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दिल्ली दंगों पर पुलिस की तीसरी चार्जशीट- 3 दावे और 3 कमियां

पहले की 2 चार्जशीट में WhatsApp चैट्स को आधार बनाया गया, तीसरी चार्जशीट में CCTV फुटेज और लोगों के जुटने का जिक्र है

ऐश्वर्या एस अय्यर
भारत
Published:
दिल्ली हिंसा के दौरान की तस्वीर
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दिल्ली हिंसा के दौरान की तस्वीर
फाइल फोटो

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दिल्ली पुलिस स्पेशल सेल ने दिल्ली दंगा षडयंत्र मामले में एफआरआई संख्या 59 के तहत तीसरी चार्ज शीट दाखिल की है और दिल्ली की एक अदालत ने 2 मार्च को इसे संज्ञान में लिया है. इसी एफआईआर के जरिए आतंक विरोधी कानून यूएपीए लगाया गया है. संदर्भ के लिए बताना जरूरी है कि पिछले साल उत्तर पूर्वी दिल्ली के कुछ हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की साजिश की जांच करने के लिए पुलिस ने चार्जशीट तैयार की थी. पिछले साल 16 सितंबर और फिर 22 नवंबर को दो चार्जशीट फाइल की जा चुकी हैं. यह तीसरी चार्जशीट है.

300 पन्नों की चार्जशीट में पुलिस ने दंगों की साजिश रचने की ही थ्योरी पेश की है. पुलिस ने इस चार्जशीट में उत्तर पूर्वी दिल्ली में चांद बाग के आस-पास, एंटी सीएए प्रोटेस्ट वाली जगह पर हिंसा की तफ्तीश की है. उसका कहना है कि यह हिंसा ‘बड़े पैमाने पर षडयंत्र’ रचने के लिए की गई थी.

पहले की दो चार्जशीट में एंटी सीएए एक्टिविस्ट्स जैसे खालिद सैफी, उमर खालिद, शरजील इमाम, सफूरा जरगर के बीच व्हॉट्सएप चैट को मुख्य रूप से आधार बनाया गया था. लेकिन इस तीसरी चार्टशीट में कहा गया है कि वहां कैसे लोग जमा हुए. इसमें किसी खास एक्टिविस्ट पर फोकस नहीं किया गया है.
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पुलिस ने कहा है कि सीसीटीवी फुटेज के विश्लेषण से पता चलता है कि कैसे सीसीटीवी कैमरों को या तो हटाया गया या उन पर कपड़ा डाल दिया गया. कई मामलों में उनके पास इसका विजुअल सबूत भी है. एक सीसीटीवी कैमरा जब पावर सोर्स से डिसकनेक्ट किया गया तो उसके ऐन पहले एक नाबालिग लड़का उसके सामने नजर आया. पुलिस ने उस नाबालिग लड़के की पहचान कर ली है, उससे सवाल किए हैं और स्थानीय पुलिस स्टेशन को आगाह कर दिया गया है कि उसके खिलाफ किशोर न्याय कानून के तहत कार्रवाई की जाए.

उन्होंने आरोप लगाए हैं कि चांद बाग और मुस्तफाबाद (नए और पुराने) में सीसीटीवी कैमरों को ‘सुनियोजित तरीके’ से डिसेबल किया गया जिसके बाद उपद्रवी कथित रूप से आ जुटे और उन्होंने बिना किसी उकसावे के पुलिस बलों और बहुसंख्यक समुदाय पर हमले करने शुरू किए.

पुलिस का दावा है कि इसकी वजह से फरवरी 2020 की हिंसा में शुरुआती मौतें हुईं. 42 वर्ष के हेड कांस्टेबल रतन लाल की मृत्यु हुई. उनकी मौत के बाद ऐसे कई वीडियो हैं जिनमें उपद्रवी, जोकि एंटी सीएए प्रोटेस्ट साइट के काफी करीब हैं, पुलिस वालों की तरफ बढ़ रहे हैं. उन्हें अपनी तरफ आते देख पुलिस वाले अपनी जान बचाने के लिए डिवाइडर पर चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं. वीडियो से खुलासा हुआ है कि भीड़ पत्थर फेंक रही है और पुलिस वालों को डंडों से मार रही है. रतन लाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि उनके शरीर पर 21 चोटें थीं और डंडों, रॉड्स और गोलियों से उन पर वार किए गए थे. ऐसी ही चोटें डीसीपी अमित शर्मा और एसीपी अनुज कुमार को भी आई थीं.

