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आजकल चुनाव जीतने के लिए नेताओं के जोश और कार्यकर्ताओं के उत्साह से ज्यादा जरूरी है सोशल मीडिया का शोर. तो भला गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव इस फॉर्मूले से अलग कैसे रहते. चुनावों की उलटी गिनती के बीच सोशल मीडिया सेल एक्टिव हो चुके हैं और छिड़ चुका है 'डिजिटल वॉर'.
ट्विविटर, फेसबुक और व्हाट्स-एप के इस जमाने में विरोधियों की छवि बिगाड़ने का आसान तरीका है मॉर्फ्ड पिक्चर. उदाहरण के लिए नीचे दी गई तस्वीरें देखिए. ये तस्वीरें सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से शेयर की जा रहीं हैं.
पहली तस्वीर में सोफे पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह बैठे दिख रहे हैं. तस्वीर में एक पुलिस अफसर राजनाथ सिंह के पैर पकड़े हुए है. दावा किया जा रहा है कि राजनाथ सिंह के कदमों में बैठे अफसर गुजरात के डीजीपी हैं.
अब दूसरी तस्वीर देखिए. दरअसल, यह तस्वीर साल 2011 में आई एक फिल्म का एक सीन है. फिल्म का नाम था 'क्या यही सच है'. तो अब आप समझ गये ना कि क्या सच है.
नीचे दिया गया एक और ट्वीट देखिए. इस ट्वीट में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मॉर्फ्ड तस्वीर शेयर की गई है. पिछले दिनों राहुल गांधी ने अपने डॉगी पिडी के हवाले से एक चुटीला ट्वीट किया था जो खासा चर्चा में रहा. इस फोटो में राहुल को उसी ट्वीट के लिए निशाना बनाया गया है.
इसी तरह की तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर कर विरोधी नेताओं की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है.
सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाने वाले ये ‘उस्ताद’ सच को झूठ और झूठ को सच बनाने में ऐसी कलाकारियां करते हैं कि आप हैरान रह जाएंगे. नीचे दिए गए कुछ ट्वीट्स देखिए.
पहले ट्वीट में एक टीवी चैनल का सर्वे है. तस्वीर में गुजरात के ओपिनियन पोल का नतीजा दिख रहा है- आम आदमी पार्टी को 182 सीट जबकि बीजेपी, कांग्रेस को जीरो.
इसी तरह सर्वे का नतीजा दिखाती एक और तस्वीर में बताया गया कि बीजेपी को गुजरात में 26-32 सीटें मिलने जा रही हैं, जबकि कांग्रेस 144-152 सीटों के साथ बहुमत मिलेगा. ‘मोदी लहर पर ब्रेक’ लगने का दावा करने वाली ये तस्वीर भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई. आलम ये कि चैनल को खुद इस तस्वीर के झूठा होने का एलान करना पड़ा.
फर्जी सर्वे दिखाने के लिए जिस तस्वीर के साथ छेड़छाड़ की गई, वो दरअसल एबीपी न्यूज चैनल की थी. इस तस्वीर में फोटोशॉप के जरिये आंकड़े बदलकर पब्लिक को बरगलाने की कोशिश की गई.
इन फर्जी तस्वीरों और मनगढ़ंत आंकड़ों को देखकर एक सवाल उठता है कि आखिर इस सब के पीछे कौन है? सोशल मीडिया पर छिड़ी डिजिटल वॉर में दो तरह के लड़ाके हैं. पहले वे जिनका राजनीतिक पार्टियों से सीधा संबंध है और दूसरे वे जो किसी पार्टी में विशेष आस्था रखते हैं और निजी दिलचस्पी के लिए सब करते हैं. मकसद ये कि सोशल मीडिया के सहारे विरोधियों की छवि खराब की जाए ताकि मॉर्फ्ड तस्वीरों के जरिए पब्लिक का मूड डायवर्ट किया जा सके.
तो अगली बार अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन पर कोई तस्वीर देखें तो ‘Webकूफ’ बनने की बजाए अपना दिमाग दौड़ाएं और शेयर करने से पहले दस बार सोचें.
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