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कोरोना की दूसरी लहर गर्भवती महिलाओं के लिए बुरा सपना साबित हुई

दूसरी लहर में 28 फीसदी से ज्यादा गर्भवती और हाल में प्रसव करवाने महिलाओं के वर्ग में कोरोना के लक्षण पाए गए

मैत्रेयी रमेश
भारत
Published:
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फोटो: द क्विंट 

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28 साल की प्रियंका सुरेश को जब मई की शुरुआत में कोरोना हुआ, तब वे 7 महीने से गर्भवती थीं. जब प्रियंका अपने RT-PCR टेस्ट का इंतजार ही कर रही थीं, तभी उनके पारिवारिक डॉक्टर ने उनके गॉयनेकोलॉजिस्ट के साथ चर्चा कर प्रियंका का इलाज शुरू कर दिया था. लेकिन प्रियंका की तबियत में सुधार नहीं हुआ. 5 मई को उनका ऑक्सीजन लेवल गिरने लगा.

द क्विंट से बात करते हुए प्रियंका के पति सुरेश बताते हैं, "हम हॉस्पिटल में बिस्तर ढूंढने के लिए हर तरफ भागते रहे. हम प्रियंका को एंबुलेंस में लेकर एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल जाते रहे, तब जाकर हमें एक बिस्तर मिला. लेकिन तब तक हम जहां पहुंच चुके थे, वहां से वापसी नामुमकिन थी." सुरेश यह बताते हुए भावुक हो जाते हैं.

दो दिन बाद, 7 मई को भारत में कागजों के हिसाब से कोरोना से 3,700 मौतें हुईं. प्रियंका भी उन हजारों गर्भवती महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने इस साल अप्रैल से मई के बीच अपनी जिंदगी गंवा दी.

अब एक हालिया अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है कि कोरोना की दूसरी लहर का, पहली लहर की तुलना में, गर्भवती महिलाओं पर बहुत भयावह असर हुआ है.

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ICMR के अध्ययन से क्या पता चला?

ICMR के एक नए अध्ययन से पता चला है कि गर्भवती महिलाओं में केस फर्टिलिटी रेट (CFR) दूसरी लहर के दौरान 5.7% रही, जबकि पहली लहर में यह 0.75% थी.

CFR इसलिए अहम हो जाता है क्योंकि यह किसी बीमारी के चलते जान गंवाने वालों की संख्या की गणना करता है. यहां यह बीमारी कोविड-19 है. ICMR के इस अध्ययन के लिए 4000 कोविड पॉजिटिव गर्भवती महिलाओं के आंकड़े का विश्लेषण किया गया था. यह आंकड़ा 16 जून को प्रकाशित हुआ था और जर्नल ऑफ़ गायनेकोलॉजी एंड ऑब्सटेट्रिक्स में प्रकाशित हुआ था.

कोरोना की दूसरी लहर में लक्षण वाले कोरोना मरीजों की संख्या भी ज्यादा थी. इस लहर में 28.7 फीसदी गर्भवती और तुरंत प्रसव से मुक्त हुईं महिलाओं में कोरोना के लक्षण पाए गए. जबकि पहली लहर में यह आंकड़ा 14.2 फीसदी था.

कठिन विकल्प और वैक्सीन तक पहुंच की दिक्कतें

पहली लहर से उलट, दूसरी लहर में पूरे भारत में गर्भवती महिलाओं के लिए बिस्तरों की मांग के साथ कई SOS कॉल दी गईं. ज्यादातर मामलों में मेडिकल ट्रीटमेंट में देरी हुई.

फिर बंगलुरू में रहने वाली अनीशा सिंह (बदला हुआ नाम) जैसी कुछ महिलाएं खुद के गर्भधारण के बारे में तब तक नहीं जानती थीं, जबतक उन्हें कोरोना नहीं हो गया. अस्पताल में एक महीने तक रहने, जिसमें 20 ऑक्सीजन पर रहने के बाद सिंह को कठिन विकल्प चुनना पड़ा.

अनीशा सिंह ने द क्विंट को बताया, "मेरे पीरियड्स नियमित नहीं थे. जब मैंने दो महीने तक अपने पीरियड्स की तारीख मिस की, तब भी मैंने कोई ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब मेरे भीतर लक्षण आने शुरू हुए, तो मैंने कुछ ब्लड टेस्ट करवाए. जिनसे पता चला कि मैं गर्भवती थी. मेरे पति और मुझे लगा कि इस उथल-पुथल के बीच यह आशा की किरण है. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा स्वास्थ्य इतना खराब हो जाएगा और बच्चे का विकास शुरुआती तीन महीनों में जैसा होना चाहिए, वैसा नहीं रहेगा. दोस्तों और परिवार ने कहा कि यह शुरुआती दिन ही हैं. लेकिन आखिर में मैंने अपना बच्चा खो दिया."

डॉ नुपुर ने द क्विंट को बताया, "शुरुआती तीन या चार महीनों में कई महिलाओं में संक्रमण फैला और उन्हें स्वास्थ्य सलाह पर गर्भपात करवाना पड़ा. कुछ पिताओं को अपने बच्चे और अपने पार्टनर में चुनाव करना पड़ा. कुछ मामलों में डॉक्टरों ने सिर्फ सात या आठ महीने में डिलेवरी करवाने की सलाह दी. लेकिन आखिर में वे ना बच्चे को बचा पाए और ना मां को." डॉ नुपुर ने यह भी कहा कि लगातार होने वाले सीटी स्कैन से कुछ मामलों में गर्भ को नुकसान भी हुआ.

डॉ मंजू गुप्ता कहती हैं कि दूसरी लहर में गर्भवती महिलाओं के लिए नियमित इलाज भी बहुत मुश्किल हो गया. जिससे उनके लिए कोरोना का खतरा ज्यादा बढ़ गया. कोविड से संक्रमित ना रहने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए भी नियमित स्वास्थ्य सेवा मिलना मुश्किल हो गई थी. जिससे और भी ज्यादा कॉम्प्लिकेशन्स हो गए.

डॉ मंजू कहती हैं, "शुरुआती दिन काफी डराने वाले और बहुत उदासीन करने वाले थे. हर फोन मुझे डरा देता था. मैं सोचती कि जो व्यक्ति इमरजेंसी में है, काश कि वह मेरा मरीज ना हो. हम एक संभावित मां को तीन वैक्सीन देते हैं- अब इसमें एक और जोड़ा जाएगा. क्या यह उसे कोविड के नए वैरिएंट के साथ जोखिम में रखने से बेहतर नहीं है. हम यहां एक नहीं, बल्कि दो जिंदगियों की बात कर रहे हैं."

WHO की रिपोर्ट ने इसकी पुष्टि की है. रिपोर्ट में कहा गया कि वैक्सीन से मां और भ्रूण दोनों की रक्षा होती है, क्योंकि एंटीबॉडी, नियमित होने वाले एंटेनाटल प्रोटोकॉल के तहत बच्चे में प्रवेश करते हैं.

फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनेकोलॉजिकल सोसायटीज ऑफ इंडिया ने गर्भवती और बच्चों को दुग्धपान करवाने वाली महिलाओं के लिए टीकाकरण की सलाह दी है. लेकिन स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सिर्फ दुग्धपान करवाने महिलाओं को ही टीकाकरण की अनुमति दी है और गर्भवती महिलाओं को छोड़ दिया है. जबकि यह सबसे ज्यादा जोखिम का सामना करने वाला समूह है.

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