Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019संडे व्यू : ताकत दिखा रही है सरकार, चिपको आंदोलन के 50 साल

संडे व्यू : ताकत दिखा रही है सरकार, चिपको आंदोलन के 50 साल

आज पढ़ें पी चिदंबरम, टीएन नाइनन, करन थापर, तवलीन सिंह और रामचंद्र गुहा के विचारों का सार

क्विंट हिंदी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू में पढ़ें बड़े अखबारों में छपे के आर्टिकल</p></div>
i

संडे व्यू में पढ़ें बड़े अखबारों में छपे के आर्टिकल

(फोटो: Altered by Quint)

advertisement

ताकत दिखा रही है सरकार

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि उन्हें किरन रिजिजू की इस बात पर खुशी होती है कि वे और उनकी सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता में पूरा यकीन करती है और उन्होंने न तो कभी उसके कामकाज में हस्तक्षेप किया है और न करना चाहते हैं. मगर, ऐसा करते हुए हाल में उन्होंने अपनी ही भावना पर वज्रपात भी किया है.

एक सेमिनार की चर्चा करते हुए किरेन रिजिजू ने इंडिया टुडे कॉनक्लेव में कहा, “कुछ सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, कोई तीन या चार होंगे, कुछ कार्यकर्ता हैं जो भारत-विरोधी गिरोह का हिस्सा हैं, उन लोगों की कोशिश रहती है कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी पार्टी की तरह भूमिका निभाए...कार्रवाई तो होगी, कानून के अनुसार कार्रवाई की भी जा रही है....कानूनी प्रावधानों के अनुसार एजेंसियां कार्रवाई करेंगी. कोई नहीं बचेगा, चिंता मत करो, कोई नहीं बचेगा. जो भी देश के खिलाफ काम करता है उसे इसकी कीमत चुकानी ही पड़ती है.”

पी चिदंबरम लिखते हैं कि कानून मंत्री के माध्यम से राज्य की शक्ति प्रदर्शित हो रही है. 21 मार्च 2023 को तीन जजों की पीठ ने सतेंद्र कुमार अंतिल बहनाम सीबीआई के फैसले का भी लेखक ने उल्लेख किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है, “यह सुनिश्चित करना उच्च न्यायलयों का कर्तव्य है कि निचली अदालतें उनकी देखरेख में देश के कानूनों का पालन करती हैं. अगर कुछ दंडाधिकारियों द्वारा इस तरह के देश पारित किए जा रहे हैं तो उनसे न्यायिक काम वापस ले लिया जाना चाहिए और उन्हें कुछ समय के लिए, उनके कौशल विकास केलिए, न्यायिक अकादमियों में भेजा जा सकता है.”

चिदंबरम ने 23 मार्च 2023 को एक मजिस्ट्रेट द्वारा राहुल गांधी को सुनाई गयी सजा का जिक्र भी किया है. उन्होंने कहा है कि राहुल गांधी की तरफ से पेश हुए वकीलों को काबिल दंडाधिकारी के इस फैसले में क्षेत्राधिकार संबंधी त्रुटियों और प्रक्रियागत खामियों की वजह से अन्याय नजर आया. उन्होंने दो साल के कारावास की सजा को भी असामान्य रूप से कठोर माना. लेखक कहते हैं कि कानून की ‘ताकत’ का शोर मचाकर प्रशंसा करने के बजाए शांत और संयमित रहकर लोकतांत्रिक आवाजों की ‘दुर्दशा’ पर आत्मनिरीक्षण किया जाना चाहिए.

आलोचनाओं पर पीएम मोदी की स्मरणीय सलाह

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में लिखा है कि प्रधानमंत्री बनने के दो साल बाद सितंबर 2016 में नरेंद्र मोदी ने जो बातें कही थीं उसे याद करने और उसका विश्लेषण करने की जरूरत है. प्रधानमंत्री ने कहा था, “मेरा यह स्पष्ट मत है कि सरकारों की, सरकार के काम-काज का, कठोर से कठोर एनालिसिस होना चाहिए, क्रिटिसिज्म होना चाहिए. वर्ना लोकतंत्र चल ही नहीं सकता है.”

