहा है, ऐसे में उत्पादन लागत में लगातार बढ़ोतरी के कारण भी चीनी निवेशक भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं.
भारत-चीन के बीच संभावित अटकलों का सबसे बड़ा खामियाजा भारत में पैर पसार रही चीनी कंपनियों को उठाना पड़ सकता है.
इंटरनेशनल डेटा कॉरपोरेशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल की पहली तिमाही में मोबाइल (हैंडसेट) सेक्टर में 51.4 फीसदी मार्केट शेयर चीनी कंपनियों का है.
ऐसे में चीनी मोबाइल कंपनियों का बढ़ते मार्केट पर ये संभावित युद्ध ग्रहण बन सकता है. ऐसा चीन कभी नहीं चाहेगा.
सिर्फ इतना ही नहीं डिजिटल इंडिया मुहिम और नोटबंदी के दौरान तेजी से उभरी भारतीय की सबसे बड़ी डिजिटल पेमेंट कंपनी पेटीएम का 40 फीसदी का स्वामित्व चीनी ई-कॉमर्स फर्म अलीबाबा और सहयोगी कंपनियों का है और कथित तौर पर अलीबाबा अपनी हिस्सेदारी बढ़ा कर 62 फीसदी कर रही है. ये तमाम कारोबारी वजहें हैं जिसके कारण चीन भारत के साथ युद्ध नहीं करना चाहेगा.
(डेटा सोर्स: इंडिया स्पेंड)
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