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सेना के फ्लाई पास्ट पर क्या सोचते हैं देश के ‘कोरोना वॉरियर्स’? 

कुछ डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना को लेकर जब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता इतने बड़े आयोजन की जरूरत नहीं है.

अस्मिता नंदी
भारत
Updated:
सेना के फ्लाई पास्ट आयोजन पर डॉक्टरों ने अपनी राय दी है.
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सेना के फ्लाई पास्ट आयोजन पर डॉक्टरों ने अपनी राय दी है.
(फोटोः Altered by Quint)

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कोरोना वायरस से जंग में जुटे कोरोना वॉरियर्स के सम्मान में देश के तीनों सेनाओं ने 3 मई को फ्लाई पास्ट का आयोजन किया. इसका ऐलान सीडीएस बिपिन रावत ने 1 मई को किया था. पीएम मोदी, गृहमंत्री समेत कई हस्तियों ने इस आयोजन की जमकर तारीफ की वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इससे खुश नजर नहीं आ रहे हैं. कुछ विपक्ष के नेता, पूर्व सैन्य अधिकारियों के अलावा जिनके लिए ये आयोजन किया गया था मतलब डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी उनमें से भी कुछ लोगों को ये कार्यक्रम कुछ खास रास नहीं आया.

कुछ डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना को लेकर जब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकलता इतने बड़े आयोजन की जरूरत नहीं है.

'कोरोना वॉरियर्स की सुरक्षा के लिए किट को देनी चाहिए प्राथमिकता'

पुणे के ससून जनरल हॉस्पिटल में कोविड-19 वॉर्ड में काम कर रही डॉक्टर सुब्रना सरकार का मानना है कि, ताली बजा देना कुछ खुशी का अहसास तो दिला देता है लेकिन अभी इतने बड़े आयोजन की जरूरत नहीं है. इसका जब तक कोई पूर्ण रूप से ठोस परिणाम नहीं निकलता है, तब तक संसाधनों और समय उन चीजों पर केंद्रित करें जो इस समय अधिक महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने कहा,

‘मुझे नहीं लगता है कि एक बड़ी झांकी पूरे देश की मानसिकता को बदल सकती है.’

डॉ सरकार ने सुरक्षात्मक संसाधनों को लेकर कहा, इस लड़ाई में अस्पताल के चौकीदार को अक्सर कम प्राथमिकता दी जाती हैं. हालांकि, ये वही लोग हैं जो फर्श को साफ करने, कूड़े का निपटान करने और कोविड-19 से मरे लोगों के शरीर को संभालने जैसे महत्वपूर्ण काम करते हैं. इन सब से ही अस्पताल चल रहा है. उन्होंने कहा, हो सकता है सरकार उन्हें बेहतर मदद देने के लिए फिर से ध्यान दे सकती है.

इसी तरह के सवाल झारखंड के गढ़वा में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में कार्यरत एक मेडिकल स्टॉफ ने उठाए थे. मेडिकल स्टॉफ ने अपनी पहचान न बताने के शर्त पर बताया कि, वह राज्य में लौटे प्रवासी मजदूरों की जांच में शामिल स्वास्थ्य अधिकारियों की टीम का हिस्सा थीं और मजदूरों को सरकारी शेल्टर में क्वॉरंटीन किया गया था. उन्होंने बताया कि, वहां डॉक्टरों और आयुष डॉक्टरों को N-95 मास्क दिए गए थे. लेकिन जो मल्टी पर्पज वर्कर्स, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता जैसे लोग जो सीधे प्रवासियों के संपर्क में आ रहे थे, उन्हें साधारण मास्क दिया गया था.

'डॉक्टरों की एक दिन की प्रशंसा उनके खिलाफ हिंसा नहीं रोक सकती'

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल के एक जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर, जिन्होंने अपना नाम नहीं बताया, द क्विंट से कहा, 'ये छोटे-छोटे 'हथकंडे' बिल्कुल भी मदद नहीं करेंगे. डॉक्टरों के लिए सच्ची प्रशंसा केवल एक मरीज ही कर सकते हैं. दुर्भाग्य से, ये एक दिन का आयोजन डॉक्टरों के खिलाफ हो रहे हिंसा और संदेह को नहीं बदलेगी. उन्होंने कहा,

‘प्रशंसा एक दिन के आयोजन से नहीं हो सकती. इसे लोगों के दिमाग में बैठाना होगा.’

'जान जोखिम में डालने के लिए महिमामंडन की जरूरत नहीं'

दिल्ली के एम्स में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर कार्तिकेयन एम ने कहा, 'फ्रंटलाइन डॉक्टरों को अपनी जान को जोखिम में डालने के लिए महिमामंडित करने की जरूरत नहीं है. अगर कोई व्यक्ति मर जाता है, तो इसमें कोई गौरव नहीं है. हमें ये सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि सभी अस्पतालों में सभी डॉक्टरों को उचित सुरक्षात्मक किट मिल रहे हैं कि नहीं, जिसकी उन्हें जरूरत है. मैं एम्स में काम करता हूं इसलिए मुझे एक उचित पीपीई मिल रहा है लेकिन मुझे पता है कि मेरे कई दोस्त जो बड़े अस्पतालों में काम नहीं कर रहे हैं उन्हें बहुत पतले सूट मिल रहे हैं जो वास्तव में मदद नहीं करते हैं.' उन्होंने आगे कहा कि,

‘अगर कोई डॉक्टर कोविड-19 की वजह से मर जाता है तो सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो.’

'सेना के सराहने पर कोई हर्ज नहीं'

दूसरी ओर, कुछ डॉक्टरों का ये भी मत है कि फ्रंटलाइन के कार्यकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करना, विशेषकर जब सेना कर रही हो तो इसमें कोई हर्ज नहीं है. ये कठिन समय में मनोबल को बढ़ाएगा.

लखनऊ स्थित केजीएमयू अस्पताल में कोरोना वार्ड के प्रमुख डॉ डी हिमांशु ने कहा, “हम हमेशा भारतीय सशस्त्र बलों का उत्साह बढ़ाते हैं और जब वे डॉक्टरों की सराहना करने के लिए कुछ करते हैं, तो इससे हमेशा स्पेशल महसूस कराता है.

पीजीआईएमएस रोहतक के एक जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर कहते हैं, “डॉक्टर लगातार कड़ी परिस्थितियों में काम करते हैं. इसलिए सशस्त्र बलों के आयोजित कार्यक्रम डॉक्टरों को एक मनोवैज्ञानिक राहत प्रदान कर सकती है. इससे स्वास्थ्यकर्मी निश्चित रूप से प्रेरित होंगे और बेहतर भागीदारी करेंगे.'

मुंबई स्थित जेजे अस्पताल में फाइनल ईयर के रेसिडेंट डॉक्टर शिवांग शुक्ला कहते हैं कि, 'थोड़ी प्रशंसा कोई नुकसान नहीं करेगी, बल्कि ये स्पेशल महसूस कराएगी. लेकिन एक डॉक्टर के तौर पर मैं सरकार से कुछ ठोस उपाय भी चाहता हूं जैसे कि सभी को पीपीई किट मिले और सरकारी निर्देशों का बेहतर इंप्लिमेंट होगा.

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Published: 03 May 2020,07:37 PM IST

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