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दिल्ली पुलिस की चार्जशीट 'फैमिली मैन' सीरीज की स्क्रिप्ट जैसी- उमर खालिद के वकील

अदालत सोमवार 6 सितंबर को जमानत याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी

क्विंट हिंदी
भारत
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उमर खालिद और पुलिस के बीच किस बात पर बहस हुई?
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उमर खालिद और पुलिस के बीच किस बात पर बहस हुई?
(फोटो:क्विंट हिंदी)

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दिल्ली दंगों ( Delhi Riots) में साजिश के आरोप में UAPA के तहत जेल में बंद छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद (Umar Khalid) की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई. इस सुनवाई के दौरान उनके वकील त्रिदीप पायस ने कोर्ट में कहा कि दिल्ली पुलिस की एफआईआर (FIR) 59/2020 अमेजॉन की सीरीज "फैमिली मैन" (Family Man) जैसी लगती है, जिसमें आरोपों को साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है. अदालत अब सोमवार को जमानत याचिका पर सुनवाई जारी रखेगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत के सामने कहा. चार्जशीट में बिना किसी तथ्यात्मक आधार के उमर खान के खिलाफ बढ़ा-चढ़ा कर आरोप लगाए गए हैं. उन्होंने आगे कहा कि अतिशयोक्ति वाली इस चार्जशीट को पढ़कर ऐसा लगता है कि "रात 9:00 बजे चिल्लाने वाले समाचार चैनलों की स्क्रिप्ट है" और यह "जांच अधिकारियों की कल्पनाओं" पर आधारित लगता है.

उमर खालिद के वकील ने पुलिस की चार्जशीट को लेकर सवाल उठाते हुए आगे कहा,

"क्या चार्जशीट ऐसे लिखी जाती है, ये किसी न्यूज चैनल की स्क्रिप्ट लग रही है, न्यूज चैनल जो कहना चाहते हैं, कह देते हैं, किसी चीज में कोई एंगल देना चाहते हैं, दे देते हैं. बिल्कुल उनकी कोई जिम्मेदारी नजर नहीं आती."

वकील ने कहा कि दिल्ली पुलिस ने अपनी चार्जशीट में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध के लिए उमर खालिद द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन को सांप्रदायिक शक्ल देने की कोशिश की है.

"अभियोजन (prosecution) ने स्थिति के अनुरूप तैयार किया बयान"

वकील ने कहा कि चार्जशीट निर्णायक रूप से दिखाता है कि शिकायत दर्ज करने की तारीख तक कोई अपराध नहीं था. उन्होंने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष का मामला समाचार एजेंसी की एक क्लिप पर निर्भर करता है, जिसमें कथित रूप से देशद्रोही होने वाले भाषण का पूरा वीडियो भी नहीं था.

पिछली सुनवाई में भी उमर खालिद के वकील ने कहा था था कि, दिल्ली पुलिस का मामला रिपब्लिक टीवी और न्यूज 18 द्वारा प्रसारित अमरावती में दिए गए खालिद के भाषण की छोटी क्लिप पर आधारित था, जो बदले में बीजेपी नेता अमित मालवीय द्वारा ट्वीट किए गए एक संपादित वीडियो पर आधारित थे. उमर खालिद के वकील ने पुलिस चार्जशीट में लिखे शब्दों को पढ़ते हुए कहा,

"वह (उमर खालिद) हर प्राथमिकी में दो बयान देता है. 27 मई, 2020 को, वो जनवरी 2020 से अनजान है. लेकिन 29 जुलाई को, वो न केवल इसके बारे में बोलता है, बल्कि कहता है कि वो पीएफआई कार्यालय के अंदर जाता है, फिर वो एक मजिस्ट्रेट के सामने बयान देता है कि वो अंदर नहीं गया, फिर वो वापस आता है और बयान देता है कि वो बाहर इंतजार कर रहा था."

उन्होंने कहा कि यूएपीए के तहत परीक्षण को पूरा करने के लिए इस तरह के बयान असंगत हैं, वकील ने कहा कि एक कार्यालय के अंदर तीन लोगों का मिलना और जाना कोई साजिश नहीं है. उन्होंने आगे कहा, "यह बयानों का फ्लेवर है जो स्थिति के अनुरूप तैयार किया गया है."

