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दसॉ के CEO की सफाई,अनिल अंबानी को चुनने के लिए नहीं था कोई दवाब 

दसॉ ने राहुल गांधी के आरोपों को किया खारिज

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दसॉ के सीईओ एरिक ट्रेपियर
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दसॉ के सीईओ एरिक ट्रेपियर
(फोटोः ANI)

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दसॉ एविएशन के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने राफेल डील को लेकर लगाए गए राहुल गांधी के तमाम आरोपों को खारिज किया है. न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए गए इंटरव्यू में राफेल डील को लेकर उठ रहे तमाम सवालों के जवाब दिए.

ट्रेपियर ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने डील को लेकर जो भी आरोप लगाए हैं वो पूरी तरह से निराधार हैं. उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने दसॉ और रिलायंस के बीच हुए ज्वॉइंट वेंचर को लेकर झूठ बोला है. दसॉ एविएशन के सीईओ ने कहा कि डील के बारे में जो भी जानकारी दी गई है, वह बिल्कुल सही है, क्योंकि वह झूठ नहीं बोलते.

राहुल गांधी ने दसॉ पर लगाया था ये आरोप

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बीते 2 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में राफेल डील को लेकर दसॉ एविएशन पर भी गंभीर आरोप लगाए थे. राहुल ने उन मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला दिया था, जिसमें बताया गया है कि फ्रांस की रक्षा कंपनी ने घाटे में चल रही अनिल अंबानी की कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने के लिए 284 करोड़ रुपये निवेश किया है.

राहुल ने कहा था, ‘दसॉ के सीईओ झूठ बोल रहे हैं. बड़ा सवाल ये है कि क्यों कोई कंपनी ऐसी कंपनी में 284 करोड़ रुपये निवेश करेगी, जिसकी पूंजी केवल आठ लाख रुपये की है और लगातार घाटे में चल रही है. साफ है कि यह निवेश दसॉ की ओर से दी गई रिश्वत की पहली किश्त है."

राहुल के आरोपों पर दसॉ के CEO की सफाई

दसॉ के सीईओ से जब राहुल के आरोपों पर सफाई मांगी गई तो उन्होंने कहा, 'मैं झूठ नहीं बोलता. डील को लेकर अब तक कंपनी की ओर से जो भी बयान जारी किए गए हैं, वो पूरी तरह से सच हैं.'

कांग्रेस के साथ पुराने संबंध, नेहरू के जमाने में हुई थी भारत के साथ पहली डील

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बयान पर दुख जताते हुए दसॉ के सीईओ एरिक ट्रेपियर ने कहा कि उनकी कंपनी ने कांग्रेस के जमाने में भी भारत के साथ डील की है.

कांग्रेस पार्टी के साथ हमारा लंबा अनुभव रहा है. भारत के साथ हमारी पहली डील साल 1953 में हुई थी. जवाहर लाल नेहरू समेत दूसरे प्रधानमंत्रियों के कार्यकाल के दौरान भी डील हुईं हैं. हम भारत के साथ काम करते रहे हैं. हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं कर रहे हैं. हम भारतीय वायु सेना और भारत सरकार को लड़ाकू विमानों जैसे प्रोडक्ट सप्लाई करते हैं. यही हमारे लिए महत्वपूर्ण है. 
एरिक ट्रेपियर, सीईओ, दसॉ एविएशन
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दसॉ ने रिलायंस में नहीं, ज्वॉइंट वेंचर में इन्वेस्ट किया

ट्रेपियर से जब पूछा गया कि दसॉ ने फाइटर जेट की मेन्यूफेक्चरिंग को लेकर कोई अनुभव न होने के बावजूद रिलायंस को अपना ऑफसेट पार्टनर क्यों चुना? इस पर ट्रेपियर ने कहा पैसे रिलायंस में नहीं, बल्कि ज्वॉइंट वेंचर में इन्वेस्ट किए गए.

हमने रिलायंस में पैसा निवेश नहीं किया. पैसा सीधे ज्वॉइंट वेंचर में निवेश हुआ. इस वेंचर में रिलायंस ने भी पैसा लगाया है, हमारे इंजीनियर इंडस्ट्रीयल पार्ट को लीड करेंगे. इससे रिलायंस को भी एयरक्राफ्ट बनाने का एक्सपीरियंस मिलेगा.   
एरिक ट्रेपियर, सीईओ, दसॉ एविएशन

ऑफसेट में पार्टनरशिप में किसका-कितना हिस्सा?

एरिक ट्रेपियर ने साफ किया कि दसॉ और रिलायंस के बीच हुए ज्वॉइंट वेंचर में 49 फीसदी हिस्सा दसॉ और 51 फीसदी हिस्सा रिलायंस का है. इसमें कुल 800 करोड़ रुपये का इन्वेस्ट होगा, जिसमें दोनों कंपनियां 50-50 की हिस्सेदार होंगी.

दसॉ के सीईओ ने कहा कि ऑफसेट को जारी करने के लिए हमारे पास 7 साल थे, जिसमें शुरुआती 3 साल में कुछ तय नहीं हो पाया था. उसके बाद 40 फीसदी हिस्सा 30 कंपनियों को दिया गया, इसमें से 10 फीसदी रिलायंस को दिया गया.

राफेल जेट की कीमत?

राफेल जेट की कीमतों को को लेकर दसॉ के सीईओ ने कहा कि जो अभी एयरक्राफ्ट मिल रहे हैं, वह करीब 9 फीसदी सस्ते हैं.

उन्होंने कहा कि जो 36 विमान का रेट है, वह मौजूदा 18 के बिल्कुल समान है. ये दाम दोगुना हो सकता था, लेकिन ये समझौता सरकार से सरकार के बीच का है इसलिए दाम नहीं बढ़ाया गया. बल्कि दाम 9 फीसदी सस्ता भी हुआ. सीईओ ने बताया कि उड़ने के लिए तैयार स्थिति में 36 कॉन्ट्रैक्ट वाले राफेल का दाम 126 कॉन्ट्रैक्ट वाले दाम से काफी सस्ता है.

HAL से करार टूटने की बताई वजह

दसॉ के सीईओ ने HAL के साथ करार टूटने की वजह भी बताई. उन्होंने कहा कि जब 126 राफेल जेट के करार की बात चल रही थी, तब करार HAL से ही होना था. उन्होंने कहा कि अगर उस वक्त डील आगे बढ़ती तो कॉन्ट्रेक्ट HAL को ही मिलता. लेकिन 126 जेट की डील नहीं हुई. इसलिए 36 जेट के कॉन्ट्रेक्ट पर बात हुई, जिसके बाद ये कॉन्ट्रेक्ट रिलायंस के साथ आगे बढ़ा.

एरिक के मुताबिक, आखिरी दिनों में HAL ने खुद ही कहा था कि वह ऑफसेट में शामिल होने का इच्छुक नहीं हैं. इसके बाद ही रिलायंस के साथ करार का रास्ता तैयार हुआ था. एरिक ने ये भी कहा कि कुछ अन्य कंपनियों से भी करार के बारे में विचार किया गया था, जिसमें टाटा ग्रुप जैसे नाम भी शामिल थे. लेकिन आखिर में रिलायंस के साथ ही करार हुआ.

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Published: 13 Nov 2018,12:15 PM IST

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