advertisement
ऑस्ट्रिया में 1935 में हुए एक एक्सपेरिमेंट और भारत के 12 अंकों वाले यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर में कौन सी बात कॉमन है? इस सवाल का जवाब ट्विटर यूजर्स के पास है. 26 मार्च को ट्विटर पर आधार का मजाक उड़ाना शुरू हुआ जो ट्रेंड बन गया. यूजर्स कन्फ्यूज थे और इसे लेकर हंगामेदार बहस छिड़ गई. इसके बाद आधार पर एक और किस्सा शुरू हुआ, जिसमें इसे ‘श्रोडिंगर्स कैट’ बताया गया.
जब किसी चीज को एक साथ कंपलसरी और वॉलेंटरी दोनों बताया जाता है तो उसे ‘श्रोडिंगर्स कैट’ कहते हैं.
ट्विटर पर आधार का मजाक इस घोषणा के बाद बनना शुरू हुआ, जिसमें इसे कई सरकारी स्कीम्स के लिए कंपलसरी बनाया गया था. इनमें इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करना, पैन लेना और एंप्लॉयीज पेंशन बेनेफिट्स भी शामिल थे.
इसे जनवरी, 2009 में ऑप्शनल स्कीम के तौर पर पेश किया गया था. यूपीए 2 सरकार ने आधार के लिए नेशनल आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल, 2010 संसद में पेश किया था, तब इसके वॉलेंटरी होने पर चर्चा हुई थी. वित्त मामलों पर संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में आधार की सुरक्षा के मामले में ब्रिटेन का उदाहरण दिया था. दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन ने बाद में ‘अधिक लागत, अनसेफ, अनजान टेक्नोलॉजी और सरकार और नागरिकों के संबंध में बदलाव‘ जैसे कारणों के चलते आधार जैसे प्रोजेक्च को बंद कर दिया था.
तब संसदीय समिति से सरकार ने कहा था, ‘ ब्रिटेन में इसे कंपलसरी बनाया जा रहा है, जबकि भारत में आधार नंबर के साथ ऐसा नहीं है.‘ सरकार ने यह भी कहा था कि आधार का मकसद ‘कल्याणकारी योजनाओं का फायदा लोगों तक बेहतर ढंग से पहुंचाना है.’
अब अक्टूबर 2015 की बात करते हैं.
अदालत ने कहा था,
सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में फिर एक बार कहा कि आधार कंपलसरी नहीं है. इसलिए जब पिछले हफ्ते सरकार ने वेलफेयर स्कीम्स के लिए इसे अनिवार्य बनाया तो सोशल मीडिया और विपक्ष की तरफ से इसकी आलोचना हुई. फाइनेंस बिल, 2017 में जो संशोधन हुए हैं, उसमें टैक्स रिटर्न फाइल करने के लिए भी इसे अनिवार्य बनाया गया है. इसका मतलब यह है कि जिन लोगों के पास आधार नहीं है, वे कानून की नजर में अपराधी हैं और उनके पास यह नंबर लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.
लेकिन आधार के फायदे क्या हैं? यूनीक आइडेंटिफिकेशन ऑफ अथॉरिटी ऑफ इंडिया (यूआईडीएआई) के पूर्व महानिदेशक अशोक पाल सिंह ने बताया कि सिंगल आईडी होने पर नागरिकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं का फायदा लेना आसान हो जाएगा. उन्होंने कहा,
दूसरी तरफ, नेट न्यूट्रलिटी के पैरोकार और Medianama.com शुरू करने वाले निखिल पाहवा का कहना है कि सरकार आधार को कंपलसरी नहीं बना सकती क्योंकि यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है. उनका कहना है कि इससे आधार का दायरा सिर्फ वेलफेयर सर्विसेज तक सीमित नहीं रह जाएगा. लोगों को आधार को कंपलसरी बनाकर इसे लेने के लिए मजबूर किया जा रहा है. आधार को कंपलसरी बनाने से एक कॉमन आईडी से जुड़े सभी डेटाबेस आपस में जुड़ जाएंगे. इससे सरकार किसी शख्स की जासूसी कर सकती है और उस इंफॉर्मेशन के हैक होने का खतरा भी है. इससे देश का हर नागरिक एक तरह से असुरक्षित हो गया है.
आधार के कई फायदे हो सकते हैं, लेकिन इसे कंपलसरी क्यों बनाया जा रहा है?
अशोक पाल सिंह का कहना है,
लेकिन क्या एलपीजी सब्सिडी लेने और इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने में इसके इस्तेमाल में फर्क नहीं है. अगर आधार वॉलेंटरी है तो फिर इसे लेने का दबाव कैसे डाला जा सकता है? एलपीजी सब्सिडी नहीं लेने वाला कानून की नजर में अपराधी नहीं है, लेकिन अगर कोई टैक्स रिटर्न फाइल नहीं करता तो वह कानून की नजर में क्रिमिनल होता है. सिंह ने कहा, ‘अगर आप विदेश जाना होता है तो पासपोर्ट की जरूरत पड़ती है. क्या आप बिना पासपोर्ट के विदेश जा सकते हैं, नहीं ना.’
क्या यूआईडीएआई डेटाबेस हैक किया जा सकता है?
आधार के लिए उम्र और बायोमीट्रिक डेटा का इस्तेमाल किया गया है. लेकिन क्या आधार डेटाबेस का इस्तेमाल करके किसी इंसान का प्रोफाइल तैयार किया जा सकता है, जिसमें उसकी गतिविधियों का भी ब्योरा हो? अशोक पाल सिंह का कहना है कि ऐसा नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि
उन्होंने बताया कि यूआईडीएआई सिर्फ ऑथेंटिकेशन के वक्त का डेटा दर्ज करता है. लेकिन जब अलग-अलग सर्विसेज के लिए आधार का कॉमन आईडी के तौर पर इस्तेमाल होने लगेगा, तब भी क्या यह बात सच रह जाएगी? क्या आधार के जरिये सरकार के पास बड़ा डेटाबेस हो जाएगा, जो आम नागरिकों के हितों के अनुकूल नहीं होगा.
सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर सुनील अब्राहम ने बताया कि
आधार यूजर अपना नंबर और बायोमीट्रिक वेरिफिकेशन के लिए देता है. उसके बाद इन्हें यूआईडीएआई के पास क्रॉस-चेकिंग के लिए भेजा जाता है. यूआईडीएआई का डेटा एनक्रिप्टेड होता है, लेकिन यह पता नहीं है कि ऑथेंटिकेशन के लेवल पर क्या उसी तरह का एनक्रिप्शन है. इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि
आधार डेटाबेस तक किसकी पहुंच है?
आधार एक्ट में कहा गया है कि सरकार की मंजूरी लेने के बाद ज्वाइंट सेक्रेटरी लेवल से ऊपर का कोई अधिकारी ही राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में ऐसी इंफॉर्मेशन हासिल कर सकता है. लेकिन कानून में राष्ट्रीय सुरक्षा की परिभाषा नहीं दी गई है. इसका मतलब यह है कि
द क्विंट की खबर Decoding The Aadhaar Debate: Do The Risks Outweigh The Benefits? के आधार पर
WhatsApp के जरिये द क्विंट से जुड़िए. टाइप करें “JOIN” और 9910181818 पर भेजें
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)