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प्रताप भानु मेहता (Pratap Bhanu Mehta) इंडियन एक्सप्रेस में लिखते हैं कि भारतीय लोकतंत्र में प्रभावी विपक्ष नहीं है. विपक्ष के बौनेपन के कारण ही सत्ता पक्ष इतना विशालकाय नज़र आता है. भारतीय विपक्ष ऊंची-नीची पहाड़ियों वाला संघर्ष कर रहा है. बीजेपी सुसंगठित चुनावी लड़ाके जैसी है. यह विपक्ष को डराने के लिए सत्ता के दुरुपयोग से भी नहीं हिचकिचाती है.
मेहता लिखते हैं कि उपराष्ट्रपति के चुनाव में बीजेपी ने उम्मीदवार चुनने की निर्मम परंपरा को ही मजबूत किया. विपक्ष क्या करता है? माग्रेट अल्वा को नामांकित करती है. जगदीप धनखड़ से परेशान रहने वाली तृणमूल कांग्रेस तक इस निर्णय में शामिल नहीं हो पाती है. राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव नतीजे सबको पता होते हैं. इसके बावजूद विपक्ष का व्यवहार क्यों कुछ नया रहस्योद्घाटन करता दिख रहा है?
प्रताप भानु मेहता लिखते हैं कि जब केंद्र सरकार ईडी का इस्तेमाल करती है तो एक बात यह होती है कि यह शक्ति का दुरुपयोग होता है. दूसरी बात जो जनता समझती है वह यह कि विपक्ष ईडी से पूछताछ करने के सर्वथा योग्य है.
तीसरी बात यह भी मालूम होता है कि विपक्ष इसमें किस तरह उलझा हुआ है. डीएमके के स्टालिन, टीआरएस के केसीआर या दूसरे क्षेत्रीय नेता अपने-अपने प्रदेशों पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं. लेकिन, कांग्रेस राजस्थान में भी दोबारा जीत सकेगी, कहना मुश्किल है. यह स्थिति क्यों बनी है? ऐसा लगता है कि जो आवाज़ विपक्ष बुलंद करना चाहता है वह आवाज़ बुलन्द हो नहीं पा रही है.
पी चिदंबरम (P Chidambaram) ने इंडियन एक्सप्रेस में भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमन के हवाले से लिखा है कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया सजा बन गयी है. हड़बड़ी में बिना सोचे-समझे अंधाधुंध गिरफ्तारियों से लेकर जमानत लेने तक के लिए विचाराधीन मामलों में लंबें समय तक कैद रखने की जो प्रक्रिया है, उसे तत्काल ध्यान देने की जरूरत है..यह बेहद गंभीर बात है कि देश में छह लाख दस हजार कैदियों मे से अस्सी प्रतिशत कैदी विचाराधीन हैं...अब उस प्रक्रिया पर सवाल उठाने का वक्त आ चुका है, जिसकी वजह से बिना मुकदमे के ललोगों को इस तरह लंबे समय तक कैद में रखा जा रहा है.
चिदंबरम जेएनयू के पीएचडी छात्र शरजील इमाम का उदाहरण भी रखते हैं जिन्हें सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान जामिया मिल्लिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भाषण के लिए गिरफ्तार किया गया. 28 जनवरी 2020 से वह जेल में है और उसे जमानत देने से इनकार कर दिया गया है.
जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की भी यही स्थिति है और पत्रकार कप्पन सिद्दीकी भी हाथरस कांड की खबर कवर करने जाते वक्त गिरफ्तार गये थे. गिरफ्तारी के अधिकार का खुलकर दुरुपयोग हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे कई सारे फैसले दिए हैं जो गिरफ्तार करने के अधिकार को कम करते हैं. 20 जुलाई 2022 को मोहम्मद जुबैर मामले में आए आदेश ने भी इसे साफ किया है.
