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छत्तीसगढ़ के तमनार विकासखंड मुख्यालय में गांव-गांव से लोग हाथ में कोयला लेकर आ रहे थे. "हमार कोयला हमार हक" जैसे नारे एक साथ गूंज रहे थे. क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग सभी के हाथों में कोयले की डली थी. कुछ लोग कांवर में कोयला ढो रहे थे और एक जगह पर एकत्रित करने के बाद गांव में ही उसे नीलाम कर रहे थे. देश में बड़ी कंपनियां कोयला जमीन से निकालती हैं और उसे बेचती हैं, लेकिन ग्रमाणों द्वारा कोयले को अपनी जमीन से निकालकर बेचना इसी कोयले कानून को तोड़ना है. शुरुआत में इसे तव्वजो नहीं मिली, लेकिन आज देश-विदेश में इस अनोखे विरोध प्रदर्शन की गूंज है.
एक दशक से अधिक समय से हर साल 2 अक्टूबर को रायगढ़ जिले की चार तहसील- रायगढ़, तमनार, धर्मजयगढ़ और घरघोड़ा के लगभग 55 गांवों में 'कोयला सत्याग्रह' आयोजित होता है. लोग अपने-अपने गांवों से कोयला कानून तोड़कर यहां आते हैं और सामूहिक रूप से इस सत्याग्रह में शामिल होते हैं.
ग्रामीण किसी भी स्थिति, शर्त और मुआवजे पर अपनी जमीन देना नहीं चाहते हैं. इसलिए 2008 में हुई फर्जी जनसुनवाई में पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज के बाद ज्यादा सतर्क हो गए हैं. उसी समय से वे इन बातों के लिए सड़क पर लड़ते और आंदोलन करते हुए इस फैसले पर पहुंचे हैं कि जब जमीन हमारी है, तो उस पर प्राप्त संसाधन पर भी मालिकाना हक हमारा होना चाहिए.
इस बड़े आयोजन में हर किसी को अपना सुझाव देने के लिए मंच मिलता है, ताकि गांववासियों की बात सरकार तक पहुंच सके. ये पूरा कार्यक्रम सामूहिक व्यवस्था से ही आयोजित होता है, जिसमें हर घर से बीस रुपये की सहयोग राशि और एक ताम्बी चावल (एक ताम्बी मतलब 2 किलोग्राम) लेते हैं और इकट्ठे हुए पैसे से सब्जी आदि बनाने की व्यवस्था की जाती है. हजारों आदमी यहां खाना खाते हैं और कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं. बनाने और खिलाने की जिम्मेदारी भी गांववासियों की होती है. इस बार तीन राज्यों तमिलनाडु, ओडिशा और झारखंड, दो जिलों और 55 गांव के हजारों लोग इस आंदोलन में शामिल हुए.
बात 5 जनवरी 2008 की है, जब गारे 4/6 कोयला खदान की जनसुनवाई गारे और खम्हरिया गांव के पास के जंगल में की गई. ग्रामीणों ने जनसुनवाई के विरुद्ध एक याचिका हाईकोर्ट में लगाई और एनजीटी (National Green Tribunal) ने ग्रामीणों के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन सड़क पर विरोध-प्रदर्शन जारी रहा, जिसमें धरने, रैलियां और पदयात्राएं चलती रहीं. गांव-गांव में बैठकों का दौर चलता रहा.
25 सितंबर 2011 को ग्रामीणों ने अपनी बैठक में फैसला किया कि अगर देश के विकास के लिए कोयला जरूरी है, तो क्यों न हम कंपनी बनाकर स्वयं कोयला निकालें. इसके बाद सभी तकनीकी पहलुओं पर बातचीत की गई. गांव में सभी लोगों ने गारे ताप उपक्रम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड का गठन किया.
कोयला सत्याग्रह के संस्थापकों में से एक डॉ हरिहर पटेल ने बताया, "हम लोगों ने 'जमीन हमारी, संसाधन हमारा' के आधार पर खुद ही कोयला निकालने के लिए एक कंपनी 'गारे ताप उपक्रम प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड' बनाई, जिसमें गारे और सरईटोला गांव की 700 एकड़ जमीन का एग्रीमेंट भी करवा लिए हैं. इसके बाद गांव वाले लगातार अपनी जमीन से कोयला निकालना शुरू कर दिए हैं."