‘कठोर से कठोर’शब्दों के चयन पर ध्यान दें. दूसरी बात यह है कि यह केवल सरकार के कामों के लिए नहीं था बल्कि खुद सरकार के लिए भी कहा गया था. मोदी ने इसे अलग संस्था के तौर पर पहचाना था. नरेंद्र मोदी ने इतनी ही मजबूती से मीडिया की ओर से सरकार की आलोचना के फायदे भी गिनाए थे- “सरकारों में जो सुधारना चाहिए, जो एक डर पैदा होना चाहिए, वह डर भी निकल जाता है. और, ये डर अगर सरकारों में से निकल जाएगा तो देश का नुकसान बहुत होगा. इसलिए मैं तो चाहता हूं कि मीडिया बहुत ही क्रिटिकल हो.”

तो, प्रधानमंत्री चाहते थे कि सरकार डरे. लेखक किरण रिजिजू के बयान के संदर्भ में इन बातों की याद दिलाते हैं. कानून मंत्री मोदी सरकार के कार्यकाल में नियुक्त जजों में से कुछ को ‘एंटी इंडिया गैंग’बता रहे हैं.

करन थापर ने उपराष्ट्रपति के भाषण की भी याद दिलायी है कि भारत विरोधी ताकतें देश के विकास, लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों पर प्रहार कर रही हैं. उन्होंने इसमें मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाए. इस संदर्भ में भी लेखक ने नरेंद्र मोदी के बयान की याद दिलायी है. नरेंद्र मोदी ने संसद, चुनाव आयोग और संवैधानिक संस्थाओं के स्वतंत्र रूप से काम करने की वकालत की थी. लेखक सलाह देते हैं कि प्रधानमंत्री के शब्दों को मंत्री और बीजेपी प्रवक्ताओं को दिल से स्वीकार करना चाहिए.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

चिपको आंदोलन के 50 साल

रामचंद्र गुहा ने टेलीग्राफ में चिपको आंदोलन के 50 साल पूरा होने पर आलेख लिखा है. 27 मार्च 1973 को ऊपरी अलकनन्दा घाटी के एक गांव में मंडल स्तर पर किसानों के एक समूह ने इस आंदोलन की शुरुआत की थी. पेड़ से चिपक कर अहिंसक तरीके से यह आंदोलन शुरू हुआ था. इस आंदोलन ने जल, जंगल, जमीन पर सामुदायिक प्रभुत्व का अहसास कराया था.

ऊर्जा, पूंजी और संसाधनों पर आधारित पश्चिम के विकास मॉडल पर जो उंगली उठायी गयी, उसने आजादी के आंदोलन के दौरान सामुदायिक और पर्यावरण केंद्रित विकास की समझ से हमें फिर से जोड़ा. इसने अहसास कराया कि देश और नागरिक दोनों को सार्वजनिक नीतियों और व्यवहार में सुधार लाना चाहिए.

लेखक याद दिलाते हैं कि 1980 के दशक में पर्यावरण संकट को लेकर नैतिक सवाल उठाए गये थे. यह बहस जंगल, जल, ट्रांसपोर्ट, ऊर्जा, जमीन, जैव विविधता तमाम क्षेत्रों से जुड़ी थी. केंद्र और राज्य सरकारों ने इन विषयों पर नये कानून और नियामक संस्थाएं बनायीं. पहली बार अध्ययन केंद्रों पर पर्यावरण पर वैज्ञानिक अनुसंधानों पर चर्चा शुरू हुई. 80 के दशक में जो बढ़त इन विषयों पर हमें मिलीं उस पर बाद के दशकों में पानी फेर दिया गया.90 के दशक और उसके बाद पर्यावरण के खतरे तेजी से बढ़ते चले गये.

50 साल बाद चिपको आंदोलन क्लाइमेट चेंज की गंभीरता पर पुनर्विचार की जरूरत बताता है. सूखा, समुद्री तूफान, बाढ़ और जंगलों में आग की घटनाएं और भयावह हुई हैं. भारत जैसे देशों में बुरा होते चले जा रहे पर्यावरण का दुष्प्रभाव गरीबों पर अधिक होता है. दिल्ली को बिजली उपलब्ध करा रहे सिंगरौली के लोगों के पास खुद बिजली नहीं है. वे अंधेरे और जहरीले वातावरण में जीने को अभिशप्त हैं. चिपको आंदोलन हमें संदेश देता है कि हम अपने दायरे में रहकर प्रकृति का सम्मान करें.

