Home News India कोबरापोस्ट स्टिंग: ‘मीडिया के उतरे नकाब से नेता ढकेंगे चेहरा’
कोबरापोस्ट स्टिंग: ‘मीडिया के उतरे नकाब से नेता ढकेंगे चेहरा’
मीडिया के लिए क्या है खतरनाक संकेत
क्विंट हिंदी
भारत
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कोबरा पोस्ट ने स्टिंग ऑपरेशन के जरिए मीडिया संस्थानों के भ्रष्टाचार के खुलासे का दावा किया
(फोटो: क्विंट)
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कोबरापोस्ट स्टिंग ऑपरेशन का मीडिया पर क्या असर होगा और सबसे ज्यादा नफा या नुकसान किसे होगा?
मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों के सामने कुछ इसी तरह के सवाल हैं. जाने-माने राजनीतिक विषयों को लेकर प्रताप भानु मेहता के मुताबिक इससे मीडिया की बची खुची विश्वसनीयता भी कम हो जाएगी और सबसे ज्यादा फायदा उठाएंगे राजनीतिक दल और उनके नेता क्योंकि दागदार होने की वजह से मीडिया उन्हें कठघरे में खड़ा नहीं कर पाएगा.
इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने लेख में प्रतापभानु मेहता ने मीडिया पर सबसे बड़े स्टिंग ऑपरेशन का ऑफ्टर इफेक्ट का धारदार विश्लेषण किया है. इससे कई बेहद महत्वपूर्ण सवाल उठते हैं जिस पर मीडिया को माथापच्ची करनी होगी.
मेहता के मुताबिक भारतीय मीडिया पर लोगों का भरोसा लंबे वक्त से निचले स्तर पर ही रहा है. इक्का दुक्का को छोड़ दिया जाए तो दिग्गज मीडिया संस्थान तो सालों से सत्ता की चापलूसी के अलावा उन्माद भड़काने वाले और बिकाऊ माने जाते हैं.
मीडिया की इमेज धूल धुसरित
प्रताप भानु मेहता के लेख के मुताबिक मीडिया की इमेज इस कदर खराब हुई है कि कभी लोकतंत्र का सहारा माना जाने वाला मीडिया अब लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा लगने लगा है.
उनका मानना है कि मीडिया की पोल खोलने के लिए किसी स्टिंग ऑपरेशन की जरूरत नहीं थी. जो कुछ परोसा जा रहा है वही पर्याप्त है.
मेहता के मुताबिक इस स्टिंग से बस फर्क ये पड़ा है कि कोबरापोस्ट ने भारतीय मीडिया की सड़न को सामने ला दिया है. लेकिन इस बात की उम्मीद ना रखें कि मीडिया के अंदर कोई आत्ममंथन होगा.
मेहता लिखते हैं कि बल्कि स्टिंग ऑपरेशन से इस बात का डर है कि जो गिने-चुने अच्छे और भरोसेमंद संस्थान बच गए हैं वो भी संदेह की नजर से देखे जाएंगे. लेकिन जो पहले ही भरोसा खो चुके हैं उनकी जवाबदेही तय होने वाली नहीं है. बल्कि स्टिंग से मीडिया के बारे में पहले से ही पैठ बना चुकी नकारत्मकता और गहराएगी.
मीडिया के लिए क्या है संदेश
मेहता के मुताबिक इससे जो नतीजे निकलते हैं उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती.
भारतीय मीडिया संस्थानों की न्यूज सामग्री (कंटेट) होल-सेल में बिकाऊ है
निचले लेवल ही नहीं साथ देश के दिग्गज मीडिया मालिक भी इस तरह की सौदेबाजी में शामिल होने लगे हैं. कंटेट बेचना अब उनके बिजनेस मॉडल का हिस्सा हो गया है.
न्यूज बेचने के धंधे में अब कोई बंधन नहीं बचा है. कुछ सांस्कृतिक बदलाव के लिए बिकने को तैयार हैं, कुछ ध्रुवीकरण को तैयार बैठे हैं. एडिटोरियल और मार्केटिंग के बीच की लाइन खत्म सी हो गई है.
कंटेंट की सौदेबाजी या ठेका तो एकतरफा है जिसमें पाठक को ठेकेदार की पसंद का कंटेट पढ़ने को मजबूर किया जाता है. इसमें कंज्यूमर की पसंद नापसंद की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है.
