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कलाकार का बायकॉटः मंदिर में ईसाई होने की वजह से, चर्च में मंदिर जाने की वजह से

वह मंदिर में प्रस्तुति नहीं देंगी क्योंकि वह खुद को हिंदू प्रमाणित नहीं कर सकतीं. वह एक ईसाई हैं- सौम्या सुकुमारन

निखिला हेनरी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>ईसाई नर्तकी को मंदिर में प्रस्तुति देने से रोका गया, चर्च ने भी किया बॉयकॉट</p></div>
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ईसाई नर्तकी को मंदिर में प्रस्तुति देने से रोका गया, चर्च ने भी किया बॉयकॉट

फोटो- क्विंट

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40 साल की भरतनाट्यम (Bharatnatyam) डांसर सौम्या सुकुमारन को हिंदू न होने के कारण कूडलमाणिक्यम मंदिर उत्सव में परफॉर्मेंस करने से रोका गया. ये ऐसी दूसरी गैर-हिंदू भरतनाट्यम डांसर जिसे परफॉर्म करने से रोका गया हो.

इसके अलावा तिरुवनंतपुरम का एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर- श्री पद्मनाभ स्वामी क्षेत्रम में उनसे अनुरोध किया गया कि या तो खुद को हिंदू के रूप में प्रमाणित करें या प्रस्तुति ना दें. सौम्या की प्रस्तुति 13 अप्रेल को तय की गई थी.

सौम्या ने कहा कि वह मंदिर में प्रस्तुति नहीं देंगी क्योंकि वह खुद को हिंदू प्रमाणित नहीं कर सकतीं. वह एक ईसाई हैं.

सौम्या ने द क्विंट को बताया, “मैंने पहले पद्मनाभ स्वामी मंदिर में प्रस्तुति दी है. तब कोई समस्या नहीं थी. कूडलमाणिक्यम मंदिर के अधिकारियों द्वारा गैर-हिंदू होने के कारण मुझे प्रतिबंधित करने के बाद इस मंदिर ने मुझे अपनी निर्धारित प्रस्तुति छोड़ने के लिए कहा.

सौम्या कलांजलि फॉर आर्ट्स की संस्थापक-निदेशक हैं, जो तिरुवनंतपुरम में स्थित एक परफॉर्मेंस का स्कूल है.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब सौम्या को इस तरह के बायकॉट का सामना करना पड़ा है. उन्होंने कहा कि उन्हें रोमन कैथोलिक संप्रदाय मलंकारा ऑर्थोडॉक्स चर्च के धार्मिक संस्कार प्राप्त करने की अनुमति भी नहीं है.

फोटो- सौम्या सुकुमारन/फेसबुक

चर्च ने किया सौम्या का बहिष्कार 

सौम्या बचपन से ही भरतनाट्यम और मोहिनीअट्टम दोनों का प्रशिक्षण ले रही हैं. चूंकि वह एक ईसाई परिवार में पैदा हुई थी, उसे चर्च के अधिकारियों ने "मूर्ति पूजा में शामिल न होने" के लिए कहा था. शास्त्रीय नृत्य में हिंदू देवताओं की पूजा की जाती है. इससे चर्च को समस्या थी.

“एक हद तक चर्च ने जो कहा वह सही था क्योंकि मूर्ति पूजा तो होती है. लेकिन कला की कोई सीमा नहीं होती."

हालांकि सौम्या ने डांस करना नहीं छोड़ा. शादी के बाद जब वह दुबई के लिए रवाना हुई, तो वह सालाना परफॉर्म करती रही. उन्होंने कहा, "मैं दुबई मलयाली एसोसिएशन के स्टेड पर प्रस्तुति देने लगी."

फिर धीरे-धीरे डांस कम होने लगा क्योंकि तीन बच्चों की मां सौम्या को लगभग दस सालों तक अपने घर में रहना पड़ा.