इस आर्टिकल में हम बता रहे हैं कि पुलिस ने क्या दावा किया है और हमें उनके इर्द-गिर्द क्या कमियां नजर आती हैं.

दावा नंबर 1 VS कमी

इस चार्जशीट में दिल्ली पुलिस ने यह आरोप लगाया है कि दंगे जाफराबाद और मौजपुर में नहीं, चांद बाग में वजीराबाद रोड से शुरू हुए. अब तक जाफराबाद और मौजपुर को ही हिंसा का एपिसेंटर बताया जा रहा था.

वे एपिसेंटर क्यों हैं?

पुलिस ने यह मामला बनाया है कि दंगे 24 फरवरी को शुरू हुए लेकिन उसने इसके 24 घंटे पहले जाफराबाद और मौजपुर में दोनों समुदायों के बीच हुई पत्थरबाजी को चिंता का विषय नहीं माना. इसके कुछ ही पहले बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने पुलिस को सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को, जो जाफराबाद सड़क रोककर बैठे थे, हटाने का अल्टीमेटम दिया था. इसके बाद तनाव बढ़ गया. उसी दिन मौजपुर और जाफराबाद में हिंसा के पहले संकेत मिले. इस दावे की पुष्टि के लिए कई वीडियो मौजूद हैं.

सिर्फ कपिल मिश्रा ही नहीं, स्वयंभू हिंदू नेता रागिनी तिवारी उर्फ जानकी बहन ने भी 23 फरवरी को मौजपुर के पास फेसबुक लाइव वीडियो के जरिए कहा कि ‘हिंदुओं घर से बाहर निकलो और मरने को तैयार हो जाओ.’ इसके अलावा उन्होंने कहा कि “हिंदुओं पर बहुत हमले हो चुके हैं. हम अब और हमले बर्दाश्त नहीं करेंगे. हिंदुओं, बाहर निकलो. मरो या मारो. बाकी बाद में देखा जाएगा. अगर अब भी तुम्हारा खून नहीं खौला तो वह खून नहीं, पानी है.”

लेकिन पुलिस का कहना है कि चांद बाग और मुस्तफाबाद में सीसीटीवी कैमरों के डिसलोकेशन और डिसकनेक्शन के बाद “उपद्रवी बड़ी संख्या में आ जुटे जोकि वजीराबाद सड़क की तरफ बढ़े और दंगे शुरू हुए.”

अगर मौजपुर और जाफराबाद को नजरंदाज करके यह कहा जाता है कि चांद बाग से दंगे शुरू हुए तो इससे यह मुद्दा भी ठंडे बस्ते में चला जाता है कि मिश्रा या तिवारी के भाषणों और उत्तर पूर्वी दिल्ली में तनाव के बीच कोई ताल्लुक था.

पुलिस किस आधार पर यह दावा कर रही है? इसका जवाब सीसीटीवी फुटेज है.

दावा नंबर 2 Vs कमी

चार्जशीट में मुख्य रूप से पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन्स, मैप्स और दूसरे डायग्राम्स हैं. सभी सीसीटीवी फुटेज के इर्द-गिर्द घूमते हैं. पुलिस ने 24 फरवरी को दोपहर 12 से 12.50 के बीच मुख्य रूप से मुसलिम बहुल इलाकों में लगे 33 सीसीटीवी कैमरों को देखा और यह निष्कर्ष निकाला कि वहां लोग जमा हो रहे थे. वे ‘दंगे तब शुरू हुए जब मुसलमान’ गलियों से निकले और चांद बाग से होते हुए मेन वजीराबाद सड़क पर आ गए. यह सब उन लोगों ने बिना किसी उकसावे के शुरू किया था.

जैसा कि पुलिस जांच में कहा गया है, इस सड़क पर 10 मिनट के अंदर आखिरी कैमरा डिसलोकेट/डिसकनेक्ट कर दिया गया था. रतन लाल की मौत दोपहर एक बजे हुई. चार्जशीट में लिखा है- “एक षडयंत्र के तहत कैमरों को दोपहर 12 से 12.50 के बीच डिसलोकेट और डिसकनेक्ट कर दिया गया.”

