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दिल्ली में स्थित ट्रांसजेंडर्स के लिए सरकारी सहायता प्राप्त शेल्टर होम- मित्र ट्रस्ट गरिमा गृह (Mitr Trust Garima Greh) में 21 जुलाई की देर रात दिल्ली और यूपी पुलिस एक-साथ पहुंचती है. पुलिस रात के 12.40 बजे गरिमा गृह का ताला खुलवाती है और आदित्य बैसोया (Aditya Baisoya) नाम के ट्रांसमैन को अपने साथ लेकर चलती बनती है. उसके पीछे जब शेल्टर होम के अन्य ट्रांस सदस्य और गार्ड डाबरी पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं तो उनकी बुरी तरह पिटाई की जाती है. शेल्टर होम के सदस्यों ने ये गंभीर आरोप लगाया है.
कमाल की बात है कि दिल्ली पुलिस जिन घायलों को दोषी बता रही है, उन्हीं के लिए दिल्ली पुलिस के दो जवान केला, आम, अमरुद और सेव लेकर शुक्रवार, 22 जुलाई को शेल्टर होम पहुंचे थे.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत देश में चल रहे ऐसे 12 गरिमा गृह का मुख्य उद्देश्य बेसहारा और परित्यक्त ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को आश्रय, भोजन, चिकित्सा देखभाल स्किल डेवलपमेंट और मनोरंजन जैसी बुनियादी सुविधा प्रदान करना है.
दिल्ली के सीतापुरी में स्थित मित्र ट्रस्ट नाम का यह गरिमा गृह डाबरी पुलिस स्टेशन से मुश्किल से 300 मीटर की दूरी पर स्थिर है. मित्र ट्रस्ट के बोर्ड मेंबर मोनू का कहना है कि 22 वर्षीय ट्रांसमैन आदित्य बैसोया 18 जुलाई को यहां रहने आया था.
दिल्ली पुलिस की लाठियों की शिकार मित्र ट्रस्ट की ब्रिज कोर्स कॉर्डिनेटर बेला का कहना है कि पुलिस ने उन्हें जबरदस्ती रात के 12.40 बजे गेट खोलने को कहा. 4 पुरुष और एक महिला कांस्टेबल ने बिना वजह बताए गरिमा गृह का गेट खुलवाया. बेला के अनुसार अंदर आकर पुलिस ने बताया कि आदित्य के परिवार वालों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवायी है और वो यहां सिर्फ उसका बयान दर्ज करने आये हैं. अधिकारी के सामने बयान दर्ज कराने का कहकर यूपी पुलिस आदित्य को अपने साथ लेकर चलती बनी.
बेला के अनुसार जब मित्र ट्रस्ट के 5-6 सदस्य आदित्य को खोजते पुलिस स्टेशन पहुंचे तो वहां उनके साथ पुलिस ने बदतमीजी की, एक ट्रांसवुमन के छाती पर हाथ डाला, दूसरों को गले और बालों से पकड़कर पुलिस स्टेशन से निकालने की कोशिश की. बाद में गरिमा गृह के गार्ड के साथ-साथ वहां पहुंचे ट्रांसजेंडर्स को बुरी तरह पीटा गया. आरोप है कि पुलिस ने गार्ड से यहां तक कहा कि “इन छक्कों को क्यों लेकर आये हो”.
घायल अवस्था में जब ये दीनदयाल हॉस्पिटल पहुंचे तो मित्र ट्रस्ट की फाउंडर और गरिमा गृह की प्रोजेक्ट डायरेक्टर रुद्रानी छेत्री ने वहां से एक वीडियो जारी किया जिसमें बेला सहित अन्य सदस्य अपनी-अपनी चोटों के साथ दिख रहे हैं. रुद्रानी छेत्री ने कहा कि जब ट्रांसजेंडर्स एक सरकारी ढांचे में भी सुरक्षित नहीं हैं तो कहां सेफ हैं. उन्होंने मानवाधिकार आयोग और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को इस मामले को संज्ञान में लेने की गुजारिश की है.
