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दार्जिलिंग: गोरखा जनमुक्ति मोर्चा का हिंसक प्रदर्शन, सेना तैनात

गोरखाओं के लिए अलग राज्य की मांग का मुद्दा सबसे पहले 1980 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) ने उठाया गया था

द क्विंट
भारत
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(फोटो: PTI)
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गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के उग्र आंदोलनकारियों और पुलिसकर्मियों के बीच हुई झड़प में गुरुवार को 15 पुलिसकर्मी घायल हो गए. सूत्रों के मुताबिक हालात बिगड़ता देख दार्जिलिंग में सेना बुलाने की तैयारी की जा रही है.

इससे पहले आंदोलनकारियों ने 5 वाहनों को आग के हवाले कर दिया था. आंदोलन को रोकने के लिए आंसू गैस के गोले दागने वाले पुलिसकर्मियों पर GJM के आंदोलनकारियों ने पथराव किया और उनकी पांच गाड़ियों को आग लगा दी.

इस हिंसा में आंदोलनकारियों ने एक यातायात चौकी में भी आग लगा दी. इसके अलावा, बैरीकेड भी तोड़े गए. हिंसा के दौरान राज्य कैबिनेट की बैठक हुई.

(फोटो: PTI)
GJM ने दावा किया है कि पुलिस की ओर से की गई कार्रवाई में उसके 45 समर्थक घायल हुए हैं, जिसमें एक महिला भी शामिल हैं. पश्चिम बंगाल के उत्तरी क्षेत्र में स्थित पहाड़ी कस्बे में घूमने आए पर्यटक हिंसा से डरकर कस्बे से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं.

ये हिंसा दार्जिलिंग कस्बे के मॉल रोड स्थित भानु भवन के पास भड़की. हिंसा में घायल पुलिसकर्मियों में जलपाईगुड़ी रेंज के पुलिस उपमहानिरीक्षक राजेश कुमार यादव भी शामिल हैं. उन्हें GJM समर्थकों के साथ संघर्ष के दौरान चोटें आई हैं. GJM समर्थकों ने कालिमपोंग जिले के आस-पास के बाजारों को बंद करने का दबाव भी डाला.

क्या है मामला ?

GJM समर्थकों ने गोरखाओं के लिए एक अलग राज्य की मांग के लिए दबाव बनाने की कोशिश में रैली का आयोजन किया था. ये रैली ममता बनर्जी सरकार से एक परिपत्र जारी करने की मांग के पक्ष में भी थी.

आंदोलनकारियों की मांग है कि राज्य सरकार एक परिपत्र जारी कर साफ करे कि उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में बांग्ला भाषा को अनिवार्य करने का उसका कोई इरादा नहीं है.

बता दें कि गोरखाओं के लिए अलग राज्य की मांग का मुद्दा सबसे पहले 1980 में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट (GNLF) ने उठाया गया था. 2008 में GJM ने GNLF को अलग कर दिया. अलग राज्य की इस मांग की हिंसा में तीन दशकों में अब तक कई जानें जा चुकी हैं. इसके अलावा, इससे क्षेत्र के चाय और लकड़ी के व्यापार को साथ ही पर्यटन को भी नुकसान पहुंचा है.

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गैर-मुद्दे पर आधारित है आंदोलन: ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को 45 साल में पहली बार दार्जिलिंग कस्बे में मंत्रिमंडल की बैठक की अध्यक्षता की. इस बैठक के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि यह आंदोलन गैर-मुद्दे पर आधारित है. बनर्जी ने कहा-

प्रदर्शन करने का हक हर राजनीतिक पार्टी को है. उन्होंने यहीं किया, लेकिन ये आंदोलन किस मुद्दे पर था? कोई मुद्दा ही नजर नहीं आया. इस आंदोलन के जरिए राजनीतिक प्रासंगिकता हासिल करने का मकसद है.

मुख्यमंत्री ने कहा, "हमारी किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं है. हम चाहते हैं कि पहाड़ी कस्बे और राज्य का संचालन और विकास सही तरह से हो."

शुक्रवार को 12 घंटे के बंद का बुलावा

बाद में GJM ने कथित तौर पर शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस कार्रवाई के विरोध में उत्तर बंगाल की पहाड़ियों में शुक्रवार को 12 घंटे का बंद बुलाया है. GJM के महासचिव रोशन गिरी ने कहा,

दार्जिलिंग, कलिमपोंग जिलों और मिरिक सहित पूरे उत्तर बंगाल में बंद का को बुलाया गया है.

मुख्यमंत्री बनर्जी ने राज्य के हर स्कूल में बंगाली भाषा को अनिवार्य किए जाने के बाद से ही उत्तर बंगाल में राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है. इस क्षेत्र में दबदबा रखने वाली GJM, बनर्जी की इस घोषणा से नाखुश है.

बनर्जी ने सोमवार को यह घोषणा कर हालात को शांत करने की कोशिश की थी कि दार्जिलिंग, दोआर और तराई के इलाकों के स्कूलों में बंगाली भाषा अनिवार्य नहीं होगी. बनर्जी ने कहा कि GJM उनकी सरकार के बारे में झूठी बातें फैला रहा है.

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Published: 08 Jun 2017,11:09 PM IST

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