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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
समाजवादी, जन कल्याणकारी, बहुजन हिताय के उसूल वाले देश में दलितों की आज भी क्या हालत है, इसका एक और सबूत आया है राजस्थान के नागौर से. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे इन दलितों को बेल्ट से पीटा जा रहा है, लात-घूंसे बरसाए जा रहे हैं. एक युवक के गुप्तांग में पेचकस भी डालते दिख रहे हैं ये बदमाश.
वीडियो में दिल को हिला देने वाली आवाजे सिर्फ एक दलित की पिटाई की नहीं है, हमारे लोकतंत्र की कराह है. इसी दलित के भाई को भी पीटा गया है. वीडियो का वो हिस्सा ऐसा विभत्स है कि हम उसे आपको दिखा भी नहीं सकते. सबसे बड़ी बात ये कि दलितों पर जुल्म ढाने वाले लोग इतने इत्मीनान में हैं कि लगता है कि उन्हें इस बात का इल्म तक नहीं कि वो गलत कर रहे हैं, उन्हें किसी बात का डर तक नहीं.ये सब हुआ है राजस्थान में, जहां कांग्रेस की सरकार है, वो कांग्रेस जो दिन रात दलितों की हिमायती भरने का दम भरती है. दलितों पर जुल्म का मामला हो तो हर पार्टी का रिकॉर्ड लाल है.
जिस गुजरात मॉडल की चकाचौंध में देश की आंखें चौंधियां गईं, उस गुजरात में दलित अत्याचार के मामले तेजी से बढ़े हैं. पिछले साल गुजरात के एक आरटीआई कार्यकर्ता कौशिक परमार ने पुलिस के अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति सेल से यह जानकारी मांगी थी कि गुजरात में दलितों की क्या स्थिति है. आरटीआई के जवाब में बताया गया था कि पिछले एक साल में दलितों के खिलाफ जुर्म के 1545 मामले दर्ज किए गए हैं जोकि 2001 के बाद सबसे अधिक हैं.
हर वारदात और घटना पर इस देश के नेताओं को सियासत करने की पुरानी आदत है. इस केस में भी ऐसा ही हुआ है. राज्य में कांग्रेस की सरकार है तो बीजेपी के कई नेता मुख्यमंत्री गहलोत पर निशाना साध रहे हैं. राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने कहा है कि गहलोत सरकार, लॉ एंड ऑर्डर को बरकरार रखने में पूरी तरह नाकाम साबित हो चुकी है.
बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने कहा है कि नागौर का ये मामला गुजरात के ऊना की याद दिलाता है.
खुद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रदेश की कांग्रेस सरकार को नसीहत दी है. उन्होंने ट्वीट कर कहा है,
खैर, नेताओं की व्यथा फर्जी है, क्योंकि अगर ये नेता सीरियस होते तो पिछले 70 सालों में देश के दलितों की स्थिति सुधरती जरूर. सच्चाई ये है कि दलित इस देश के नेताओं के लिए वोट बैंक के सिवा कुछ नहीं.नागौरी चाय के लिए मशहूर नागौर को अब नागौरी दलित वीडियो के नाम से जाना जाएगा, जानना चाहिए.कम से कम तब तक जब तक ये शहर दलितों के साथ इंसाफ और बराबरी का सलूक नहीं करता.
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