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भारत के पास कोरोना के खिलाफ जल्द ही तीसरी वैक्सीन स्पुतनिक V होगी. देश के ड्रग रेगुलेटर ने रूस की इस वैक्सीन को इमरजेंसी यूज की मंजूरी दे दी है. ये मंजूरी रूस में किए गए क्लीनिकल ट्रायल और भारतीय फार्मा प्रमुख डॉ रेड्डी लैब के फेज 3 क्लीनिकल ट्रायल पर आधारित है.
इंडियास्पेंड के इस आर्टिकल में फार्मा और हेल्थकेयर सेक्टर की एनालिस्ट नित्या बालासुब्रमण्यम बताती हैं कि मॉडर्ना, फाइजर, एस्ट्राजेनेका, स्पुतनिक जैसी फार्मा कंपनियों की घोषणाओं के आधार पर दुनिया भर में सालाना करीब 14 अरब वैक्सीन तैयार हो सकती हैं.
यह डेटा घोषणाओं पर आधारित है और हम दुनिया के सामने आने वाले वैक्सीन की कमी के संकट से वाकिफ हैं, अक्सर जमीनी वास्तविकताएं अलग होती हैं. Pfizer से लेकर AstraZeneca, जॉनसन एंड जॉनसन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, ये सभी कई कारणों से देरी का सामना कर चुके हैं, जॉनसन एंड जॉनसन की तो लाखों खुराक वेस्ट हुई हैं.
महामारी से पहले, भारत की तीन बड़ी फार्मा कंपनियां, सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), भारत बायोटेक और बायोलॉजिकल E सालाना 2.3 अरब खुराक बना रही थीं. ये हर तरह के टीके हैं. कुल मिलाकर क्षमता बहुत अधिक है.
जब अप्रैल 2020 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर वैक्सीन के लिए एस्ट्राजेनेका ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ बड़े एक्सेस मैन्युफैक्चरिंग कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए, तो यह सौदा 'गोल्ड स्टैंडर्ड' के रूप में देखा गया कि दुनिया की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता सीरम इंस्टीट्यूट भारत और दुनिया को वैक्सीन प्रदान करेगी. 1 अरब डोज का ऑर्डर था. COVAX सुविधा के लिए 20 करोड़ डोज की डील पर भी हस्ताक्षर किए गए.
SII के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा था कि क्लीनिकल ट्रायल और मंजूरी से पहले ही वे वैक्सीन का स्टॉक करना शुरू कर देंगे.
जबकि कोविशिल्ड को भारत में जनवरी 2021 में इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई थी, सरकार ने सिर्फ 1 करोड़ डोज का ही ऑर्डर दिया. भारत में कोरोना की दूसरी लहर से लड़ते-लड़ते यह जल्दी ही 10 करोड़ डोज तक पहुंच चुकी है. लेकिन दुनिया भर में वैक्सीन की कमी के वक्त क्या सीरम इंस्टीट्यूट समय पर पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध करा सकेगा?
सीरम ने अपनी विनिर्माण क्षमता 6.5-7 करोड़ खुराक से 10 करोड़ खुराक प्रति माह तक बढ़ाने के लिए 3000 करोड़ रुपये के अनुदान के लिए अनुरोध किया. भारत की 90% वैक्सीन की आपूर्ति वर्तमान में सीरम इंस्टीट्यूट से होती है.
इकोनॉमिक टाइम्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत बायोटेक की Covaxin आपातकालीन उपयोग की मंजूरी पाने वाली भारत की पहली घरेलू वैक्सीन है. लेकिन इससे भारत की वैक्सीन की जरूरत के एक हिस्से की ही पूर्ति हो पाती है. इसकी वर्तमान वैक्सीन उत्पादन क्षमता एक महीने में 12.5 मिलियन खुराक है. लेकिन कंपनी ने सरकार से एक साल में 150 मिलियन से 500 मिलियन तक उत्पादन बढ़ाने में मदद करने के लिए फंडिंग की मांग की है. कंपनी ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) को पत्र लिखकर इसकी निर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए 100 करोड़ रुपये की मांग की है.
कंपनी नाक के टीके (Nasal Vaccine) का भी परीक्षण कर रही है, जो 'गेम-चेंजर' साबित हो सकता है. कंपनी के सीईओ, कृष्णा एला के मुताबिक नाक के टीके की एक बिलियन खुराक तैयार हो सकती है, जो कि अभी शुरुआती ट्रायल में है.
रूस की कोरोना वैक्सीन स्पुतनिक वी को DCGI से आपातकालीन उपयोग की मंजूरी मिल चुकी है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉ रेड्डीज लैब के साथ वैक्सीन इंपोर्ट करने और 10 करोड़ डोज डिस्ट्रीब्यूट करने की डील है.
रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड (RDIF) ने कई भारतीय फार्मा कंपनियों के साथ वैक्सीन प्रोडक्शन का करार किया है, जिसमें हैदराबाद की डॉ रेड्डीज लैब के अलावा हेटेरो बायोफार्मा, ग्लैंड फार्मा, स्टेलिस बायोफार्मा और विक्रो बायोटेक शामिल हैं. इनका मकसद सालाना 85 करोड़ डोज का उत्पादन करना है.
इसका कितना हिस्सा भारत के लिए होगा? कंपनियों का कहना है कि वे गर्मियों में भारत में एक महीने में 5 करोड़ खुराक का उत्पादन करने में सक्षम होंगे, लेकिन भारत सरकार ने कितना ऑर्डर दिया है, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है.
स्पुतनिक वी के अलावा जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन (Biological E के सहयोग से), नोवावैक्स वैक्सीन (सीरम इंडिया के सहयोग से), जायडस कैडिला की वैक्सीन भी रेस में हैं.
बायोलॉजिकल E अमेरिका के बेलर कॉलेज के साथ एक वैक्सीन का विकास कर रही है, जिसके लिए 10 लाख डोज का टारगेट है. इसने जॉनसन एंड जॉनसन की सिंगल डोज वैक्सीन के लिए भी कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है. ऐसा माना जा रहा है कि ये कॉन्ट्रैक्ट 60 करोड़ डोज के लिए है, लेकिन इसके प्रोडक्शन को लेकर ज्यादा कुछ नहीं पता है.
भारतीय फार्मा कंपनी Zydus Cadila अपनी वैक्सीन का प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन करेगी. कंपनी की इनहाउस क्षमता 10 करोड़ डोज की है. इसकी कोरोना वैक्सीन अभी क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे फेज में है.
अमेरिकी बायोटेक कंपनी नोवावैक्स की वैक्सीन का प्रोडक्शन भारत में सीरम इंस्टीट्यूट (SII) करेगा. कंपनी ने जुलाई 2020 में ही ये डील साइन की थी.
भले ही ये सभी विकल्प आशाजनक दिखते हैं और समय के साथ दूसरी वैक्सीन उपलब्ध होने के साथ सीरम इंस्टीट्यूट पर भारत के टीकाकरण कार्यक्रम को चलाने का बोझ कम हो जाएगा, यह भी एक तथ्य है कि देश में जितनी वैक्सीन का उत्पादन हो रहा है, उससे कहीं ज्यादा इसकी खपत है. कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान का और विस्तार करने के लिए इसकी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने की जरूरत है.
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