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दुनिया के तमाम देशों का तजुर्बा बताता है कि, कोरोनावायरस से प्रकोप से निपटने का सबसे अच्छा तरीका, पारदर्शिता है. हालांकि, भारत सरकार ने जनता को जागरूक करने के लिए कई एडवाइजरी प्रकाशित की हैं. लेकिन, सरकार ने पत्रकारों, रिसर्चरों और स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े अन्य लोगों के लिए, इस मामले से जुड़ी पर्याप्त जानकारी मुहैया नहीं कराई है. जिससे वो इस बात का आकलन कर सकें कि कोरोनावायरस के प्रकोप से निपटने की सरकार की रणनीति कितनी कारगर साबित हो रही है. अब तक इस बारे में कोई ठोस जानकारी सरकार ने नहीं दी है कि वो कोरोना वायरस के इस नए प्रतिरूप यानी कोविड-19 से संक्रमित लोगों को कैसे पहचान रहे हैं? उनका परीक्षण कैसे कर रहे हैं? और, संक्रमित लोगों के संपर्क में आए लोगों का पता लगाकर उनकी निगरानी कैसे कर रहे हैं?
इस महामारी को फैलने से रोकने के लिए जनता के पास जरूरी जानकारी होना जरूरी है.
ऐसे में ये वो दस सवाल हैं, जिनके जवाब सरकार को जरूर देने चाहिए.
शुरुआत में तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय देश में कोरोनावायरस से संक्रमित पाए जाने वाले हर केस की जानकारी दे रहा था. फिर चाहे वो कोरोनावायरस से प्रभावित देशों से यात्रा करने आए लोग हों (आयातित केस), या फिर भारत आए इन लोगों के संपर्क में आकर संक्रमित हुए हों. (लोकल संक्रमण).
लेकिन, अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने वायरस से संक्रमित लोगों के बारे में ऐसी जानकारी सार्वजनिक करना बंद कर दिया है.
ये जानकारी बेहद अहम है. इसी से ये पता लगाया जा सकता है कि भारत में वायरस कैसे फैल रहा है. अगर, ऐसे पॉजिटिव केस सामने आने लगते हैं, जिन्हें न तो बाहर से संक्रमित कहा जा सकता है. और, न ही बाहरी लोगों के संपर्क में आए लोगों से स्थानीय लोगों में संक्रमण फैलने के खांचे में रखा जा सकता है. तो फिर, इसका मतलब ये होगा कि ये वायरस सामुदायिक स्तर पर ज्यादा तेजी से फैल रहा है. इस प्रक्रिया को वायरस का ‘सामुदायिक प्रसार या संक्रमण’ कहते हैं.
सरकार को चाहिए कि वो हर राज्य में अब तक कोविड-19 के इन्फेक्शन की जांच के लिए किए गए टेस्ट की जानकारी दे. ये बताए कि ये परीक्षण किस लैब में किए गए. ये आंकड़े इकट्ठे भी दिए जाएं और अलग-अलग दिन में हुए टेस्ट का ब्यौरा भी सरकार को देना चाहिए.
सरकार को बताना चाहिए कि जिन लोगों में कोरोनावायरस इन्फ़ेक्शन का परीक्षण किया गया, उनमें से कितने लोग कोरोनावायरस से प्रभावित देशों से होकर आए हैं. इनमें से कितने लोग ऐसे हैं, जो बाहर से आए इन लोगों के संपर्क में आकर संक्रमित हो गए. और कोरोनावायरस से संक्रमित ऐसे कितने लोग हैं, जिनका न तो बाहर से आने का इतिहास है और न ही ऐसे लोगों के संपर्क में आने का.
ये जानकारी होने पर स्वास्थ्य के जानकारों को ये पता लगाने में आसानी होगी कि क्या भारत में बाहर से आने वाले लोगों में संक्रमण की जांच ज्यादा हो रही है. या फिर उन स्थानीय लोगों का टेस्ट अधिक हो रहा है, जो बाहर से आए लोगों के संपर्क में आए.
या फिर सामुदायिक स्तर पर वायरस के प्रसार को जांचने के लिए पर्याप्त टेस्ट किए जा रहे हैं. सही जानकारी से ही ये भी पता लगाया जा सकता है कि क्या इस पैटर्न में पिछले कुछ दिनों में कोई बदलाव आया है.
कोरोनावायरस के ‘संदिग्ध मामलों’ की भारत की आधिकारिक परिभाषा में वो लोग भी शामिल हैं, जो हाल में किसी अन्य देश से यात्रा करके नहीं आए हैं. या वो ऐसे लोगों के भी संपर्क में नहीं आए हैं. फिर भी उन्हें सांस लेने की भयंकर समस्या है. और उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत है. लेकिन, उनकी इस बुरी हालत की कोई और ठोस वजह समझ से परे है.
सरकार को इस विरोधाभास पर अपना रुख साफ करना चाहिए. क्या राज्य स्तर के आधिकारी, आईसीएमआर के तय किए मानकों का पालन कर रहे हैं? या फिर कुछ राज्यों ने कोरोनावायरस के परीक्षण का दायरा बढ़ाकर उसमें इन ‘संदिग्ध मामलों’ को भी शामिल कर लिया है, जिनका न तो किसी अन्य देश से आने का रिकॉर्ड है और न ही ऐसे लोगों के संपर्क में आने का.
