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स्वामी विवेकानंद ने धर्मनिरपेक्षता की वकालत की, उनकी शिक्षा आज भी प्रासंगिक- CJI

युवा पीढ़ी को स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को अपनाना चाहिए - CJI NV Ramana

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>CJI NV Ramana </p></div>
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CJI NV Ramana

(फोटो: कामरान अख्तर/क्विंट)

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भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना (CJI N V Ramana) ने वर्तमान और भविष्य में भी स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) की शिक्षाओं की प्रासंगिकता पर जोर दिया है. उनके अनुसार स्वामी विवेकानंद ने धर्मनिरपेक्षता की वकालत की, अर्थहीन और सांप्रदायिक संघर्षों से उत्पन्न खतरों का विश्लेषण किया और माना कि धर्म का सही मतलब सबका हित है.

CJI एनवी रमना ने यह बात 12 सितंबर को विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन एक्सीलेंस, हैदराबाद के 22वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान कही.

उन्होंने कहा कि “स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन (1893 के विश्व धर्म संसद, शिकागो) में सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति के विचार का प्रचार किया. उन्होंने समाज में राष्ट्रों और सभ्यताओं के लिए अर्थहीन और सांप्रदायिक संघर्षों से उत्पन्न खतरों का विश्लेषण किया.”

“समय से आगे धर्मनिरपेक्षता की वकालत की” - CJI एनवी रमना

यह बताते हुए कि समकालीन भारत में भी 1893 में स्वामी विवेकानंद द्वारा दिए गए विचारों पर ध्यान देने की अधिक आवश्यकता है , CJI एनवी रमना ने कहा कि,

"वह भविष्यवक्ता थे. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उपमहाद्वीप में हुए दर्दनाक मंथन से बहुत पहले, जिसके परिणामस्वरूप भारत में एक समानतावादी संविधान का निर्माण हुआ, उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की वकालत की. जैसे उन्होंने आगे होने वाली घटनाओं की भविष्यवाणी की हो. उनका दृढ़ विश्वास था कि धर्म का असली सार सबके हित और सहिष्णुता है. धर्म को अंधविश्वास और कठोरता से ऊपर होना चाहिए."
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स्वामी जी ने प्रैक्टिकल वेदांत को लोकप्रिय बनाया- CJI एनवी रमना

उन्होंने आगे कहा कि विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद की भागीदारी ने "भारत को एक सम्मानजनक मान्यता दी, जिसे उस समय केवल एक उपनिवेश के रूप में पहचाना जाता था.

“ उनके संबोधन ने वेदांत के प्राचीन भारतीय दर्शन की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने प्रैक्टिकल वेदांत को लोकप्रिय बनाया क्योंकि यह प्रेम, करुणा और सभी के लिए समान सम्मान का उपदेश देता है”.

CJI एनवी रमना ने इस बात पर जोर दिया कि आज के युवा पीढ़ी को स्वामी विवेकानंद के आदर्शों को अपनाना चाहिए.

“युवा दिमाग आमतौर पर सबसे अधिक विचारशील होते हैं तथा युवा दिल सबसे अधिक प्रतिक्रियाशील. महानता प्राप्त करने के लिए इन भावनाओं का इस्तेमाल जा सकता है, लेकिन इस रास्ते में सबसे बड़ी चुनौती सही और गलत के बीच अंतर करने की क्षमता है."

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