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संडे व्यू : बीते साल ‘पप्पू’ ने बदली धारणा, अनिश्चितता के बीच 2023 में कदम

P Chidambaram, तवलीन सिंह, टीएन नाइनन, शोभा डे, करन थापर के विचारों का सार पढ़ें संडे व्यू में

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>संडे व्यू में पढ़ें बढ़े अखबारों में छपे के आर्टिकल</p></div>
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संडे व्यू में पढ़ें बढ़े अखबारों में छपे के आर्टिकल

(फोटो: Altered by Quint)

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विपक्ष को लेकर बदली धारणा

तवलीन सिंह (Tavleen Singh) ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि साल के पहले दिन गुजरे साल का लेखा जोखा लें तो महामारी को नियंत्रण में रखना देश की सबसे बड़ी सफलता है. अब तक राजनीतिक पंडित अनुमान लगा रहे थे कि 2024 में नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को कोई चुनौती नहीं दे सकता, ‘पप्पू’ राहुल तो बिल्कुल नहीं. यह धारणा बदली है. बीते वर्ष नफरत का बोलबाला दिखा था.

अंधभक्त ही नहीं सत्ताधारी दल के मंत्री-सांसद भी नफरत फैलाते दिखे थे. बीजेपी प्रवक्ता की इस्लाम विरोधी टिप्पणी के कारण भारत सरकार को इस्लामी मुल्कों से माफी तक मांगनी पड़ी थी. दोष सिर्फ नुपुर शर्मा का ही नहीं, सर तन से जुदा करने वाले लोगों का भी है.

तवलीन सिंह लिखती हैं कि ऐसे समय में जब अफगानिस्तान में लड़कियों की पढ़ाई रोकी जा रही है और ईरान में महिलाएं बीच बाजार में अपने हिजाब उतार कर जला रही हैं तो हमारे देश में हिजाब पहनने के लिए मुस्लिम लड़कियां जिद कर रही हैं.

हम नये साल में दुआ करें कि दोनों पक्ष के लोग होश में आएं. सरकारी प्रवक्ता कहते फिर रहे हैं कि भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ रहा है लेकिन जमीनी तौर पर 2 करोड़ नौकरियों का वादा पूरा होता नहं दिखता और न ही आम आदमी के जीवन में कोई ऐसा चमत्कार होता दिख रहा है जिससे थोड़ी जिन्दगी आसान हो सके. ध्यान भटकाने के लिए अगर हिन्दू-मुस्लिम तनाव जानबूझकर पैदा की जा रही है तो समझना पड़ेगा कि असली ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ कौन है.

अनिश्चितता के बीच 2023 में कदम

पी चिदंबरम ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा है कि अकेले भारत सरकार (Indian Government) ऐसा मानती है कि 2023 में आर्थिक विकास की वृद्धि दर ऊंची रहेगी, महंगाई दर मध्यम रहेगी और बेरोजगारी की दर में गिरावट आएगी. दुनिया की ज्यादातर एजेंसियां ऐसा नहीं मान रही हैं. खुद आरबीआई का मानना है कि वैश्विक मुद्रास्फीति चरम पर पहुंच सकती है. 2023-24 के दौरान शीर्ष मुद्रास्फीति के स्तर पर स्थायी रूप से सहनशील बनाने को तैयार दिखता है भारत. आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ने 2023 के ले वैश्विक विकास दर 2.2 फीसदी आंकी है जो पहले के पूर्वानुमानों से कम है.

चिदंबरम लिखते हैं कि अप्रैल-नवंबर 2022 में ही भारत का व्यापार घाटा 198.4 अरब अमेरिकी डॉलर हो चुका है जो बीते वित्त वर्ष के दौरान के व्यापार घाटा से 7.4 अरब डॉलर ज्यादा है. चालू खाता घाटा और राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ रहा है. दिसंबर में 3.25 लाख करोड़ रुपये की अनुपूरक मांग पेश करते हुए सरकार ने भरोसा दिलाया था कि वह राजस्व घाटे को अक्षुण्ण रखेगी.

लेकिन, लेखक का मानना है कि 2023 में मुफ्त राशन वितरित करने के फैसले के बाद अब ऐसा कर पाना मुश्किल होगा. 29 दिसंबर 2022 को सीएमआईई के मुताबिक भारत में बेरोजगारी दर 8.4 फीसदी है.

शहरों में यह 10 फीसदी के स्तर पर पहुंच गयी है. लेखक आगाह करते हैं कि जितनी बातें सरकार के नियंत्रण में हैं उनसे अधिक बातें नियंत्रण से बाहर की हैं. इनमें रूस-यूक्रेन युद्ध, वैश्विक महंगाई और आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान. ऐसे में 2023 में भारत अनिश्चितता के बीच कदम बढ़ा रहा है.

नि:शुल्क अनाज के मायने

टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि सरकार ने कोविड संबंधी कार्यक्रम के तहत नि:शुल्क खाद्यान्न वितरण योजना को बंद कर दिया है और उसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली यानी पीडीएस के माध्यम से वितरित करने की घोषणा की है. केंद्र सरकार की खाद्य, उर्वरक और पेट्रोलियम सब्सिडी को एक साथ रखकर देखा जाए तो वह जीडीपी का 2.5 फीसदी है. यह स्तर एक दशक पहले भी था. पेट्रोलियम सब्सिडी बिल जो कुल सब्सिडी बिल का एक तिहाई हुआ करता था, अब काफी कम हुआ है. अब खाद्य सब्सिडी बिल भी कम होगी. 