अब मुख्य रूप से गैर मुसलिम बहुल इलाके खजूरी खास, करावल नगर, सोनिया विहार और ज्योति नगर के 43 सीसीटीवी कैमरों के दोपहर 12 से 12.50 के बीच के फुटेज का भी विश्लेषण किया गया. इन इलाकों को कहीं भी हिंदू इलाके या हिंदू बहुल इलाके नहीं कहा गया है. पुलिस का कहना है कि दूसरे इलाकों में जहां लोग बड़े पैमाने पर जमा हो रहे थे, इन जगहों पर उसी समय जन जीवन ‘सामान्य, शांत और बिना किसी उथल-पुथल के था.’ वहां कोई जमावड़ा नहीं था.

इसे लेकर कुछ मुद्दे हैं:

सबसे पहले चार्जशीट में इस बात को नजरंदाज किया गया है कि गैर मुसलिम बहुल इलाके मौजपुर में एक दिन पहले क्या हुआ था. उस दिन के सीसीटीवी फुटेज को चार्जशीट का हिस्सा नहीं बनाया गया था. इस एफआईआर में भी इसे जांच का विषय नहीं बनाया गया था जिसका उद्देश्य उस साजिश का खुलासा करना है जिसकी वजह से 53 लोग मारे गए. हिंसा की पहली वारदात को नजरंदाज करना चिंता का मामला है. 23 फरवरी को क्या हुआ, सिर्फ इसकी जांच करने से यह सही और निष्पक्ष तरीके से पता चल सकता है कि किसने किसको भड़काया.
दूसरी तरफ पुलिस ने चार्जशीट में सबूत के तौर पर उन ‘शांत और उथल पुथल से रहित’ इलाकों के विजुअल्स को शामिल नहीं किया जोकि ‘गैर मुसलिम बहुल’ हैं. पुलिस क्या कहना चाहती है, यह स्पष्ट नहीं है. दंगों के दौरान उत्तर पूर्वी दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में एक ही समय पर लोगों का जुटाना एक ऐसा पूर्वानुमान है जिसके पीछे कोई ठोस तर्क नहीं है.

चार्जशीट में यूएपीए के तहत आरोपी मोहम्मद सलीम खान वह अकेला शख्स है जिसे चांद बाग प्रोटेस्ट साइट का लोकल ऑर्गेनाइजर बताया गया है. उसके वकील मुजीब उर रहमान ने पुष्टि की है कि जिन इलाकों में मुसलमान लोग लाठियां चला रहे थे, सिर्फ उन्हीं का जिक्र चार्जशीट में है. “लेकिन इससे जुड़ा संदर्भ भी है. ऐसा वे लोग अपने पड़ोसियों, घरों और परिवार वालों को दंगाइयों से बचाने के लिए कर रहे थे. यह संदर्भ गायब है. हिंदू बहुल इलाकों के सीसीटीवी फुटेज को चार्जशीट में शामिल नहीं किया गया है. ज्यादातर सीसीटीवी फुटेज सिर्फ मुसलिम बहुल इलाकों के हैं क्योंकि इस जांच का पूरा मकसद यह पता लगाना है कि कौन लोग सीएए प्रदर्शनों में शामिल थे और लंबी कानूनी लड़ाई में उलझाकर उनका मनोबल गिराना है. इसका उद्देश्य यह है कि उन लोगों का मनोबल गिरे और यह सुनिश्चित हो कि ऐसे प्रदर्शन फिर कभी न हों.”

दावा नंबर 3 vs कमी

अपनी अब तक की जांच के आधार पर पुलिस ने निष्कर्ष दिया है कि “मुख्य षडयंत्रकारियों और मास्टरमाइंड्स ने सोच-समझकर, और पहले से योजना बनाकर दंगे किए. उनके नाम और पहचान अदालत के सामने पहले ही सौंप दिए गए हैं.”

इस मामले में दाखिल चार्जशीट्स को देखने पर यह मुद्दा उठता है कि पुलिस ने जो सबूत अदालत के सामने पेश किए हैं, उनसे दंगों के कथित मास्टरमाइंड्स और सीसीटीवी कैमरों को डिसेबल करने वाले लोगों के बीच संबंध होने का कोई ठोस सबूत नहीं मिलता.

इस मामले में चार्जशीट दाखिल कर दी गई है. अब सिर्फ मुकदमे के दौरान ही इन सबूतों की सच्चाई पर फैसला किया जाएगा.

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