अमृतपाल से बातचीत हो

तवलीन सिंह ने जनसत्ता में लिखे अपने लेख में 1980 के दशक में खालिस्तान के लिए संघर्ष की याद दिलायी है. लंदन के पैडिंगटन स्टेशन पर जगजीत सिंह चौहान से मुलाकात और उनसे मिले खालिस्तान के फर्जी पासपोर्ट की याद दिलाते हुए उन्होंने लिखा है कि तब भी खालिस्तान को पंजाब में कोई समर्थन नहीं था.

जरनैल सिंह भिंडरावाला के समर्थक भी स्वर्ण मंदिर तक ही सिमटे थे. उससे बाहर कोई खालिस्तान समर्थक नहीं था. आज भी अमृतपाल सिंह के समर्थक हैं लेकिन खालिस्तान के नहीं. इसके बावजूद बिना सबूत अमृतपाल सिंह को आईएसआई का समर्थक बताकर खालिस्तान को हवा देने का काम मीडिया कर रही है. सरकार का व्यवहार भी सवालों के घेरे में है.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि अमृतपाल सिंह जब अपने समर्थक को थाने से छुड़ा ले गया, तब से उसे खालिस्तानी बताया जाने लगा है. इंटरव्यू में अमृतपाल ने कहा है कि वह सीखी और खालसा पंथ को मजबूत करना चाहता है. लेखिका याद दिलाती हैं कि जरनैल सिंह भिंडरावाला भी शुरुआत में इसी बात से खफा था कि पुलिस ने उसके लोगों के साथ मार-पिटाई की और जेलों में बंद कर दिया.

तब अगर उसके साथ बात की जाती, उसे राजनीति में जगह दे दी जाती तो संभवत: स्थिति गंभीर नहीं होती. आज भी बिना सोचे समझे अमृतपाल के बारे में धारणाएं बनायी जा रही हैं. अमृतपाल के पिता सवाल उठाते हैं कि आखिर सरकार ने अमृतपाल को उसके घर से गिरफ्तार क्यों नहीं किया? क्यों अमृतपाल को भाग जाने का मौका दिया गया? लेखिका का मानना है कि अच्छा होता अगर सरकार के दूत अमृतपाल से बातचीत करते. बातचीत से इस मसले का समाधान किया जा सकता है.

पूंजी पर टैक्स

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि भारत सरकार ने डेट इंस्ट्रूमेंट पर दीर्घावधि के पूंजीगत लाभ पर कर लाभ को समाप्त करके अचानक गुगली डाल दी है. ऐसा संसद में बगैर चर्चा के पारित वित्त विधेयक में किया गया. पूंजीगत लाभ के लिए भारत की कर दरें कुछ ऐसी रही हैं कि ज्यादा आय अर्जित करने वाले लाभान्वित होते रहे हैं. यह वह समूह रहा है जिसमें अधिकांश संपत्तिधारक शामिल होते हैं. ऐसे में एक समीक्षा लंबित थी लेकिन सरकार द्वारा ऐसे कदम के रूप में तो कतई नहीं.

टीएन नाइनन लिखते हैं कि अधिकांश देशों में संपत्ति पर किसी न किसी तरह का कर लगता है और आम तौर पर इनसे सहजता से बच निकलने का कोई न कोई रास्ता रहता है. भारत एक अपवाद है क्योंकि उसने संपत्ति कर और संपदा शुल्क दोनों को समाप्त कर दिया है और यहां करीबी रिश्तेदारों एवं वंशजों के उपहारों पर भी कर नहीं लगता.

आय और संपत्ति की बढ़ती असमानता वाली दुनिया में पूंजी के साथ प्राथमिकता वाले कर व्यवहार का बचाव करना मुश्किल होता जा रहा है. यहां सवाल यह है कि आखिर किन चीजों पर कर लगना चाहिए: संपत्ति पर या उस संपत्ति से हासिल होने वाली आय पर? या दोनों पर?

डेट बाजार में दिक्कत यह है कि बैंक जमा पर ब्याज पर कर बिना इंडेक्सेशन के लगता है जिससे असमान हालात पैदा होते हैं. यहां कहा जा सकता है कि बैंक जमा प्रतिफल की तयशुदा दर होती है और वहां सुरक्षा का तत्व प्रबल होता है जबकि म्चुचुअल फंड में ऐसा नहीं होता और वहां प्रतिफल अलग-अलग हो सकता है. यहां तक कि नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.

पढ़ें ये भी: Interview: क्या येदियुरप्पा को बीजेपी में किनारे कर दिया गया था? खुद दिया जवाब

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT