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चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में 15 नवंबर उनका आखिरी कामकाजी दिन था. सीजेआई गोगोई को वैसे तो कई फैसलों के लिए याद किया जाएगा, लेकिन अयोध्या मामले पर फैसला उनके सबसे बड़े फैसलों में गिना जाएगा.
देश की शीर्ष अदालत के अस्तित्व में आने के पहले से चल रहे इस राजनीतिक और धार्मिक रूप से संवेदनशील मुद्दे पर गोगोई की अगुवाई वाली बेंच का फैसला एक नजीर के तौर पर देखा जाएगा.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की स्थापना 1950 में हुई थी, जबकि अयोध्या मामला पहली बार 1885 में कोर्ट पहुंचा था. अपनी स्पष्टवादिता, मुखरता और निडरता के लिए प्रसिद्ध गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की संविधान बेंच ने अध्योध्या मामले पर 40 दिन लंबी सुनवाई की. केशवानंद भारती केस (68 दिन) के बाद सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह दूसरी सबसे लंबी सुनवाई थी. इस दौरान देश के सर्वश्रेष्ठ वकीलों ने अपनी दलीलों के माध्यम से जस्टिस गोगोई के धैर्य की खूब परीक्षा ली थी.
जस्टिस गोगोई को कठोर और कभी-कभी चकित करने वाले फैसले लेने के लिए जाना जाता है. अयोध्या मामले के फैसले में यह दोनों ही बातें नजर आईं. उन्होंने ना सिर्फ दलीलों को बेवजह लंबा खिंचने से रोका बल्कि ‘‘बस अब बहुत हो गया’ कह कर पूरे मामले की सुनवाई तय तारीख (18 अक्टूबर) से दो दिन पहले 16 अक्टूबर को ही पूरी कर ली.
लोगों को चकित करने का अपना अंदाज बनाए रखते हुए गोगोई ने 8 नवंबर की रात कहा कि अयोध्या मामले में फैसला 9 नवंबर को सुबह साढ़े दस बजे सुनाया जाएगा, जबकि सभी अटकलें लगा रहे थे कि जस्टिस गोगोई अपना कार्यकाल खत्म होने से 2-3 दिन पहले यह फैसला सुनाएंगे.
अयोध्या जैसे विवादित मसले की सुनवाई करने के अलावा जस्टिस गोगोई के नेतृत्व वाली बेंच ने असम में एनआरसी की निगरानी की और सुनिश्चित किया कि वो तय समयसीमा में पूरी हो जाए.
सीजेआई गोगोई की अगुवाई वाली बेंच ने ही दिल्ली हाई कोर्ट के 2010 के उस फैसले को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि सीजेआई का ऑफिस सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के दायरे में आता है.
बतौर जज गोगोई ने 12 जनवरी, 2018 को तत्कालीन सीजेआई दीपक मिश्रा की कार्यशैली के खिलाफ कोर्ट के तीन अन्य वरिष्ठ जजों के साथ मिलकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में यह एक बड़ी घटना थी.
बाद में उन्होंने एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान कहा था
उसी कार्यक्रम में उन्होंने कहा था कि न्यायपालिका की संस्था आम लोगों की सेवा करते रहे इसके लिए ‘‘सुधार नहीं बल्कि क्रांति की जरूरत है.’’
बात अगर प्रशासन की करें तो बतौर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई ने गलती करने वाले कुछ जजों के खिलाफ कठोर फैसले लिए, उनके तबादले किए. यहां तक कि इस दौरान हाई कोर्ट की एक महिला मुख्य न्यायाधीश को इस्तीफा भी देना पड़ा.
जस्टिस गोगोई ने बतौर जज उस बेंच की भी अध्यक्षता की थी, जिसने कोर्ट के पूर्व जज मार्कंडेय काटजू के ब्लॉग पर टिप्पणियों को लेकर उनके खिलाफ चल रही अवमानना की कार्रवाई पर उनकी माफी सुनी, स्वीकार की और मुकदमे को बंद किया.
वह 28 फरवरी 2001 को गुवाहाटी हाई कोर्ट के स्थाई जज नियुक्त हुए थे. 9 सितंबर, 2010 को पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में उनका ट्रांसफर हो गया था. अगले साल 12 फरवरी, 2011 को उन्हें इस हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया. वह 23 अप्रैल, 2012 को प्रमोशन पाकर सुप्रीम कोर्ट के जज बने थे.
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