नाइनन लिखते हैं राजकोषीय घाटे की हकीकत का संबंध दो बातों से है. एक, खेती और दूसरा अधिसंख्य कामगार आबादी की आय का स्तर. भारत कृषि के मामले में दुनिया में सबसे कम मेहनताना देने वाला देश है. कुछ फसलों के लिए किसानों को खरीदार और मूल्य की गारंटी भी मिलती है. ऐसे में खेती से जुड़ा स्वाभाविक जोखिम अपने आप समाप्त हो जाता है.

लेखक ध्यान दिलाते हैं कि कई फसलों की उत्पादकता अंतरराष्ट्रीय स्तर से काफी कम है. यह क्षेत्र बहुत कम वेतन स्तर पर देश के आधे रोजगार मुहैया कराता है. असंगठित क्षेत्र के 27.7 करोड़ श्रमिकों में 94 प्रतिशत की मासिक आय 10 हजार रुपये से कम है. देश की कुल श्रम शक्ति में असंगठित श्रमिकों की हिस्सेदारी 80 फीसदी है.  अनाज को नि:शुल्क देने से कोई खास बदलाव नहीं आता. एक लोकलुभावन चक्र शुरू हो सकता है क्योंकि राजनीतिक दल पहले ही नि: शुल्क बिजली समेत तमाम मुफ्त चीजें दे रहे हैं.

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सीजेआई के तौर पर ‘डैनी’ की जरूरत

शोभा डे ने द वीक में लिखा है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश धनंजय वाई चंद्रचूड़ को मुंबई के कैथेड्रल स्कूल में ‘डैनी’ नाम से बुलाया जाता था. सलमान रश्दी और जुल्फिकार अली भुट्टो भी इसी स्कूल में पढ़े हैं. माता-पिता चंद्रचूड़ को ‘धनु’ पुकारा करते थे. मुंबईया लोग उन्हें ‘जीनियस आदमी’ कहते हैं. चंद्रचूड़ को करीब से जानने वाले लोग मानते हैं कि भारत को सीजेआई के रूप में डैनी की जरूरत है.

सीजेआई के सहकर्मी उन्हें दूरद्रष्टा, उदार मानते हैं. 9 नवंबर 2022 से 16 दिसंबर 2022 के बीच 6,844 मामलों का उन्होंने निपटारा कर दिखलाया. हाल में ही उन्होंने कहा था, “अदालत के लिए कोई केस छोटा-बड़ा नहीं होता.“ चंद्रचूड़ ने अपने पिता के दो फैसलों को पलटा है. टू फिंगर टेस्ट पर प्रतिबंध और होमोसेक्सुअलिटी पर फैसलों के कारण भी उन्हें जाना जाता है.

सबरीमाला और 24 हफ्ते के गर्भपात को वैधानिक बनाने जैसे मामलों के कारण भी चर्चा में रहे थे चंद्रचूड़. यह कहना जरूरी है कि कोई भी व्यक्ति जो संस्थान में बदलाव लाता है, वह आकर्षण की वजह होता है. विवाद भी उसके साथ जुड़े रहते हैं. डीवाई चंद्रचूड़ ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास प्रशंसकों की भीड़ है और लेखिका भी उनमें से एक है.

नये साल पर क्या हो संकल्प

करन थापर ने हिन्दुस्तान टाइम्स में नये साल के संकल्प पर सोचने पर जोर दिया है. साल का पहला दिन है. नया साल जन्म दिन की तरह खास लगता है. जीवन का पहिया नया मोड़ लेने वाला है, ऐसा लगता है. नये संकल्प, नये दृढ़ संकल्प और इस विश्वास को दिखाने का मौका कि आप बेहतर या कम से कम अलग हो सकते हैं. पवित्र प्रतिबद्धताएं करना, एक हफ्ते सख्ती से पालन करना और फिर खुशी से भूल जाना. पहला हफ्ता अच्छा लगता है. अगले हफ्ते में खुद को दोषी समझने लगते हैं हम और फिर संकल्प को त्यागकर पुराने तरीकों पर लौट आते हैं.

थापर लिखते हैं कि संकल्प का उद्देश्य आत्मनिषेध है. ऐसे चीज का विरोध हम कर रहे होते हैं जिसे हम करना चाहते हैं. धूम्रपान करने वालों के लिए सिगरेट छोड़ना आसान विकल्प है. सफल होने पर उन्हें अच्छा लगता है. वहीं, हार मान लेने पर पहले कश का आनंद और भी बढ़ जाता है. लेखक बताते हैं कि एक अवसर पर उन्होंने झूठ बोलना बंद करने का विकल्प चुना था.

मुश्किल इतनी बढ़ी कि बातचीत करना तक मुश्किल हो गया. बगैर झूठ बोले कहानियां बनती ही नहीं. ऐसे में आप ही सुझाएं कि नये साल में क्या संकल्प लिए जाएं और कैसे उसका पालन किया जाए. आज के बाद 364 दिन और हैं. कुछ उपयोक्त सोचते हैं तो क्या आप मुझे बताएंगे?

पढ़ें ये भी: लाइव TV पर फाड़ी डिग्री- लड़कियों की शिक्षा के लिए तालिबान के सामने खड़ा प्रोफेसर

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