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दीनदयाल उपाध्याय: जब काल ने छीन लिया जनता का एक साहसी नेता...

दीनदयाल उपाध्याय की मौत पर देश ने एक ऐसा नेता खो दिया जो देश की राजनीति का परिदृश्य बदल सकता था.

द क्विंट
भारत
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दीनदयाल उपाध्याय जनता के बीच के नेता थे. उन्हें जनता की जरूरतों की समझ थी. (फोटो कोलाज: द क्विंट)
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दीनदयाल उपाध्याय जनता के बीच के नेता थे. उन्हें जनता की जरूरतों की समझ थी. (फोटो कोलाज: द क्विंट)
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53 साल पहले आज ही के दिन पंडित दीनदयाल उपाध्याय की हत्या कर दी गई थी. इस हत्या ने देश से उसका बेहतरीन दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, इतिहासकार, पत्रकार और एक महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञ छीन लिया.

पंडित उपाध्याय पठानकोट-सियालदाह एक्सप्रेस में लखनऊ से पटना जा रहे थे, तभी उनकी हत्या कर दी गई.

11 फरवरी 1968 को उनका मृत शरीर मुगलसराय में रेल की पटरियों के पास पड़ा मिला था. (फोटो: bjp.org)

बहुत आसान नहीं था उनका बचपन

25 सितंबर, 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में जन्मे दीनदयाल उपाध्याय का शुरुआती जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा था. बहुत जल्दी ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. उनकी मां के परिवार ने उनका पालन-पोषण किया.

रेलवे में काम करने वाले मामा के ट्रांसफर के साथ स्कूल और शहर बदलना उनके लिए नई बात नहीं रह गई थी.

उपाध्याय को जाति प्रथा से नफरत थी. 1963 के उपचुनावों के समय जौनपुर से चुनाव लड़ते वक्त उन्होंने कहा था कि उनके ब्राह्मण वंश का जिक्र चुनावी रैलियों में न किया जाए. (फोटो: bjp.org)

सेवा के लिए समर्पित राजनीतिक जीवन

छात्रवृत्ति देने के लिए सीकर के महाराजा और उद्योगपति घनश्यामदास बिरला को प्रभावित कर देने वाले उपाध्याय का भविष्य उज्ज्वल था. पर RSS में शामिल होने के बाद उन्होंने अपनी ऊर्जा को देश सेवा में लगाने का निर्णय लिया.

जनसंघ की स्थापना में मदद करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पास भेजे गए उपाध्याय खुद एक ऊंचे आदर्शों वाले नेता के तौर पर सामने आए.

उनके कॉलेज के दोस्त भी राजनीति के उनके नैतिक आदर्शों से प्रभावित थे. इस तस्वीर में वे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ हैं. (फोटो: bjp.org)

एकात्म मानववाद की उनकी नीति

‘एकात्म मानववाद’ पर उनके लेख कम्युनिज्म और कैपिटलिज्म, दोनों की ही आलोचना करते हैं. ये लेख राजनीति और नीति निर्माण में एक ऐसे दृष्टिकोण को सामने रखते हैं, जिसमें पूरी मानव जाति की आवश्यकताओं का खयाल रखा जा सके.

दीनदयाल दयालु व नम्र व्यक्तित्व के स्वामी थे, इस तस्वीर में वे पत्रकारों से बातचीत कर रहे हैं. (फोटो: bjp.org)

रहस्यमय मौत

एक समय पर वे राममनोहर लोहिया, आचार्य कृपलानी जैसे अलग-अलग राजनीतिक विचारधाराओं के लोगों को एक मंच पर ले आए थे, ताकि केंद्र पर कांग्रेस का एकाधिकार खत्म किया जा सके.

उनकी मृत्यु से देश हैरान रह गया था. जनसंघ के इस अध्यक्ष का मृत शरीर मुगलसराय में रेल की पटरियों के पास पाया गया था. उनके हाथ में 5 रुपए का नोट था. उस दिन उनके साथ जो हुआ, वह अब तक एक अनसुलझा रहस्य है.

कुछ लोग पंडित उपाध्याय को राजनीति का संत भी कहते हैं. (फोटो: bjp.org)

दीनदयाल उपाध्याय की मौत से देश ने एक ऐसा नेता खो दिया, जो देश की राजनीति का परिदृश्य बदल सकता था.

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Published: 11 Feb 2016,12:52 PM IST

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