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अदालतों में करोड़ों केस लंबित हैं, जिससे इंसाफ की आस में लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ता है. लेकिन नए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने अदालतों में लंबित मामलों को जल्द से जल्द निपटाने और इंसाफ की आस लगाए लोगों को जल्द से जल्द न्याय दिलाने के लिए कुछ अहम फैसले लिए हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा है कि वर्किंग डे के दौरान कोई भी जज या न्यायिक अधिकारी आपात स्थिति को छोड़कर छुट्टी न लें.
सीजेआई गोगोई ने कहा है कि हाई कोर्ट के किसी भी जज या निचली अदालत के किसी भी न्यायिक अधिकारी की आपात स्थिति को छोड़कर वर्किंग डे में कोई छुट्टी मंजूर न की जाए. गोगोई ने कहा है कि जज वर्किंग डे पर किसी भी तरह के सेमिनार और आधिकारिक कार्यक्रमों से दूर रहें, क्योंकि इस वजह से सुनवाई के दौरान सामने आने वाले मुकदमों का वक्त बर्बाद होता है.
सीजेआई गोगोई ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को उन जजों को न्यायिक कार्य से हटाने का निर्देश दिया है, जो अदालती कार्यवाही के दौरान नियमित नहीं हैं.
उन्होंने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को उन जजों के बारे में जानकारी देने को कहा है, जो काम के दौरान अनुशासन की अवहेलना कर रहे हैं. उन्होंने कहा है कि कि सुप्रीम कोर्ट ऐसे जजों से व्यक्तिगत तौर पर मुलाकात करेगा.
सीजेआई ने वर्किंग डे के दौरान जजों के एलटीसी लेने पर भी रोक लगाई है. सीजेआई के इस आदेश के बाद जजों को अपने पारिवारिक अवकाश को पहले से प्लान करना होगा. इसके अलावा उन्हें दूसरे जजों और चीफ जस्टिस के साथ भी छुट्टियों की उपलब्धता को लेकर सामंजस्य बनाना होगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को एक साल में तीन एलटीसी मिलती है.
इससे पहले साल 2013-14 में सीजेआई पी. सदाशिवम ने अपने साथी जजों को कोर्ट के वर्किंग डे के दौरान विदेश दौरे न करने की सलाह दी थी.
सीजेआई रंजन गोगोई ने पद संभालते ही कहा था कि वे न्याय व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए एक सिस्टम विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों को संबोधित करते हुए जस्टिस गोगोई ने कहा था-
सीजेआई ने हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ जजों से न्यायपालिका में बड़े पैमाने पर खाली पदों को भरने के लिए तत्काल कदम उठाने को कहा है. सीजेआई गोगोई ने कहा है कि निचली अदालतों में केस के तेजी से निपटारे के लिए नियमित मॉनिटरिंग की जरूरत है.
बता दें देश की निचली अदालतों में करीब 2.6 करोड़ मामले लंबित हैं.
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