फोटो- सौम्या सुकुमारन/फेसबुक

सौम्या ने बाद में सात साल पहले केरल लौटने पर नृत्य को और अधिक उत्साह से अपनाया.

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उन्होंने कहा, "पिछले सात सालों से मैं मंदिरों में और दूसरे स्टेज पर भी प्रस्तुति दे रही हूं."

उन्होंने आगे कहा, "मुझे चिंता है कि अगर मेरे बच्चे बड़े होकर ईसाई धर्म अपनाना चाहते हैं तो उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. उनके पति सहित उनके परिवार के सदस्य, जो एक ईसाई हैं, को अब तक चर्च के साथ किसी भी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है. “चर्च ने मेरे परिवार में दूसरों का बहिष्कार नहीं किया है. केवल मुझे बहिष्कृत किया गया है. मैं भी अक्सर चर्च नहीं जाती हूं."

बता दें कि केरल की एक अन्य नर्तकी वीपी मानसिया- जो एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुई थीं, उन्हें भी मस्जिदों और मंदिरों दोनों से बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. मानसिया को भी गैर-हिंदू होने के कारण कूडलमाणिक्यम मंदिर उत्सव में प्रस्तुति करने से रोक दिया गया था.

सौम्या ने कहा कि मंदिर द्वारा मानसिया और मुझे बेन करने से हम प्रभावित तो हुए ही हैं, लेकिन इसके अलावा भी हमें कई भेदभाव का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि उम्र के आधार पर, त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव से शास्त्रीय नर्तकियां प्रभावित होती हैं.

उन्होंने कहा, "उदाहरण के लिए, उनके नृत्य विद्यालय में नृत्य कार्यक्रम के आयोजक 18 से 25 साल के आयु वर्ग की युवा महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं."

फोटो- सौम्या सुकुमारन/फेसबुक

सौम्या ने बताया कि, "सांवले रंग की त्वचा वाली महिलाओं को पसंद नहीं किया जाता है क्योंकि कार्यक्रम के आयोजक चाहते हैं कि गोरी महिलाए प्रस्तुति दें.

वो कहती हैं, "जैसा कि वे युवा महिलाओं की तलाश में हैं, मेरे पास युवा दिखने का यह अतिरिक्त बोझ है. शास्त्रीय कलाकारों को प्रस्तुति के लिए और अधिक "धर्मनिरपेक्ष स्टेज" होने चाहिए.

सौम्या सवाल करती हैं, "मैं केवल एक धर्म से संबंधित नहीं हूं. मुझे लगता है कि मैंने वह सब लिया है जो तीनों धर्मों में अच्छा है- ईसाई धर्म, इस्लाम और हिंदू धर्म. मुझे धर्मनिरपेक्ष स्थानों पर प्रस्तुति देने का मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए?"

फोटो- सौम्या सुकुमारन/फेसबुक

सौम्या ने कहा, "मुझे लगता है, चूंकि शास्त्रीय नृत्य हिंदू परंपरा में निहित है, इसलिए कुछ हिंदू धार्मिक प्रथाओं को भी आत्मसात किया जाता है. मुझे इससे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई क्योंकि मुझे डांस बहुत पसंद है. मुझे चिंता है कि मैं आगे और भी मंदिरों में प्रस्तुति नहीं दे सकूंगी."

केरल के मंदिर (जो राज्य के अंतर्गत आते हैं) ने सर्वसम्मति से गैर-हिंदू कलाकारों पर प्रतिबंध नहीं लगाया है.

मानसिया भी शास्त्रीय कलाकारों के लिए धर्मनिरपेक्ष मंच की मांग करती रही हैं. सौम्या ने कहा, 'राजनीतिक दलों को यह मांग उठानी चाहिए, जो मानसिया और मेरी तरफ से आई है. विभिन्न धर्मों के लोगों को शास्त्रीय नृत्य करने से प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिए.”

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