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क्या विडंबना है कि जिस देश ने कोरोना वॉरियर डॉक्टरों के लिए ताली और थाली बजाई, दीये जलाए, वो आज उन्हीं डॉक्टरों, नर्स और आशा वर्कर के साथ बदसलूकी कर रहा है. नौबत ये है कि करोना से मरीजों की जंग में मदद करते-करते जब खुद कोविड-19 के शिकार हो रहे हैं तो मौत के बाद उनके अंतिम संस्कार में दिक्कत आ रही है.
न्यूरोसर्जन डॉ. साइमन हरक्यूलिस, जो चेन्नई में न्यू होप अस्पताल के एमडी थे. उनका निधन 19 अप्रैल को हो गया, 55 वर्षीय हरक्यूलिस उन कोरोना रोगियों के संपर्क में आए थे जिनका वह इलाज कर रहे थे. जब उन्हें दफनाने के लिए उनके परिवारवाले, साथी डॉक्टर और चेन्नई नगर निगम के अधिकारी गए तो पहली जगह से उन्हें लौटना पड़ा. जब उनके शव को टीपी चैत्रम के कब्रिस्तान ले जाया गया तो वहां भी विरोध झेलना पड़ा.
13 अप्रैल को, नेल्लोर के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ लक्ष्मी नारायणन रेड्डी का निधन भी कोरोना वायरस की वजह से हो गया. उन्हें भी अंतिम संस्कार के लिए विरोध झेलना पड़ा. चेन्नई के अंबत्तूर में घंटो तक स्वास्थ्यकर्मी विरोध करने वालों से अनुरोध करते रहे, लेकिन वे अंतिम संस्कार करने नहीं दे रहे थे.
इसी तरह 15 अप्रैल को, मेघालय के शिलांग में बेथानी अस्पताल के संस्थापक 69 वर्षीय डॉ जॉन एल सेलो के लिए दो गज जमीन खोजने में लगभग 36 घंटे लगे. कई स्थानों पर उन्हें भी विरोध झेलना पड़ा.
देश में इस तरह की घटनाओं को देखते हुए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने डॉक्टरों पर हिंसा के खिलाफ एक विशेष केंद्रीय कानून लागू करने का अनुरोध किया है. इसके लिए IMA के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ राजन शर्मा और महासचिव डॉ आरवी अशोकन ने पत्र लिखा है. जिसमें कहा गया है कि,
IMA ने ये चेतावनी भी दी कि अगर सरकार ने कानून लेकर नहीं आई तो बुधवार को देश भर में कैंडल जलाएंगे और गुरुवार को ब्लैक डे मनाएंगे. डॉक्टरों की चेतावनी के बाद केंद्रीय कैबिनेट ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है, जिसमें डॉक्टरों के साथ मारपीट करने पर 7 साल तक की सजा और 5 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है.
द क्विंट ने सीएमसी वेल्लोर के वायरोलॉजी के एक सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ टी जैकब जॉन से बात की, जिन्होंने बताया कि भारतीय नागरिक एक्यूट इंफॉर्मेशन डिफिशिएंसी सिंड्रोम से पीड़ित है.
डॉ जॉन का मानना है कि समाज को एक सामाजिक टीके की जरूरत है, ताकि सार्वजनिक चेतना बढ़े. कोरोना ड्रॉपलेट से फैलता है. एक मृत व्यक्ति छींक या खांस नहीं सकता, तो संक्रमण फैलने के सभी तरीके उस पल बंद हो जाते हैं जब कोई व्यक्ति मर जाता है. और एक बार जब शरीर को दफनाया जाता है, तो वायरस अंदर ही मरना शुरू हो जाता है.
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