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मुमकिन है कोरोना के साथ जीना - एक डॉक्टर से समझिए तरीका

ऐसे ही एक कोरोना वॉरियर हैं- दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में कार्यकरत डॉक्टर अरुण पांडेय.

अश्विनी शुक्ला
भारत
Updated:
मुमकिन है कोरोना के साथ जीना - एक डॉक्टर से समझिए तरीका
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मुमकिन है कोरोना के साथ जीना - एक डॉक्टर से समझिए तरीका
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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लॉकडाउन के इस दौर में कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जो मिसाल बन रही हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों से कोरोना वॉरियर्स की खबरें सामने आ रही हैं, जो सिस्टम के साथ मिलकर या खुद के दम पर कोरोना वायरस से जुड़ी दिक्कतों से लड़ रहे हैं. ऐसे ही एक कोरोना वॉरियर हैं- दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में कार्यरत असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर अरुण पांडेय.

महामारी के बीच डॉक्टर पांडेय अपने सोशल मीडिया अकाउंट से लोगों को मेडिकल सलाह और साथ ही साथ मोटिवेशन देने की कोशिश में जुटे हैं.

डॉक्टर अरुण पांडेय दिव्यांग हैं, वो इसे अपनी कमजोरी नहीं मानते. पांडेय का कहना है कि कमियां आपको और बेहतर करने के लिए प्रेरणा देती हैं. फिलहाल, लॉकडाउन के दौरान डॉक्टर अरुण पांडेय अपनी प्रोफेशनल जिम्मेदारियां निभाते हुए हॉस्पिटल तो जा ही रहे हैं. ओपीडी और इमरजेंसी जैसी सर्विसेज में अपना योगदान दे रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट को ऐसा प्लेटफॉर्म बनाया है, जहां दूसरे डॉक्टर्स उनके साथ मिलकर लोगों की मदद कर रहे हैं.

हाल ही में 15 अप्रैल से लेकर 3 मई तक डॉक्टर पांडेय के फेसबुक पेज पर इंफेक्शन, हार्ट, डायबिटीज से लेकर कैंसर तक 19 स्पेशलिस्ट अलग-अलग दिन 1-1 घंटे के लिए आए, लोगों को सलाह दी, साथ ही सवालों के जवाब भी दिए. ये मुहिम करीब 1.5 लाख लोगों तक पहुंची है.

डॉक्टर अरुण पांडेय(फोटोः Facebook)
वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रति हजार लोगों पर सिर्फ 0.8 डॉक्टर मौजूद हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के ग्लोबल स्टैंडर्ड (प्रति 1000 लोगों पर 1 डॉक्टर) से कम है. 

लॉकडाउन के बाद अब ये स्थिति और भी गंभीर हो गई है, कई लोग परामर्श के लिए मोबी-डॉक्टर, या ऑनलाइन डॉक्टर पर निर्भर है. ऐसे में फेसबुक लाइव के जरिये डॉक्टरों का लोगों से जुड़ना पब्लिक हेल्थ की दिशा में एक अच्छा कदम है.

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लॉकडाउन को दूसरी बार 3 मई से 17 मई तक बढ़ाए जाने को लेकर डॉक्टर पांडेय का कहना है कि लोगों को जरूरत अब सोशल डिस्टेंसिंग की नहीं होनी चाहिए बल्कि फिजिकल डिस्टेंसिंग की होनी चाहिए.

उनका मानना है कि लोगों से सिर्फ शारीरिक दूरी बनाए रखना काफी होगा. इसी को ध्यान में रखते हुए डॉक्टर पांडेय ने एक और सोशल मीडिया कैंपेन शुरू किया, जिसको नाम दिया- जीना इसी का नाम है. इस कैंपेन में हर रोज उनके फेसबुक पर अपने-अपने क्षेत्रों में अच्छा कर रही हस्तियां आती हैं और लोगों को बताती हैं कि आखिर ऐसे दौर में हताश क्यों न हों? कैसे मेंटल हेल्थ का ध्यान रखें.

इस कैंपेन में सिंगर कैलाश खेर, IAS ऑफिसर इरा सिंघल, अमिताभ श्रीवास्तव, एक्टर सत्यकाम आनंद, एम एस बिट्टा समेत कई ऐसे लोग शामिल हो चुके हैं. इस मुहिम का मकसद है कि लोगों को हताशा से उबारने में योगदान दिया जा सके.

कोरोना के साथ कैसे जिएं?

कुछ ही दिन पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, हेल्थ मिनिस्ट्री के सेक्रेटरी लव अग्रवाल ने एक राय दी कि लोगों को अब कोरोना वायरस के साथ जीना आना चाहिए. डॉक्टर पांडेय भी इसे सही मानते हैं. उनका कहना है कि अगर लॉकडाउन हटा भी लिया जाए तो सब कुछ सामान्य नहीं होने जा रहा है.

ऐसे में अगले कुछ समय के लिए तो चार चीजों के लिए गांठ बांध लेना चाहिए

  • अब सोशल डिस्टेंसिंग की जगह हमें फिजिकल डिस्टेंसिंग पर आना होगा, जब तक कोरोना वायरस महामारी खत्म नहीं हो जाती.
  • सैनिटाइजेशन की प्रक्रिया जो हम इस वक्त इस्तेमाल कर रहे हैं जैसे- 20 सेकेंड तक हाथ धुलना, मोबाइल के साथ ही साथ जेब में एक सैनेटाइजर भी होना चाहिए. इसे आगे भी खुद के लिए लागू रखना ही होगा.
  • जो हम पहले गले की खराश, हल्के जुकाम को नजरंदाज कर दिया करते थे, अब उसे नजरंदाज करना बिल्कुल छोड़ना होगा. पर्सनल हाइजिन का ध्यान रखना होगा.
  • सार्वजनिक जगहों पर थूकने या धूम्रपान करने की आदत पर अब जो पाबंदी लगी हुई है, उसे सिर्फ पाबंदी के नजर से नहीं देखना चाहिए. उसे अब अपने व्यवहार में हमें लाना ही होगा.

यूपी के बलिया जिले के रहने वाले अरुण पांडेय लोकोमोटर डिसेबिलिटी ( पोस्ट पोलियो रेसिड्यूअल पालसी) के साथ ऑर्थोपिडीक सर्जन बनने वाले पहले भारतीय हैं. इससे पहले वो AIIMS के ऑर्थोपिडीक डिपार्टमेंट में बतौर सीनियर रेजिडेंट काम कर चुके हैं. एक डॉक्टर होने के साथ ही साथ वो राष्ट्रीय स्तर के कवि हैं, अलग-अलग मंचों पर कविता पाठ के लिए बुलाए जाते रहे हैं.

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Published: 11 May 2020,09:31 PM IST

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