Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019बिहार: महज 500 रू. ‘दिहाड़ी’ पर कोरोना से जंग लड़ रहे MBBS इंटर्न

बिहार: महज 500 रू. ‘दिहाड़ी’ पर कोरोना से जंग लड़ रहे MBBS इंटर्न

बिहार में पांच साल से नहीं बढ़ा मेडिकल इंटर्न स्टाइपेंड

शादाब मोइज़ी
भारत
Published:
“मोर्चे पर सबसे आगे तैनात होते हैं, लेकिन सुरक्षा कुछ नहीं”
i
“मोर्चे पर सबसे आगे तैनात होते हैं, लेकिन सुरक्षा कुछ नहीं”
(फोटो :iStock)

advertisement

“लोन लेकर पढ़ाई की, सोचा था इंटर्नशिप में पैसे मिलेंगे तो कुछ पैसे लोन के चुकेंगे. लेकिन डॉक्टर कहलाने के बावजूद हम मेडिकल इंटर्न को सिर्फ 500 रुपए रोज के हिसाब से मिलता है. मतलब 15 हजार रुपए महीना, लेकिन ज्वाइन किए दो महीना हो गया अब तक पैसा नहीं मिला.”

ये दर्द बिहार के दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के इंटर्न डॉक्टर मनोज का है. मनोज की तरह ही बिहार के करीब 800 MBBS इंटर्न को इतना ही स्टाइपेंड मिलते हैं. बिहार में हर तीन साल पर डॉक्टरों के स्टाइपेंड में बढ़ोतरी होने का सरकारी बात कही गई थी. लेकिन आखिरी बार साल 2015 में स्टाइपेंड बढ़ाया गया था.

अब डॉक्टरों के एक एसोसिएशन ने बिहार सरकार से अपने वादे पूरे करने को लेकर चिट्ठी लिखी है. यूनियन रेसिडेंट एंड डॉक्टर्स एसोसिएशन इंडिया के अध्यक्ष और पटना एम्स में काम कर रहे डॉक्टर विनय बताते हैं, "डॉक्टरों पर फूल, मान ,सम्मान और कोरोना वॉरियर्स कहना अच्छी बात है, लेकिन उन वॉरियर्स के लिए स्टाइंपेंड क्यों रोककर रखा गया है? हमने जूनियर डॉक्टर से लेकर इंटर्न के स्टाइपेंड में बढ़ोतरी की मांग करते हुए सीएम नीतीश कुमार से लेकर हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडे को भी चिट्ठी लिखी है. लेकिन किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. 5 साल से एक ही स्टाइपेंड पर डॉक्टर काम कर रहे हैं."

बिहार सरकार के अंडर 9 मेडिकल कॉलेज हैं, और सीनियर रेजिडेंट, जूनियर रेजिडेंट और इंटर्न को मिलाकर करीब 3000 डॉक्टर हैं. इससे पहले साल 2019 में भी स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग को लेकर जूनियर डॉक्टर हड़ताल पर गए थे. तब उन्हें आश्वासन मिला था कि उनकी मांग पर जल्द कार्रवाई होगी.

“मोर्चे पर सबसे आगे तैनात होते हैं, लेकिन सुरक्षा कुछ नहीं”

डीएमसीएच के ही एक और इंटर्न डॉक्टर सौरव बताते हैं कि कैसे बिना कोरोना की परवाह किए उनके साथी और वो फ्रंट पर आकर काम कर रहे हैं. सौरव कहते हैं,

“जब कोई मरीज इमरजेंसी वॉर्ड में आता है तो सबसे पहले हम इंटर्न या जूनियर डॉक्टर उसे देखते हैं, चाहे कोरोना का टाइम हो या आम दिन. हफ्ते में कई दिन 16-16 घंटे की ड्यूटी भी होती है, लेकिन स्टाइपेंड के नाम पर 15 हजार रुपए महीना मिलता है.”