हालांकि, आईसीएमआर ऐसे ‘संदिग्ध मरीजों’ को खुद से जांच कराने की इजाजत नहीं देता, जो न बाहर से यात्रा कर के आए हैं और न ही ऐसे लोगों के संपर्क में आए हैं. लेकिन, आईसीएमआर ने ये कहा कै कि देश में 51 लैब हर हफ्ते 20 ऐसे लोगों का टेस्ट कर रही हैं, जो सांस लेने में भयंकर तकलीफ की शिकायत कर रहे हैं.
जानकारों को आशंका है कि सामुदायिक इन्फेक्शन का पता लगाने के नाम पर ऐसे ही टेस्ट किए जा रहे हैं. जिसका मतलब ये है कि ये नमूने किसी समुदाय की नुमाइंदगी नहीं करते. इसीलिए कोरोना वायरस के टेस्ट के लिए लिए जा रहे सैंपल के बारे में और जानकारी की जरूरत है.
आईसीएमआर ने एलान किया है कि 51 मान्यता प्राप्त निजी लैब को कोरोना वायरस का टेस्ट करने की मंजूरी दी जाएगी. 17 मार्च को जारी बयान में आईसीएमआर ने निजी लैब से अपील की कि वो ये टेस्ट मुफ्त में करें.
लेकिन, सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वालों ने इस बात को लेकर आशंकाएं जताई हैं कि क्या निजी लैब को उन लोगों के टेस्ट की इजाजत भी दी जाएगी, जो टेस्ट के लिए जरूरी आईसीएमआर के वो सख्त मानक, जिनका पालन सरकारी लैब करती हैं, भले न पूरे करते हों, पर इसके लिए पैसे देने को तैयार हों. इससे तो निजी लैब कोरोना वायरस के परीक्षण में असमानता पैदा करेंगे. इस मामले में भी स्वास्थ्य मंत्रालय को अपना रुख साफ करना चाहिए.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च का कहना है कि भारत के पास कोरोना वायरस के परीक्षण की 1.5 लाख किट मौजूद हैं. और ऐसी 10 लाख किट बाहर से मंगाई गई हैं.
लेकिन, आईसीएमआर को इस बारे में और जानकारी देनी चाहिए. भारत के पास टेस्ट के कितने रिएजेंट और परीक्षण का सामान है? इसके लिए कितने स्टॉक का ऑर्डर दिया गया है और ये कब तक भारत पहुंचेगा? ऐसी खरीद के लिए बजट कितना है? क्या सरकार बजट की कमी के कारण इन सामानों को देश में जमा करने में मुश्किल महसूस कर रही है? क्या भारत इन रिएजेंट और उपकरणों का घर में ही उत्पादन कर सकता है?
इस समय देश में कोरोना वायरस के परीक्षणों की निगरानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च कर रही है. आईसीएमआर ही राज्यों को भी टेस्टिंग किट मुहैया करा रही है.
सवाल ये है कि केंद्र सरकार, राज्यों की इन चिंताओं का समाधान कैसे कर रही है?
सरकार इस बात के आंकड़े तो लगातार जारी कर रही है कि एयरपोर्ट, बंदरगाहों और स्थल सीमा चौकियों पर कितने लोगों की स्क्रीनिंग की जा रही है. हालांकि, केंद्र सरकार को ये भी चाहिए कि वो राज्यवार और अलग-अलग शहरों में अलग-थलग यानी आइसोलेशन और क्वारंटाइन में रखे गए लोगों के आंकड़े भी बताए.
हालांकि, केवल सफाई की कमी ही एक समस्या नहीं है. जैसे-जैसे कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच का दायरा बढ़ रहा है, सरकार को ये भी सुनिश्चित करना होगा कि जो स्वास्थ्य कर्मी इन लोगों की जांच कर रहे हैं और उनका रख-रखाव कर रहे हैं, उनके पास अपनी सुरक्षा के भी पर्याप्त उपाय उपलब्ध हों. ऐसी सुविधाएं बढ़ाने को लेकर सरकार की रणनीति क्या है?
कोरोना वायरस से प्रभावित देशों से आने वाले यात्रियों के एयरपोर्ट पर उतरने को लेकर नियम एकदम साफ और बेहद सख्त है. फिर भी, ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें एयरपोर्ट पर जांच में तो मुसाफिर कोरोना वायरस से संक्रमित नहीं पाए गए. लेकिन बाद में उनका टेस्ट पॉजिटिव निकला. ये लोक ट्रेन या सार्वजनिक परिवहन के अन्य माध्यमों से देश के दूसरे इलाकों तक गए. जिससे इनके जरिए वायरस बड़ी संख्या में अन्य लोगों तक भी पहुंच गया.
कई अधिकारी ये बात साफ कर चुके हैं कि भारत की आबादी इतनी ज्यादा है कि बड़े पैमाने पर लोगों की जांच करना संभव नहीं है. लेकिन, कम टेस्ट करने का ख़तरा ये है कि सामुदायिक स्तर पर वायरस का प्रकोप पकड़ में न आ पाने की आशंका बढ़ जाती है.
क्या सरकार इन सभी आंकड़ों पर नजर रखेगी और इनकी जानकारी प्रकाशित करेगी? क्या सरकार ये सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठा रही है कि अस्पतालों में होने वाली हर मौत की जानकारी दर्ज की जाए.
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ये लेख मूलरूप से स्क्रोल में छपा था और इसे यहां मंजूरी के साथ पुन:प्रकाशित किया गया है
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