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कोविड पर विदेशी मदद: केंद्र से झारखंड-महाराष्ट्र को क्या मिला?

महाराष्ट्र और झारखंड के कई अस्पतालों का कहना है कि उन्हें विदेशी सहायता का हिस्सा नहीं मिल रहा है

निखिला हेनरी & मोहम्मद सरताज आलम
भारत
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एक नेशनल हेल्थ मिशन ऑफिसर कहते हैं- 'ये महाराष्ट्र है. हम केंद्र के सामने भीख मांगने को तैयार नहीं है.'

मई के पहले पखवाड़े में ही राज्य को विदेशी सहायता की खेप केंद्र सरकार से मिलने की उम्मीद थी. विदेशों से मिली सहायता का एक बड़ा हिस्सा अभी भी डिस्ट्रिब्यूशन पाइपलाइन के चक्कर में फंसा हुआ है. राज्य के करीब 2,300 अस्पतालों के लिए नेशनल हेल्थ मिशन को महज 190 वेटिंलेटर और 500 ऑक्सीजन सिलेंडर मिले हैं. राज्य को जितनी मदद चाहिए, उसका ये एक मामूली हिस्सा ही है.

मदद अटकी, राज्यों की अनदेखी

महाराष्ट्र ने केंद्र सरकार से रेमेडिसविर और एम्फोटेरिसिन-बी को भी भेजने के लिए कहा था. तेजी से फैल रहे ब्लैक फंगस की रोकथाम और इलाज में एम्फोटेरिसिन-बी असरदार बताई जा रही है. ये दोनों ही दवाएं इस साल अप्रैल और मई में अलग-अलग देशों से भेजी गई सहायता का हिस्सा थीं.

अब झारखंड की बात करें तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता साफ-साफ केंद्र पर नजरंदाज करने का आरोप लगाते दिखते हैं. द क्विंट से वो कहते हैं,

केंद्र ने इस गरीब राज्य की अनदेखी की है. हमें केंद्र से कुछ भी नहीं मिला है. हमने केंद्र से मदद मांगी है, लेकिन विदेशी मदद का एक भी हिस्सा हमें नहीं मिल सकता है.

झारखंड के रिकॉर्ड के मुताबिक, राज्य को 90 वेंटिलेटर, 90 ऑक्सीजन सिलेंडर, 150 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर और 3,200 रेमडेसिविर मिली हैं. राज्य को 212 BiPAP मशीनें मिली हैं. बता दें कि राज्य में 343 सरकारी अस्पताल हैं जिन्हें सप्लाई की जरूरत है.

अस्पतालों में इक्विपमेंट, जरूरी दवाओं की कमी

द क्विंट ने ऐसे कुछ अस्पतालों से बातचीत की जिन्हें सहायता मिलने की उम्मीद थी. इनमें से ज्यादातर ने ये कंफर्म किया कि उन्हें न तो मेडिकल इक्विपमेंट और न ही जरूरी दवाएं मिली हैं.

उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एमजीएम अस्पताल में एक इंटर्न डॉक्टर, दो हफ्ते से अधिक समय तक कोरोना वायरस संक्रमित होने की वजह से एडमिट रहे, उनके इलाज के लिए रेमेडिसविर की जरूरत थी. लेकिन अस्पताल के पास स्टॉक नहीं था. अस्पताल के एक सीनियर डॉक्टर कहते हैं- “हमें राज्य या केंद्र सरकार के विदेशी सहायता हिस्से से मदद नहीं मिली. अस्पताल को निजी कंपनियों से खरीदना पड़ा.''

उस डॉक्टर इंटर्न को एक हफ्ते के इंतजार के बाद रेमडेसिविर मिला, लेकिन उसे अभी तक अपने म्यूकोर्मिकोसिस या ब्लैक फंगस के इलाज के लिए एम्फोटेरिसिन-बी नहीं मिल सका. उसे इलाज के लिए लातूर के एमआईएमएसआर मेडिकल कॉलेज ले जाया गया. इस अस्पताल को भी केंद्र से विदेशी मदद नहीं मिली है.