“अपना खर्च निकालना मुश्किल, घर वालों को बहुत उम्मीद”

डॉक्टर विनय बताते हैं कि बिहार सरकार मेडिकल पीजी स्टूडेंट्स के लिए स्टाइपेंड 50,000 रुपये, 55,000 रुपये और 60,000 रुपये देती है. जबकि बाकी जगह 80 से एक लाख रुपया मिलता है. कोरोना से जंग में हम लोग पूरी शिद्दत से काम कर रहें हैं, कोई भी डॉक्टर पीछे नहीं हट रहा है.

बता दें कि बिहार में डॉक्टर और मरीज का अनुपात का बुरा हाल है. इंडियन काउंसिन ऑफ मेडिकल रिसर्च के नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 के मुताबिक बिहार में 43,000 लोगों पर एक एलोपैथिक डॉक्टर है. 

डीएमसीएच के ही इंटर्न डॉक्टर मनोज कहते हैं,

“बिहार में डॉक्टर कम हैं, हम सब इस कोरोना की महामारी के वक्त में काम कर रहे हैं, हमें भले ही पैसा नहीं मिला है फिर भी हम काम नहीं छोड़ सकते हैं, क्योंकि हम मरीज को छोड़ नहीं सकते हैं. हमें स्टाइपेंड सिर्फ 15 हजार रुपया मिलता है, जिसमें से 5 हजार तो खाने में ही खर्चा हो जाता है, फिर कपड़ा और बाकी जरूरत. इतने साल से घर वालों ने पढ़ाया, उन्हें आर्थिक रूप से सहयोग नहीं दे पाता हूं वो अलग लेकिन आगे की पढ़ाई है. अभी एक साल इंटर्नशिप फिर पीजी की तैयारी. डॉक्टर की दुनिया बाहर से बहुत हसीन लगती है लेकिन सच्चाई हम जैसे मिडिल क्लास से आने वाले लोग ही जानते हैं.”

नाम ना बताने की शर्त पर पीएमसीएच के डॉक्टर बताते हैं कि दिल्ली से लेकर मुंबई के डॉक्टरों का स्टाइपेंड हम लोगों से ज्यादा है. जबकि सब एक तरह का काम एक तरह की ड्यूटी कर रहे हैं. सेंट्रल मेडिकल कॉलेजों में इंटर्न को 23 हजार रुपये स्टाइपेंड दिया जा रहा है. हम लोग बोलेंगे तो डर है कि कहीं फेल ना कर दिया जाए एग्जाम में.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

क्विंट ने बिहार के हेल्थ मिनिस्टर मंगल पांडे से इस मामले पर उनकी राय जाननी चाही लेकिन मंगल पांडे किसी मीटिंग में व्यस्त थे. साथ ही बिहार के हेल्थ सेक्रेट्री संजय कुमार से भी फोन कर डॉक्टरों की मांगों के बारे में सरकार का पक्ष जानना चाहा, लेकिन कई बार कॉल और मैसेज के बाद भी जवाब नहीं मिला. जैसे ही दोनों मे से किसी का भी जवाब आता है, खबर को अपडेट किया जाएगा.

उत्तर प्रदेश में उठी मांग

बता दें कि उत्तर प्रदेश में भी इंटर्न डॉक्टर अपने स्टाइपेंड की मांग उठा रहे हैं. उन्हें बिहार के डॉक्टरों से भी कम सिर्फ 7500 रुपये हर महीने का स्टाइपेंड दिया जाता है, जो देश में सबसे कम है. दूसरे प्रदेशों में इससे दो गुना या ढाई गुना ज्यादा स्टाइपेंड है.

कर्नाटक ने बढ़ाया हाथ

वहीं दूसरी ओर कर्नाटक में 8,000 से अधिक रेजिडेंट डॉक्टरों को राज्य सरकार ने बड़ी राहत दी है. राज्य सरकार इंटर्न डॉक्टरों का स्टाइपेंड बढ़ाकर 30 हजार रुपये कर दिया है. साथ ही 1 से 3 साल तक के पीजी स्टूडेंट्स के लिए मानदेय 40,000 रुपये, 45,000 रुपये और 50,000 रुपये तक बढ़ा दिया गया है. ये लोग भी पिछले कुछ वक्त से स्टाइपेंड बढ़ाने की मांग कर रहे थे.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT