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एलोवेरा की खेती और मुनाफे का समझिए पूरा हिसाब-किताब

इंजीनियरिंग और एमबीए करने वाला युवा नौकरी की बजाए कर रहे खेती

गांव कनेक्‍शन
भारत
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एलोवेरा की खेती से मुनाफे का सौदा
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एलोवेरा की खेती से मुनाफे का सौदा
(फोटो: गांव कनेक्शन)

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एलोवेरा की खेती से किसान ने साल भर में कमाए करोड़ों रुपए… एलोवेरा (घृत कुमारी) की खेती मतलब कमाई पक्की. ऐसी खबरें अक्सर सोशल साइट्स और व्हॉट्सऐप ग्रुप पर वायरल होती रहती हैं. ऐसा नहीं है कि एलोवेरा से किसान कमाई नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस खेती के लिए कुछ जानकारियां होना जरूरी हैं, वरना फायदे की जगह नुकसान हो सकता है.

गांव कनेक्शन जब एलोवेरा से संबंधित कोई खबर प्रकाशित करता है, सैकड़ों किसान फोन और मैसेज कर उस बारे में जानकारी मांगते हैं, क्योंकि लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंच पाती है. पिछले कुछ सालों में एलोवेरा के प्रोडक्ट की संख्या तेजी से बढ़ी है. कॉस्मेटिक, ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर खाने-पीने के हर्बल प्रोडक्ट और अब तो टेक्सटाइल इंडस्ट्री में इसकी मांग बढ़ी है.

मांग को देखते हुए किसान इस खेती के फायदे समझाने और इसकी प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए लखनऊ के सीमैप में पिछले दिनों देशभर के युवाओं को ट्रेनिंग दी गई. इनमें एलोवेरा की खेती करने वाले बड़े किसान, इंजीनियरिंग और प्रबंधन की डिग्री पाने वाले युवा भी शामिल थे.

देखिए एलोवेरा प्रोसेसिंग ट्रेनिंग का पूरा वीडियो

दो करोड़

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) में ट्रेनिंग देने वाले प्रमुख वैज्ञानिक सुदीप टंडन ने गांव कनेक्शन को बताया, जिस तरह से एलोवेरा की मांग बढ़ती जा रही है ये किसानों के लिए बहुत फायदे का सौदा है. इसकी खेती कर और इसके प्रोडक्ट बनाकर दोनों तरह से अच्छी कमाई की जा सकती है. लेकिन इसके लिए थोड़ी सवाधानियां बरतनी होंगी. किसानों को चाहिए कि वो कंपनियों से कंट्रैक्ट कर खेती करें और कोशिश करें की पत्तियों की जगह इसका पल्प बेचें.’

किसानों को कंपनियों से कंट्रैक्ट कर कोशिश करनी चाहिए कि पत्तियों की जगह इसका पल्प बेंचे(फोटो: गांव कनेक्शन)

सुदीप टंडन ने न सिर्फ इसकी पूरी प्रक्रिया गांव कनेक्शन के साथ साझा की बल्कि ऐसे किसानों से भी मिलवाया जो इसकी खेती कर मुनाफा कमा रहे हैं. करीब 25 सालों से गुजरात के राजकोट में एलोवेरा और दूसरी औषधीय फसलों की खेती कर रहे हरसुख भाई पटेल (60 साल ) बताते हैं, “एलोवेरा की एक एकड़ खेती से आसानी से 5-7 लाख रुपए कमाए जा सकते हैं. साल 2002 में गुजरात में इसकी बड़े पैमाने पर खेती हुई लेकिन खरीदार नहीं मिले. इसके बाद मैंने रिलायंस कंपनी से करार किया.

शुरू में उन्हें पत्तियां बेचीं लेकिन बाद में पल्प बेचने लगा. आजकल मेरा रामदेव की पतंजलि से करार है और रोजाना 5000 किलो पल्प का आर्डर है. इसलिए मैं दूसरी जगहों पर भी इसकी संभावनाएं तलाश रहा हूं. वो आगे बताते है , ‘किसान अगर थोड़ा जागरूक हो तो पत्तियों की जगह उसका पल्प निकालकर बेचें. पत्तियां जहां 5-7 रुपए प्रति किलो में बिकती है वहीं पल्प 20-30 रुपए में जाता है.”

इंजीनियरिंग के बाद कई साल तक आईटी क्षेत्र की बड़ी कंपनी में काम कर चुकीं बेंगलुरु की रहने वाली आंचल जिंदल एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए सीमैप में चार दिन की विशेष ट्रेनिंग करने आईं थीं, गांव कनेकशन से बात करते हुए वो बताती हैं, ऐलोवेरा जादुई पौधा है. इसके कारोबार में बहुत संभावनाएं हैं, क्योंकि आजकल हर चीज में इसका उपयोग हो रहा है. अब मैं यूपी के बरेली में शिफ्ट हो गई हूं और कोशिश कर रही हूं कि एलोवेरा का उद्योग लगाऊं.

सीमैप में एलोवेरा की तैयार होती पौध(फोटो: गांव कनेक्शन)
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आंचल की तरह ही महाराष्ट्र के विदर्भ के रहने वाले आदर्श पाल अंतरिक्ष विज्ञान में पढ़ाई कर चुके हैं लेकिन आजकल वो खेती में फायदे का सौदा देख रहे हैं. वो बताते हैं, पैर जमीन पर होने चाहिए, मेरे पास खेती नहीं है इसलिए किसानों के साथ कांट्रैक्ट फार्मिंग (समझौता पर खेत लेकर खेती) करता हूं. पंतजलि के प्रोडक्ट की लोकप्रियता के बाद संभावनाएं अब और बढ़ गई हैं.

सीमैप में दी जाती है ट्रेनिंग

अगर आप एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहते हैं तो केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) कुछ-कुछ महीनों पर ट्रेनिंग करता है. इसका रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन होता है और निर्धारित फीस के बाद ये ट्रेनिंग ली जा सकती है. 18 से 21 जुलाई तक चली 4 दिवसीय एलोवेरा प्रसंस्करण तकनीक प्रशिक्षण कार्यक्रम में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान से कुल 23 प्रतिभागियों ने भाग लिया है. (ऊपर वीडियो देखिए)

इंजीनियरिंग और एमबीए करने वाला युवा नौकरी की बजाए कर रहे खेती, लगा रहे यूनिट

उच्च शिक्षित युवा अब नौकरी की बजाए अपने काम की तरफ ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं. स्टार्टअप इंडिया ने इन्हें गति भी दी है. ग्रेटर नोएडा में गलगोटिया इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रोफेसर मदन कुमार शर्मा (35 साल) ने पतंजलि से करार कर 4 एकड़ खेत में अपने गांव में (अलीगढ़ जिला) एलोवरा का प्लांटेशन कराया है. वो अब प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहते हैं. मदन बताते हैं, अभी तक मेरे घर में धान, गेहूं, आलू की फसलें उगाई जाती थीं, मुझे लगा कुछ नया और ज्यादा मुनाफे वाला करना चाहिए तो राजस्थान से पौध मंगाकर मैंने ये एलोवेरा की खेती शुरू की.

ऐसी ही एक युवा आंचल के पास खेत तो नहीं है लेकिन वो इंडस्ट्री लगाना चाहती हैं, देश में अब लोगों का रुझान खेती की तरफ बढ़ रहा है, प्रधानमंत्री भी खेती पर जोर दे रहे हैं, अब हमें भी इस पर कुछ करना चाहिए." वो कहती हैं.

एलोवेरा की खेती की बड़ी बातें

  • हेल्थकेयर, कॉस्मेटिक और टेक्सटाइल में भी एलोवेरा का इस्तेमाल
  • हर्बल दवा बनाने वाली कंपनियों में होता है सबसे ज्यादा इस्तेमाल
  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर खेती करना किसानों के लिए फायदेमंद
  • पतंजलि, डाबर, बैद्यनाथ, रिलायंस कई बड़ी कंपनियां हैं बड़ी ग्राहक
  • किसानों से सीधे भी पल्प और पत्तियां खरीदती हैं कंपनियां
  • पल्प निकालने या सीधे प्रोडक्ट बनाने की लगा सकते हैं प्रोसेसिंग यूनिट
  • पल्प निकालकर बेचे पर 4 से 5 गुना ज्यादा मुनाफा होता है
  • देश के कई राज्यों में हो रही है एलोवेरा की खेती
  • एलोवेरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए सीमैप में दी जाती है ट्रेनिंग
  • अपने जिले में FCCI से लाइसेंस लेकर शुरु कर सकते हैं अपना रोजगार
  • सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान भी देता है ट्रेनिंग
  • 80 हजार से लेकर 1 लाख की अनुमानित लागत आती है एक एकड़ में पहले वर्ष
  • 4 से 7 रुपए किलो तक बिकती हैं एलोवेरी की पत्तियां (कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर)
  • 20-30 रुपए किलो बिकता है पल्प
  • 3-4 रुपए प्रति पौधा मिलता है नर्सरी का
  • एक एकड़ में करीब 16 हजार पौधे लगते हैं
कुछ इस तरह के होतेे हैं एलोवेरा के पौधे(फोटो: गांव कनेक्शन)

एलोवेरा: ये बरतें सावधानियां

  • शुरुआत में कंपनियों से समझौता (कॉन्ट्रैक्ट) कर ही करें खेती
  • 8 से 18 महीने में पहली कटाई करने की सलाह देते हैं जानकार
  • एलोवेरा की कटी पत्तियों को 4-5 घंटे में प्रोसेसिंग यूनिट तक पहुंचना जरूरी
  • कभी न लगाएं कटाई के बाद एलोवेरा की पत्तियों का ढेर
  • जलभराव वाले इलाकों में न करें खेती

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