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टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि अगर कोई व्यक्ति अपने जीवन में सफल रहा है तो उसकी सराहना अवश्य की जानी चाहिए. भारत (India) में जन्मा व्यक्ति विदेश में किसी कंपनी में शीर्ष पद पर पहुंचने की खबर पर भी गर्व करना चाहिए.
नाइनन लिखते हैं कि अगर किसी भारतीय की सफलता वाकई मातृभूमि की विशेष पहचान से जुड़ा है तो इस समय अफ्रीका महाद्वीप से संबंध रखने वाले तीन लोग तीन अंतरराष्ट्रीय संगठनों- डब्ल्यू.एच.ओ, डब्ल्यू.टी.ओ और इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन का नेतृत्व कर रहे हैं. चीन से अमेरिका गये ज्यादातर ऐसे लोग अपने देश लौट आए हैं और कई तो अमेरिकी कंपनियों को टक्कर देने के लिए चीन में ही कंपनियां खोल ली हैं.
भारतीय अब तक ऐसा नहीं कर पाए हैं. नोबल पुरस्कार से सम्मानित लोगों की सूची में नाम दर्ज कराने के साथ ही भारतीय मूल के लोग विभिन्न क्षेत्रों में कामयाबी हासिल कर रहे हैं. पहली पीढ़ी की प्रवासी नीली बेंडापुडी अमेरिका के एक अग्रणी विश्वविद्यालय की अध्यक्ष बनीं हैं. गीता गोपीनाथ अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष में शीर्ष अधिकारी बन गयीं. ऋषि सुनाक को ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री बताया जा रहा है. भारतीय अब तेजी से दूसरे देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
सुकुमार रंगनाथन ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि 2020 अगर महामारी (Coronavirus) का वर्ष था तो 2021 उससे उबरने और वैक्सीनेशन का वर्ष है. इसी साल हमने महसूस किया है कि हमें वायरस के साथ ही जीना सीखना होगा. ओमिक्रॉन के आगमन तक 55 फीसदी वयस्क आबादी ने दोनों डोज ले ली है. अगर ऑमिक्रोन का संक्रमण तेज नहीं रहता है तब भी कोविड-19 भारत से अभी जाता नहीं दिख रहा. बीते साल जून महीने में संक्रमण का जो स्तर था, वह अब भी बना हुआ है.
भारत को स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल अपनाना होगा. यह चौथा तरीका है. हवाई और ट्रेन यात्रा का प्रोटोकॉल तय हो, टेस्टिंग और वैक्सिनेशन से लेकर क्वारंटीन, कंटेनमेंट जोन बनाना और शैक्षणिक सस्थानों को आवश्यकतानुसार बंद करना भी हमें सीखना होगा. 2022 हमें सार्स कोविड 2 वायरस के साथ जीने का तरीका सिखाएगा.
तवलीन सिंह ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि टीकाकरण का श्रेय देने के लिए देश में ‘धन्यवाद मोदी’ के पोस्टर लगे थे. टीकाकरण के प्रमाण पत्रों पर भी मोदी की तस्वीर दिखी थी. ऐसा उस झेंप को मिटाने के लिए संभवत: किया जा रहा था कि जरूरत के वक्त पर देश ने पाया था कि समय रहते टीके के ऑर्डर ही नहीं दिए गये थे.
तवलीन सिंह लिखती हैं कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन और दवाओं की कमी कारण लोगों की मौत हुई थी मगर किसी अफसर को दंडित नहीं किया गया. आज वही आला अधिकारी दोबारा गलती कर रहे हैं.
बीते दिनों अदार पूनावाला ने खुलकर बताया है कि उनके पास 50 करोड़ वैक्सीन का भंडार है लेकिन भारत सरकार उसकी खरीद नहीं कर रही है. अब यह स्पष्ट हो चुका है कि टीकों का असर नौ महीने ही रहता है. ऐसे में आने वाले समय में वैक्सीन और बूस्टर डोज की जरूरत होगी. सवाल यह है कि समय रहते वैक्सीन की खरीद नहीं कर सरकार क्या पिछली गलती दोहरा रही है?
संदीप राय ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखा है कि नगालैंड में ‘भूलवश’ नागरिकों के संहार की घटना ने हमें सदमे में डाल दिया. किशोरों के समूह की इस वारदात के बाद एएफएसपीए यानी आर्म्ड फोर्सेज़ (स्पेशल पावर) एक्ट पर नये सिरे से सवाल उठने लगे हैं.