इन सबसे एक बात साफ और स्पष्ट है कि भारतीय मीडिया को देश के नागरिकों की कोई परवाह नहीं है. मीडिया हाउस के मालिकों को लगता है कि भारतीय नागरिक तो बच्चे हैं जिन पर अपना नजरिए का मुलम्मा चढ़ाकर प्रोपेगंडा फैला देंगे और उन्हें पता भी नहीं चलेगा.
जैसे राजनेताओं को लगता है कि वो लोकतंत्र के नाम पर लोगों को प्रोपेगंडा परोस देंगे ठीक उसी तरह मीडिया को लगता है कि वो मार्केट के नाम पर मार्केट मूल्यों की बलि चढ़ा देंगे.
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कोबरा पोस्ट स्टिंग ने सेल्फगोल किया?
प्रताप भानु मेहता कहते हैं सबसे बड़ी फिक्र की बात यही है कि इस तरह की स्टिंग से थोड़ी देर के लिए शोर होता है, अब स्टिंग ऑपरेशन पर भरोसा घटता जा रहा है इसलिए स्टिंग असरदार रहें इसके लिए दो बातें जरूरी हैं.
एक तो स्टिंग ऑपरेशन करने वाले की विश्वसनीयता जांची परखी हो और दूसरा उस पर लगातार फॉलोअप. लेकिन जब हर कोई दागी हो तो फिर किसी को दागों से शर्म नहीं आती. दूसरी बात लोग भरोसे की कमी की वजह से लोग ये मानेंगे कि जो मीडिया हाउस इस स्टिंग से बच गए हैं वो या तो किस्मत वाले हैं या उनको जानबूझकर बचाया गया है.
मेहता के मुताबिक बड़े पैमाने पर चौतरफा कीचड़ उछालने से जवाबदेही नहीं आती, बल्कि ऐसी बातें निराशा बढ़ाती हैं. जवाबदेही और असर के लिए आपको ऐसे उदाहरण सामने रखने होंगे जिन पर लोग भरोसा कर सकें. मीडिया में गंदगी सिर्फ भ्रष्टाचार का शोर मचाने से खत्म नहीं होगी बल्कि ऐसे आदर्श संस्थान से खत्म होगी जो भरोसा जगाएं.
मीडिया के लिए स्टिंग ऑपरेशन का मतलब
प्रताप भानु मेहता के लेख के मुताबिक मीडिया पर कीचड़ उछलने से इसका सीधा फायदा राजनेता उठाएंगे.
हर कोई बेईमान के इस फॉर्मूले से पूरे मीडिया को नुकसान होगा, भरोसा बढ़ाना और मुश्किल होगा
सबसे ज्यादा फायदा राजनीतिक दलों और नेताओं को होगा. मीडिया पर भरोसा कम होना उनके एजेंडे पर फिट होता है.
मुद्दा हिंदुत्व एजेंडे का नहीं है. असल में ये उस वक्त की सरकार के सामने चापलूसी का मामला है, इसका सिद्धांतों से कोई लेना देना नहीं है.
इस स्टिंग में ऑपरेशन में मीडिया मालिकों की हरकतों को एक्सपोज किया गया, राजनेताओं की नहीं. इससे राजनेताओं की गलतियों से ध्यान हटेगा.
क्या स्टिंग से मीडिया में सुधारेगा?
जिस तरह से मीडिया संगठनों ने स्टिंग ऑपरेशन में उठे आरोपों का खंडन किया है उससे तो यही लगता है कि स्टिंग ऑपरेशन ने सेल्फ गोल कर लिया है. एक बड़ा मीडिया हाउस का दावा है कि कि वो रिवर्स स्टिंग कर रहा था.
हां इससे सिर्फ उन मीडिया संगठनों में थोड़ा बहुत सुधार की संभावना है जिनके टॉप मैनेजमेंट इस स्टिंग का हिस्सा ना रहे हों. कुलमिलाकर इस ऑपरेशन से लोकतंत्र को फायदा होने वाला नहीं है क्योंकि जब किसी भी न्यूज पर भरोसा नहीं होगा तो लोग अपने हर खबर को अपने चश्मे से देखेंगे और समझेंगे.