'सीएए (CAA) विरोध को दिया गया सांप्रदायिक रंग'

उमर खालिद की तरफ से दी गई दलीलों का मुख्य जोर ये था कि चार्जशीट ने उमर के सांप्रदायिक होने के बार-बार आरोप लगाकर जनता के मन में एक साम्प्रदयिक तस्वीर बनाने का काम किया है.

उन्होंने तर्क दिया कि पुलिस एक तस्वीर पेश कर रही थी कि सीएए के विरोध का नेतृत्व केवल एक विशेष समुदाय ने किया था और विरोध सांप्रदायिक था. उन्होंने कहा, "यदि आप कह रहे हैं कि सीएए खराब है, तो इसका मतलब है कि आप इस देश और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं. लेकिन दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को सांप्रदायिक बताया गया है."

"यह खतरनाक है और अब आप देखेंगे कि कौन सांप्रदायिक है, जब आप चार्जशीट में चीजें जोड़ते हैं और समाचार चैनल इसे ले जाते हैं, तो देश में सांप्रदायिकता किसने की? पुलिस जैसे-जैसे हमें आगे बढ़ती हैं, इस्लाम एक बुरा है शब्द, मस्जिद एक बुरा शब्द है, धीरे-धीरे आप वैसी ही धारण बना लेते हैं."
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सीएए विरोधी प्रदर्शनों में गैर-मुसलमानों की भागीदारी पर, उमर खालिद के वकील ने कहा, "बेशक! सीएए के खिलाफ देशव्यापी विरोध हो रहा है, कौन सा बयान स्थापित करता है कि सब कुछ एक विशेष समुदाय से पहचाना जा सकता था? नहीं! यह एक धर्मनिरपेक्ष विरोध था. यह लगभग ऐसा है जैसे सीएए का धर्मनिरपेक्ष विरोध करना गलत है."

उन्होंने कहा, "यदि सीएए गलत है, तो क्या यह अन्य समुदायों के लोगों के शामिल होने के लिए खुला नहीं है? या महिलाओं को विरोध करने का अधिकार नहीं हो सकता है? क्या महिलाएं गलत विरोध कर रही हैं? या वे विरोध करने में असमर्थ हैं? क्या किसी भी तरह के आंदोलन को केवल पुरुषों द्वारा संचालित किया जाता है?"

इससे पहले, उमर खालिद ने अदालत को बताया था कि पूरी चार्जशीट एक मनगढ़ंत है और उसके खिलाफ मामला रिपब्लिक टीवी और न्यूज 18 द्वारा चलाए गए वीडियो क्लिप पर आधारित है जिसमें उनके भाषण का एक छोटा संस्करण दिखाया गया है.

उमर खालिद पर कई धाराओं में मामला दर्ज

खालिद के खिलाफ एफआईआर ( FIR) में यूएपीए की धारा 13, 16, 17, 18, आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम, 1984 की धारा 3 और 4 सहित कड़े आरोप हैं. आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता, 1860 के तहत विभिन्न अपराधों के तहत भी आरोप लगाए गए हैं.

पिछले साल सितंबर में पिंजरा तोड़ के सदस्यों और जेएनयू के छात्रों देवांगना कलिता और नताशा नरवाल, जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र आसिफ लकबाल तन्हा और छात्र कार्यकर्ता गुलफिशा फातिमा के खिलाफ मुख्य आरोप पत्र दायर किया गया था. आरोप पत्र में कांग्रेस की पूर्व पार्षद इशरत जहां, जामिया समन्वय समिति के सदस्य सफूरा जरगर, मीरान हैदर और शिफा-उर-रहमान, निलंबित आप पार्षद ताहिर हुसैन, कार्यकर्ता खालिद सैफी, शादाब अहमद, तसलीम अहमद, सलीम मलिक, मोहम्मद सलीम खान और अतहर खान भी शामिल हैं.

इसके बाद, नवंबर में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद और जेएनयू के छात्र शारजील इमाम के खिलाफ फरवरी में पूर्वोत्तर दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा में कथित बड़ी साजिश से जुड़े एक मामले में पूरक (Suplementary) चार्जशीट दाखिल की गई थी.

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