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एलोवेरा की खेती से किसान ने साल भर में कमाए करोड़ों रुपए… एलोवेरा (घृत कुमारी) की खेती मतलब कमाई पक्की. ऐसी खबरें अक्सर सोशल साइट्स और व्हॉट्सऐप ग्रुप पर वायरल होती रहती हैं. ऐसा नहीं है कि एलोवेरा से किसान कमाई नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस खेती के लिए कुछ जानकारियां होना जरूरी हैं, वरना फायदे की जगह नुकसान हो सकता है.
गांव कनेक्शन जब एलोवेरा से संबंधित कोई खबर प्रकाशित करता है, सैकड़ों किसान फोन और मैसेज कर उस बारे में जानकारी मांगते हैं, क्योंकि लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंच पाती है. पिछले कुछ सालों में एलोवेरा के प्रोडक्ट की संख्या तेजी से बढ़ी है. कॉस्मेटिक, ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर खाने-पीने के हर्बल प्रोडक्ट और अब तो टेक्सटाइल इंडस्ट्री में इसकी मांग बढ़ी है.
देखिए एलोवेरा प्रोसेसिंग ट्रेनिंग का पूरा वीडियो
केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) में ट्रेनिंग देने वाले प्रमुख वैज्ञानिक सुदीप टंडन ने गांव कनेक्शन को बताया, जिस तरह से एलोवेरा की मांग बढ़ती जा रही है ये किसानों के लिए बहुत फायदे का सौदा है. इसकी खेती कर और इसके प्रोडक्ट बनाकर दोनों तरह से अच्छी कमाई की जा सकती है. लेकिन इसके लिए थोड़ी सवाधानियां बरतनी होंगी. किसानों को चाहिए कि वो कंपनियों से कंट्रैक्ट कर खेती करें और कोशिश करें की पत्तियों की जगह इसका पल्प बेचें.’
सुदीप टंडन ने न सिर्फ इसकी पूरी प्रक्रिया गांव कनेक्शन के साथ साझा की बल्कि ऐसे किसानों से भी मिलवाया जो इसकी खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं. करीब 25 सालों से गुजरात के राजकोट में एलोवेरा और दूसरी औषधीय फसलों की खेती कर रहे हरसुख भाई पटेल (60 साल ) बताते हैं, “एलोवेरा की एक एकड़ खेती से आसानी से 5-7 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं. साल 2002 में गुजरात में इसकी बड़े पैमाने पर खेती हुई लेकिन खरीदार नहीं मिले. इसके बाद मैंने रिलायंस कंपनी से करार किया.
शुरू में उन्हें पत्तियां बेचीं लेकिन बाद में पल्प बेचने लगा. आजकल मेरा रामदेव की पतंजलि से करार है और रोजाना 5000 किलो पल्प का आर्डर है. इसलिए मैं दूसरी जगहों पर भी इसकी संभावनाएं तलाश रहा हूं. वो आगे बताते है , ‘किसान अगर थोड़ा जागरूक हो तो पत्तियों की जगह उसका पल्प निकालकर बेचें. पत्तियां जहां 5-7 रुपए प्रति किलो में बिकती है वहीं पल्प 20-30 रुपए में जाता है.”
इंजीनियरिंग के बाद कई साल तक आईटी क्षेत्र की बड़ी कंपनी में काम कर चुकीं बेंगलुरु की रहने वाली आंचल जिंदल एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए सीमैप में चार दिन की विशेष ट्रेनिंग करने आईं थीं, गांव कनेकशन से बात करते हुए वो बताती हैं, ऐलोवेरा जादुई पौधा है. इसके कारोबार में बहुत संभावनाएं हैं, क्योंकि आजकल हर चीज में इसका उपयोग हो रहा है. अब मैं यूपी के बरेली में शिफ्ट हो गई हूं और कोशिश कर रही हूं कि एलोवेरा का उद्योग लगाऊं.
आंचल की तरह ही महाराष्ट्र के विदर्भ के रहने वाले आदर्श पाल अंतरिक्ष विज्ञान में पढ़ाई कर चुके हैं लेकिन आजकल वो खेती में फायदे का सौदा देख रहे हैं. वो बताते हैं, पैर जमीन पर होने चाहिए, मेरे पास खेती नहीं है इसलिए किसानों के साथ कांट्रैक्ट फार्मिंग (समझौता पर खेत लेकर खेती) करता हूं. पंतजलि के प्रोडक्ट की लोकप्रियता के बाद संभावनाएं अब और बढ़ गई हैं.
अगर आप एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहते हैं तो केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) कुछ-कुछ महीनों पर ट्रेनिंग करता है. इसका रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन होता है और निर्धारित फीस के बाद ये ट्रेनिंग ली जा सकती है. 18 से 21 जुलाई तक चली 4 दिवसीय एलोवेरा प्रसंस्करण तकनीक प्रशिक्षण कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान से कुल 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया है. (ऊपर वीडियो देखिए)
उच्च शिक्षित युवा अब नौकरी की बजाए अपने काम की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. स्टार्टअप इंडिया ने इन्हें गति भी दी है. ग्रेटर नोएडा में गलगोटिया इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर मदन कुमार शर्मा (35 साल) ने पतंजलि से करार कर 4 एकड़ खेत में अपने गांव में (अलीगढ़ जिला) एलोवरा का प्लांटेशन कराया है. वो अब प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहते हैं. मदन बताते हैं, अभी तक मेरे घर में धान, गेहूं, आलू की फसलें उगाई जाती थीं, मुझे लगा कुछ नया और ज्यादा मुनाफे वाला करना चाहिए तो राजस्थान से पौध मंगाकर मैंने ये एलोवेरा की खेती शुरू की.
ऐसी ही एक युवा आंचल के पास खेत तो नहीं है लेकिन वो इंडस्ट्री लगाना चाहती हैं, देश में अब लोगों का रुझान खेती की तरफ बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री भी खेती पर जोर दे रहे हैं, अब हमें भी इस पर कुछ करना चाहिए." वो कहती हैं.
अरविंद शुक्ला की ये रिपोर्ट गांव कनेक्शन वेबसाइट से ली गई है.
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