संदीप राय ने पटेल और नेहरू के बीच पत्रों का जिक्र किया है. हाल में प्रकाशित “नेहरू : द डिबेट दैड डिफाइन्ड इंडिया” में भी इन पत्रों का जिक्र है. इसमे नॉर्थ ईस्ट के बारे में पटेल के दृष्टिकोण सामने आते हैं. पटेल मानते थे कि नॉर्थ ईस्ट में रहने वाले लोगों में भारत के प्रति समर्पण या वफादारी की कमी है.
वही सोच एएफएसपीए को बरकरार रखने की मूल वजह है. हाल के वर्षों में नॉर्थ ईस्ट को लेकर नजरिया बदला है और विकास को समावेशी बनाने की कोशिशें हुई हैं. मगर, आज भी नॉर्थ ईस्ट को अफ्रीका की तरह मान लिया जाता है जहां एक नहीं कई एक देश हैं. इसी तरह नॉर्थ ईस्ट में भी एक नहीं कई एक राज्य हैं.
राज चेंगप्पा ने इंडिया टुडे में लिखा है कि राजनीतिक रणनीतिकार के तौर पर प्रशांत किशोर का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है. नरेंद्र मोदी से लेकर ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, राहुल गांधी, एमके स्टालिन, जगन मोहन रेड्डी, अरविंद केजरीवाल, कैप्टन अमिरंदर सिंह तक को सलाह दे चुके हैं प्रशांत किशोर. प्रशांत किशोर ने 9 चुनाव अभियान चलाए हैं और उनमें 8 में वे सफल रहे हैं.
अब प्रशांत किशोर विपक्ष के लिए ब्लू प्रिंट तैयार करने में लगे हैं. ममता बनर्जी को केंद्र में रखकर इस कोशिश को देखा जा रहा है. मगर, प्रशांत के कदम से कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही हैं. प्रशांत ये कह चुके हैं कि बीजेपी की जड़ें मजबूत हैं और उसे अगले 30 साल तक यह स्थिति कोई बदल नहीं सकता. इसके बावजूद प्रशांत ने यह कभी नहीं कहा है कि राजनीतिक परिवर्तन नहीं होगा. कांग्रेस विपक्ष में नेतृत्वकारी भूमिका निभाएगी, इसमें प्रशांत को संदेह है. मगर, कांग्रेस के बगैर विपक्ष को एकजुट कैसे किया जाए, यह प्रशांत की सबसे बड़ी चुनौती है.
उत्तम सिन्हा ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि 25 साल एचडी देवगौड़ा और शेख हसीना के बीच गंगा जल को लेकर हुए समझौते की मियाद पूरी होने की ओर है. यह समझौता 30 साल के लिए था. उस समझौते की पर्याप्त आलोचना हुई थी.
दोनों देशों में इसका विरोध हुआ था. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने शेख हसीना की अवामी लीग सरकार पर संप्रभुत्ता गिरवी रखने का आरोप लगाया था. भारत में उमा भारती की टिप्पणी थी- “और पानी दिया जाना चाहिए...” जबकि अटल बिहारी वाजपेयी ने व्यापक मंथन की जरूरत बतलायी थी. कांग्रेस नेता प्रियरंजन दास मुंशी ने उस समझौते को मील का पत्थर बताते हुए बगाल के पानी का इस्तेमाल बिहार और यूपी के हाथों होने का सवाल भी उठाया था.
फिर 1973-74 में परमानेंट ज्वाइंट रिवर्स कमीशन भी बना. इसके तहत सूखे के समय मे फरक्का बांध से 55 हजार क्युबिक फीट पानी प्रति सेकेंड छोड़ने को लेकर सहमति बनी. 1974 में मुजीबुर्रहमान भारत आए और साझा घोषणा में यह बात महसूस की गयी कि सूखे के समय में गंगा में पर्याप्त पानी नहीं है जिसे साझा किया जाए. मुजीब की हत्या के बाद बांग्लादेश ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय विवाद का विषय बनाने की कोशिश की.
जून 1996 में शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के आने के बाद इस रुख में बदलाव आया. संयुक्त मोर्चा सरकार ने भी पड़ोसी देश के साथ संबंध मजबूत करने पर जोर दिया. द्विपक्षीय संवाद में पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु का शामिल होना भी महत्वपूर्ण घटना रही. आज आवश्यकता इस बात की है कि बांग्लादेश को भी राजी किया जाए कि वह भारत की ही तरह गंगा जल बंटवारे से जुडे संवाद में सकारात्मक रुख दिखाए.
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