एक सवाल यह भी है कि क्या आदित्य इस गरिमा गृह में जबरदस्ती रह रहा था? गरिमा गृह में जब भी कोई नया सदस्य रहने आता है तो उसकी एक केस स्टडी बनाई जाती है. आदित्य के केस स्टडी के अनुसार उसने बताया था कि वह 12वीं पास है, वह शुरू से ही अपने आप को एक लड़का मानता है जबकि उसका परिवार उसे लड़की की तरह ट्रीट करती है. केस स्टडी के अनुसार आदित्य ने बताया था कि उसके परिवार ने उसे 2 साल तक कमरे में कैद कर रखा था और उसे टॉर्चर किया जाता था. उसके पिता उसे रोज मारते-पीटते थे.
गरिमा गृह में मौजूद आदित्य बैसोया की केस स्टडी
गरिमा गृह में मौजूद आदित्य बैसोया की केस स्टडी
मित्र ट्रस्ट के बोर्ड मेंबर मोनू का कहना है कि आदित्य यहां बहुत खुश था, 2-3 दिन में ही उसके यहां कई दोस्त भी बन गए थे. आदित्य यहां जल्द से जल्द कंप्यूटर सीखना चाहता था. मोनू के अनुसार आदित्य ने कहा था कि अगर परिवार वालों ने मुझे ट्रैक कर लिया तो वे या तो मुझे जान से मार देंगे या खुद जान दे देंगे.
आदित्य ने गरिमा गृह में दूसरे साथी के मोबाइल फोन में इंस्टाग्राम लॉग-इन कर अपने एक दोस्त को यहां का लोकेशन दे दिया था. गरिमा गृह वालों का कहना है कि उस दोस्त ने इसकी जानकारी परिवार वालों को दे दी और यूपी पुलिस उसे उठाकर ले गयी.
द्वारका के DCP हर्षवर्धन का कहना है कि यूपी पुलिस ने गुमशुदगी के मामले में डाबरी थाने से स्थानीय सहायता मांगी थी. DCP के अनुसार यूपी पुलिस के साथ दिल्ली पुलिस सीतापुरी के गरिमा गृह गयी और बाद में यूपी पुलिस आदित्य को लेकर चली गयी.
उन्होंने आगे कहा कि “उसके बाद करीब 6-7 ट्रांसजेंडर व्यक्ति यूपी पुलिस टीम के साथ गए व्यक्ति से मिलने की मांग को लेकर थाना डाबरी पहुंचे. उन्हें बताया गया कि मामला यूपी पुलिस का है और डाबरी थाना ने केवल सहायता दी है.”
हालांकि डाबरी थाना के SHO सतीश चंद्र और ACP अनिल दुरेजा ने इस मामले पर कुछ भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया. उन्होंने यह भी नहीं बताया कि अगर दोषी गरिमा गृह के अन्य 6-7 ट्रांसजेंडर सदस्य थे, जिनकी पिटाई की गयी, तो दिल्ली पुलिस ने उन्हें फल क्यों भेजा?
क्विंट को मिले आदित्य के आधार कार्ड के अनुसार वह 22 साल का है. अगर उसके घर वालों ने गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई भी है तो उसे लेने के लिए यूपी पुलिस रात 12.30 के बाद क्यों जाती है? अगर वह कुख्यात अपराध का आरोपी नहीं है तो क्या सुबह तक इंतजार नहीं किया जा सकता था?
क्या आदित्य सरकार द्वारा समर्थित गरिमा गृह में जबरदस्ती रह रहा था? यहां दर्ज केस स्टडी और दूसरे साथी के बयान इस दावे को नकारते हैं.
अगर गरिमा गृह में किसी को जबरदस्ती रखा गया तो क्या दिल्ली पुलिस को इसकी जांच नहीं करनी चाहिए?
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