उरवा गांव की रहने वाली 38 वर्षीय कौशल्या चौहान ने बताया, "कोयला सत्याग्रह में पहले भी 4-5 बार शामिल हुई हूं. बारह साल से होने वाले इस सत्याग्रह के माध्यम से कोई खास बदलाव नहीं हुआ है, सिवाय गांववासियों के जागरूक होने के. इस आयोजन की तैयारी के पहले लगातार बैठकें, रैलियां होती रही हैं, जिससे हम ग्रामवासी अपने जल, जंगल और जमीन के बारे में समझ पाए. हम लोग अपनी जमीन नहीं देंगे. जंगल का क्षेत्र होने के कारण पान-महुआ बीनते हैं, कहां जायेंगे हम लोग? यहां इतने गांव हैं. सब आपस में मिल-जुलकर रहते हैं. पुनर्वास में सरकार जमीन कहां और कितना देगी क्या पता?"
जनचेजना मंच के राजेश त्रिपाठी बताते हैं, "आदिवासी ऐसा विकास नहीं चाहते हैं, जिसके कारण उनकी जमीनें और खेत उनके हाथ से निकल जाए. आदिवासियों को इतनी लंबी लड़ाई लड़ते हुए ये तो समझ आ गया है कि हमारा छतीसगढ़ पांचवीं अनुसूची में आता है. पेसा कानून (PESA Act) लागू है और ग्रामसभा की अनुमति के बिना कोई भी खनन कार्य अवैध होगा. कंपनी 8 लाख और 6 लाख मुआवजा देने को तैयार है, लेकिन गांववाले मुआवजा लेना ही नहीं चाहते."
उन्होंने आगे कहा, "तमनार में पूंजी के अनेक खिलाड़ी बरसों से मैदान में हैं. वो आवश्यकतानुसार हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. उनके लिए किसी गांव को उजाड़ना बहुत मुश्किल नहीं है, क्योंकि सत्ता की सारी मशीनरी उनके साथ है. लोगों के बीच लालच और महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देकर वो संघर्ष के अलग-अलग केंद्र भी बना और लंबे समय तक उसे चला सकते हैं. कोयले की कालिमा केवल पेड़ों, तालाबों और घरों पर नहीं फैली है, बल्कि दिलों और दिमागों में भी भरती जा रही है."
बीते साल राज्यपाल अनुसुइया उइके ने भूमि अधिग्रहण को लेकर राज्य सरकार को सुझाव दिया था कि खनिजों और गौण खनिजों के लिए सरकार द्वारा अनुसूचित जनजातियों की भूमि अधिग्रहित की जाती है, तो इससे प्राप्त होने वाली रॉयल्टी का एक निश्चित हिस्सा उन्हें मिले. गौण खनिज से होने वाले फायदे का एक तय हिस्सा शेयरहोल्डर के रूप में भूमिस्वामी को मिलता रहे. मुख्मंत्री को लिखे पत्र में उन्होंने पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों के हवाले से कहा कि अनूचित जनजाति के भूमिस्वामी को एक बार मुआवजा देने के बजाए ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे उनको मासिक या वार्षिक आमदमी होती रहे.
कोयला सत्याग्रह पर तमनार क्षेत्र के अनुविभागीय दंडाधिकारी रोहित सिंह का कहना है कि 2 दिन पहले ही उन्होंने चार्ज लिया है. तहसीलदार को कोयला सत्याग्रह में आने का निमंत्रण दिया गया था. जानकारी के मुताबिक, ग्रामीण पिछले 12 साल से हर साल 2 अक्टूबर को कोयला सत्याग्रह का आयोजन करते हैं. वहीं, तमनार थाना प्रभारी उप निरीक्षक जेपी बंजारे का कहना है कि ग्रामीणों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपना विरोध प्रदर्शन किया, जो वह लगातार करते आ रहे हैं.
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