एमआईएमएसआर मेडिकल कॉलेज के एक सीनियर डॉक्टर कहते हैं,"हमें दूसरे देशों से मदद की जरूरत है क्योंकि इंडियन मैन्युफैक्चरर के पास स्टॉक मौजूद नहीं है.’’

इस बीच, नांदेड़ के एक सरकारी अस्पताल में जहां तीन डॉक्टर COVID-19 से संक्रमित हैं, इस अस्पताल ने 7,000 रेमडेसिविर इंजेक्शन का ऑर्डर दिया है. नांदेड़ के इस अस्पताल के एक डॉक्टर कहते हैं,

“राज्य सरकार मदद में सक्षम नहीं है, हमने विदेशी सहायता की खेप मांगी है, क्योंकि इससे हमें बजट कम रखने में मदद मिलेगी.’’ इस अस्पताल को अभी तक मदद वाले पत्र का जवाब नहीं मिल सकता है.

महाराष्ट्र के तीन सरकारी अस्पतालों में काम कर चुके एक सीनियर डॉक्टर के मुताबिक, विदेशी सहायता का बड़ा हिस्सा मुंबई, पुणे और नागपुर में गर्वनमेंट मेडिकल इंस्टीट्यूशन को भेजा गया था. ये डॉक्टर आगे कहते हैं कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों के अस्पतालों की अनदेखी की गई, क्योंकि केंद्र से राज्य को जो विदेशी सहायता हिस्सा मिला, वो पूरे राज्य में वितरण के लिए पर्याप्त है ही नहीं.

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झारखंड में तो मंत्री भी नहीं पा रहे मदद

झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता का कहना है कि विदेशी सहायता पूल में अपने हिस्से के लिए राज्य ने 1,200 वेंटिलेटर केंद्र से मांगे थे लेकिन दिए गए 90. राज्य ने दो लाख न -95 मास्क मांगे थे, मिले 90 हजार. वो कहते हैं, 'केंद्र को बताना चाहिए कि सहायता हम तक क्यों नहीं पहुंची.' स्वास्थ्य मंत्री आगे कहते हैं कि विदेशी सहायता को लेकर उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर भी पूछताछ की थी.

मुझे नहीं बताया गया कि राज्य को अभी तक सहायता क्यों नहीं मिली, यह सरासर उपेक्षा है.राज्य को ऑक्सीजन प्लांट की जरूरत है, इसके लिए अभी तक विदेशी सहायता से भी मंजूरी नहीं मिली है.
बन्ना गुप्ता, स्वास्थ्य मंत्री, झारखंड

स्वास्थ्य मंत्री इस बात की पुष्टि करते हैं कि केंद्र को विदेशी सहायता जो मिली है, उसका एक हिस्सा भी राज्य को नहीं मिला है. राज्य के बड़े अस्पतालों में से एक राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, रांची के एक डॉक्टर ने द क्विंट को बताया कि अस्पताल को कोई विदेशी सहायता नहीं मिल सकी है.

हमने विदेशी सहायता आवंटन के लिए स्वास्थ्य विभाग को लिखा है. अभी तक कोई जवाब नहीं मिल सका है.
डॉक्टर, राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, रांची

इस बीच, द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 38 इंटीट्यूट्स को विदेशी सहायता के 40 लाख आइटम्स बांटे गए हैं. हालांकि, रिपोर्टर कलेक्टिव की जांच में पाया गया है कि सहायता के रूप में हासिल 57.69 लाख में से 3.05 लाख आइटम अभी भी ट्रांसिंट में फंसे हुए हैं.

(रित्विक भालेकर, द क्विंट के इनपुट के साथ)

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Published: 22 May 2021,10:57 PM IST

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