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झारखंड देश के वैसे चंद राज्यों में शामिल है, जहां कोरोना वायरस का एक भी पॉजिटिव केस नहीं पाया गया है. तो इसके क्या कारण हैं? क्या वाकई में यहां कोई केस सामने नहीं आया है या ठीक से जांच ही नहीं हो पाई है? एक चौंकाने वाली बात ये है कि करीब सवा तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य में महज 196 लोगों के सैंपल लिए गए हैं. क्या ये काफी है? राज्य सरकार ने 29 मार्च के बाद से कोरोना अपडेट बुलेटिन भी जारी नहीं किया है.
झारखंड सरकार ने 29 मार्च की शाम को जो जानकारी रिलीज की है, उसके मुताबिक महज 196 लोगों के टेस्ट हुए हैं. इनमें से 190 लोगों की रिपोर्ट निगेटिव आई है. 6 लोगों के टेस्ट रिजल्ट का अब भी इंतजार है. जब बड़े शहरों से भारी तादाद में दैनिक मजदूर अपने राज्यों को लौट रहे हैं तब भी झारखंड में टेस्टिंग की संख्या नहीं बढ़ी है.
झारखंड उन राज्यों में शामिल है, जहां से भारी तादाद में लोग दिल्ली, मुंबई, बंगाल आदि जगहों पर जाकर काम करते हैं. जब लॉकडाउन हुआ और उन राज्यों में लोगों की रोजी छिन गई तो वो अपने मूल निवास स्थान को लौटने लगे. झारखंड में भी भारी तादाद में लोग लौट कर आ रहे हैं. झारखंड सरकार ने भी इन्हें सीमा पर ही रोकने का फैसला किया है. लेकिन ताज्जुब की बात है कि इसके बावजूद राज्य में टेस्ट की संख्या नहीं बढ़ी है. उदाहरण के लिए 29 मार्च को पूरे राज्य में महज 17 सैंपल लिए गए.
कम स्क्रीनिंग के अलावा कई लापरवाही उदाहरण हैं. जैसे रांची के हिंद पीढ़ी से 17 लोगों को पकड़कर क्वॉरन्टीन में भेजा गया है. इनमें ज्यादातर विदेशी और कुछ दूसरे राज्यों के लोग हैं. ये लोग यहां 17-18 मार्च को आए थे. तो सवाल है कि ऐसा क्यों हुआ कि ये लोग बिना स्क्रीनिंग के राज्य में आए, 8-10 दिन तक लोगों के कॉन्टैक्ट में आए और फिर जाकर इनकी जानकारी प्रशासन को मिली?
लापरवाही का एक और मामला रांची से 11 बसों में 600 मजदूरों को पाकुड़, कोडरमा और अन्य जिलों में भेजे जाने का है. लोकल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक रांची के डीसी ने एक मंत्री के कहने पर ये इंतजाम किए. जबकि लॉकडाउन में ऐसा नहीं होना चाहिए था. और अगर ये करना जरूरी भी था तो मजदूरों की स्क्रीनिंग होनी चाहिए थी. ये भी नहीं मालूम को जहां वो गए हैं, वहां क्वॉरन्टीन हैं या नहीं? लोकल मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मामले में डीसी को नोटिस भी सर्व हुआ है.
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