टीएन नाइनन ने बिजनेस स्टैंडर्ड में लिखा है कि युद्ध के कारण एक सक्षम राष्ट्र ध्वस्त हो चुका दिखता है. भौगोलिक रूप से भारत के क्षेत्रफल का पांचवां हिस्सा, जबकि भारत की जीडीपी के बीसवें हिस्से के बराबर और श्रीलंका की आबादी का आधा जिस यूक्रेन में समाहित है, वह वास्तव में रूस से युद्ध करने के काबिल नहीं था. यूक्रेन के राष्ट्रपति के अनुसार ध्वस्त हो चुकी असैन्य संरचनाओं के निर्माण पर 750 अरब डॉलर खर्च होंगे और यह रकम युद्ध से पहले यूक्रेन की जीडीपी का पांच गुणा है.
अगर पश्चिम सोचता है कि रूस की चुनौती को हमेशा के लिए खत्म कर दिया जाए तो न यह मनोकामना पूरी होने वाली है और न ही युद्ध रुकने के आसार बनेंगे. रूस-यूक्रेन युद्ध से अमेरिका परेशान है और उससे ज्यादा यूरोप. गैस की राशनिंग की स्थिति यूरोप झेल रहा है. यूरोप के लिए आगे की जरूरत यूक्रेन को सैन्य मदद के साथ-साथ खुद का सैन्यीकरण भी होगा. यह पूरी स्थिति यूक्रेन पर तरस खाने वाली है.
हिन्दुस्तान टाइम्स में करन थापर (Karan Thapar) ने लिखा है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है. ऐसे में यह सवाल महत्वपूर्ण हो चला है कि संसदीय कामकाज कितना प्रभावी रह गया है? क्या यह हमारी उम्मीदों के अनुरूप है या उससे कमतर है? पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के प्रमुख चक्षु रॉय के हवाले से करन थापर बताते हैं कि 1950 और 1960 के दशक में संसद के कामकाज या गुणवत्ता के मुकाबले आज बेहतर स्थिति है. वे दल बदल कानून को तुरंत रद्दी की टोकड़ी में फेंक देने को कहते हैं क्योंकि इससे सांसद और विधायक गुलाम बनकर रह गये हैं. वे अंतरात्मा की आवाज नहीं निकाल पा रहे हैं.
पहले जहां 4 हजार घंटों की लोकसभा 50 या 60 के दशक में होती थी, वहीं अब यह 1615 घंटे तक ही यह हो पा रही है. सदन का मूल रूप से दो काम होता है- विधेयकों को पारित करना और सरकार को जिम्मेदार बताना. लोकसभा इस हिसाब से सही तरीके से या जैसा चलना चाहिए वैसे नहीं चल पा रही है. राज्यसभा में लोकसभा के फैसलों पर दोबारा विचार होता है. राज्यों के हितों का भी यहां ख्याल रखा जाता है. दल बदल कानून ने सदस्यों की यह आजादी भी छीनी है.
शोभा डे ने डेक्कन क्रॉनिकल में लिखा है कि अगर ऋषि सुनक 10 डाउनिंग स्ट्रीट पहुंच जाते हैं तो कृपया याद रखें किवह हममें से एक नहीं हैं. वे ब्रिटिश हैं. इससे पहले कि हम उन्हें अपनाने में जुटें, भारतवासी बताने लगें- थोड़ा ठहरिए.
वे हमारी तरह दिखते हैं, हमारी तरह व्यवहार करते हैं और शायद हमारी ही तरह खाते भी हैं फिर वे निश्चित रूप से भारतीय नहीं हैं. हम उन्हें अपना अंग्रेजी दामाद बुला सकते हैं. ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का संबंधी होने पर इतरा सकते हैं. कई लोग कुछ बड़ा हासिल करने निकलते हैं, मशहूर होते हैं, अमीर और ताकतवर हो जाते हैं. मगर, हजारों लोग कहीं के नहीं होते.
आईपीएल को ब्रांड बनाते हुए उन्होंने करोड़ों लोगों को खुश होने का अवसर दिया. कई ने प्यार-मोहब्बत का आनंद लिया. सुष्मिता सेन सिंगल मदर हैं, स्वाभिमानी हैं. उन्हें रुपये-पैसों की जरूरत नहीं है. और, उन्होंने अपना डायमंड खरीद लिया है, ठीक है ना?
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