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कोई भी राज्य नागरिकता कानून को लागू करने से इनकार नहीं कर सकता है. राज्यों को इस कानून को रोकने का अधिकार नहीं है.
सरकारी सूत्रों के मुताबिक सिटिजनशिप का मुद्दा संविधान की 7वीं अनुसूची में आता है. इसलिए सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट को लागू करने से कोई राज्य इनकार नहीं कर सकता है. इससे पहले कुछ राज्यों ने इस कानून को लागू नहीं करने की बात कही थी.
ये खबर पांच राज्य सरकार की ओर से दिए गए उस बयान के बाद आई है, जिसमें उन्होंने कहा था कि सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट को वह अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगे. केरल, पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल कुछ ऐसे राज्य हैं जहां की सरकारों ने कहा है कि ये कानून लागू नहीं होगा.
केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने एक ट्वीट में कहा, "धर्म के आधार पर नागरिकता तय करने का ये कदम संविधान के खिलाफ है."
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संशोधित नागरिकता कानून को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘‘वह किसी भी सूरत’’ में इसे राज्य में लागू नहीं होने देंगी. बनर्जी ने कहा कि बीजेपी कानून को लागू करने के लिए राज्यों को बाध्य नहीं कर सकती.
ममता बनर्जी ने इस मुद्दे को लेकर असम और पूर्वोत्तर में हो रहे हिंसक प्रदर्शनों के बीच वहां के लोगों के प्रति एकजुटता जतायी. क्षेत्र में तनाव बढ़ने और कानून व्यवस्था की खराब होती स्थिति के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल अब कानून बन चुका है. लेकिन इस कानून को लेकर देशभर में प्रदर्शन जारी है. दिल्ली से लेकर असम तक हंगामा जारी है. असम की तरह अब दिल्ली में भी छात्र संगठनों ने सीएबी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. दिल्ली की जामिया मिल्लिया यूनिवर्सिटी के छात्रों ने पार्लियामेंट मार्च का आह्वाहन किया, लेकिन इस दौरान कई छात्रों पर पुलिस ने जमकर लाठीचार्ज किया.
ये कानून सिटिजनशिप एक्ट, 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. सिटिजनशिप एक्ट, 1955 के तहत कोई भी ऐसा व्यक्ति भारतीय नागरिकता हासिल कर सकता है जो भारत में जन्मा हो या जिसके माता/पिता भारतीय हों या फिर वह एक तय समय के लिए भारत में रहा हो. एक्ट में नागरिकता देने के और भी प्रावधान हैं. हालांकि यह एक्ट अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने से रोकता है.
नागरिकता संशोधन कानून 2019, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए 6 धर्म (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) के लोगों को इस प्रावधान में ढील देने की बात करता है. इस ढील के तहत 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई (इन धर्मों के अवैध प्रवासी तक) के लिए 11 साल वाली शर्त 5 साल कर दी गई है.
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