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कोविड-19 मरीजों को मलेरिया की बीमारी में इस्तेमाल आने वाली दवा हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का डोज देने को लेकर दो बड़ी खबरें एक साथ हैं. एक मेडिकल जर्नल द लैंसेट में अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन सामने आया है, जिसकी मानें तो कोविड-19 के मरीजों को मलेरिया की दवा देना खतरनाक है.
दूसरी खबर है कि भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को लेकर नई गाइडलाइन जारी की है जिसमें कोविड-19 के मरीजों और उन मरीजों के गिर्द काम करने वाले कोरोना वॉरियर्स के लिए इस दवा को लेने की सलाह डोज के हिसाब से जारी की गयी है.
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने कोविड-19 के मरीजों के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को लेकर 22 मई को नई गाइडलाइन जारी की है. तीन पन्नों की इस गाइडलाइन में चौथे नंबर में किसे, कितनी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा का डोज लेना है उस बारे में हिदायत लिखी गई है-
मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन नामक दवा को लेने वाले हर छठे व्यक्ति की मौत हो गयी. 20 दिसंबर से 14 अप्रैल के बीच दुनिया के 671 अस्पतालों के 96 हजार से ज्यादा मरीजों पर हुए अध्ययन के ये आंकड़े हैं. रिसर्च में यह पाया गया है कि जिन समूहों में ये दवा दी गई उनमें मृत्यु दर उन समूहों से अधिक पाई गई, जिन्हें यह दवा नहीं दी गई.
इन चारों तथ्यों पर गौर करने से यह बात साफ है कि एंटीबायोटिक के साथ हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन देने का बहुत बुरा नतीजा सामने आया है. हर चौथे मरीज की इससे मौत हो सकती है. द लैंसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ एंटीबायोटिक दी गई, उनमें से 8 प्रतिशत मरीजों में हॉर्ट एरीथिमिया की बीमारी विकसित हो गई. वहीं, जिन मरीजों को यह दवा नहीं दी गई, उनमें केवल 0.3 प्रतिशत मरीजों में दिल की यह बीमारी देखी गई.
इस अध्ययन का नेतृत्व कर रहे प्रोफेसर मनदीप ने ब्रिटेन के अखबार द गार्जियन को बताया कि क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन से कोविड-19 मरीजों को कोई फायदा नहीं होता है. इसे आंकड़ों में साबित करने वाला अब तक का यह सबसे व्यापक अध्ययन माना जा रहा है.
डोनाल्ड ट्रंप ने यहां तक दावा किया था कि वे खुद कोरोना से बचने के लिए इसे ले रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति के दावे का आधार फ्रांस में हुआ एक प्रयोग था, जिसे फ्रांसीसी डॉक्टर डिडियर राओट ने अंजाम दिया था. कुछ दर्जन मरीजों पर प्रयोग के आधार पर उन्होंने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को दवा के तौर पर इस्तेमाल करने के अच्छे नतीजे बताए थे.
आज स्थिति यह है कि दुनिया में हर दस कोरोना पीड़ितों में से 3.1 अमेरिकी हैं. दुनिया में इस बीमारी से मरने वाले हर दस में 2.87 व्यक्ति अमेरिकी हैं. अमेरिका में 16 लाख 66 हजार से ज्यादा कोरोना मरीज हैं तो मरने वालों की तादाद 97 हजार से ज्यादा हैं.
दुनिया के स्तर पर अब तक हुए सबसे बड़े रिसर्च ने यही बताया है कि कोरोना मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन देना मौत के मुंह में धकेलना है.
अमेरिकी राष्ट्रपति के आग्रह पर भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा पर लगाए गये निर्यात प्रतिबंध को हटा लिया था. ऐसा करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने खुली धमकी भी दी थी. बहरहाल, भारत ने आगे बढ़कर मदद का हाथ बढ़ाया. मगर, यह मदद अमेरिका को क्या उल्टी पड़ गई? ताजा मेडिकल रिसर्च यही कह रहे हैं. यह रिसर्च भारत को भी आगाह कर रहा है.
भारत की स्थिति पर नजर डालें तो दुनिया में एक्टिव संक्रमित मरीजों की तादाद के मामले में यह पांचवें नंबर पर और कुल कोरोना मरीजों की संख्या के हिसाब से 11वें नंबर पर है. मौत के मामले में भारत 16वें नंबर पर है. लॉकडाउन के चौथे दौर में भारत अर्थव्यवस्था को खोलने और जन-जीवन को सामान्य बनाने की ओर बढ़ने की कोशिश में जुटा है. इसके बावजूद कोरोना मरीजों की तादाद बढ़ते हुए अब 6 हजार प्रतिदिन के स्तर को छू रही है. ऐसे में गृह मंत्रालय की नई गाइडलाइन डराने वाली है जिसमें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल के तरीके बताए गए हैं.
गाइडलाइन 1.3 में भारत में अलग-अलग हुए अध्ययनों का भी हवाला दिया गया है, जिसमें एम्स में 334 मरीजों पर किए गये प्रयोग में 248 में संक्रमण घटने के नतीजे मिले. दिल्ली के तीन अलग-अलग अस्पतालों से भी सकारात्मक नतीजे मिलने का जिक्र है. मगर, ये प्रयोग बहुत छोटे स्तर पर हैं यह भी सच है. एक ऐसे समय में जब 96 हजार मरीजों पर हुए प्रयोग के नतीजे दुनिया के सामने आ चुके हैं तो ऐसे में इन छोटे-मोटे प्रयोग के मायने नहीं रह जाते.
अमेरिका का उदाहरण सामने है जिसने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का जमकर इस्तेमाल किया, वहां बीमारी घटने के बजाए तेजी से बढ़ी. मृत्युदर भी भयावह है. खुद भारत इस दवा का सप्लायर देश रहा. ऐसे में क्या भारत अपने देश में भी वही प्रयोग दोहरा सकता है, जबकि उसके खतरे पर प्रायोगिक निष्कर्ष सामने हैं?
(प्रेम कुमार जर्नलिस्ट हैं. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इन विचारों से क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)
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