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‘’सपने वो नहीं होते, जो हम सोते हुए देखते हैं, बल्कि सपने वो होते हैं, जो हमें सोने नहीं देते’’ भारत के पूर्व राष्ट्रपति व ‘मिसाइलमैन’ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का यह कथन सर्वश्रेष्ठ है.
दिवंगत कलाम से जुड़े यूं तो कई किस्से मीडिया की सुर्खियां बनते रहे हैं. लेकिन एक शख्स ऐसा है, जिसकी दुनिया भी कलाम साहब की सीख के बाद बदल गई. अंग्रेजी वेबसाइट द वीकेंड लीडर में छपे आर्टिकल के मुताबिक, कलाम द्वारा दी गई सीख ने उनके दसवीं फेल ड्राइवर की जिंदगी बदल दी.
काथीरेसन दसवीं की परीक्षा में फेल होने के बाद साल 1979 में भारतीय सेना में बतौर सिपाही शामिल हो गए थे. ट्रेनिंग के बाद उन्हें पहली तैनाती हैदराबाद स्थित डिफेंस रिसर्च एंड डेवलेपमेंट लेबोरेटरी(डीआरएलबी) में डॉ. ए. पी. जे कलाम के ड्राइवर के तौर पर दी गई. डॉ. कलाम उस वक्त डीआरएलबी के डायरेक्टर थे.
डॉ. कलाम ने जल्द ही अपने ड्राइवर के बारे में जान लिया था. जब उन्हें पता चला कि उनके ड्राइवर काथीरेसन ने दसवीं पास न कर पाने की वजह से पढ़ाई छोड़ दी थी, तो उन्होंने उसे फिर से पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया.
काथीरेसन कहते हैं कि वह मुझे पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे और अपने सचिव के जरिए जानकारी लेते रहते थे कि मैं किसी कोर्स में दाखिला लूं.
12 वीं पास करने के बाद काथीसेरन ने पत्राचार के जरिए ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री पूरी की. काथीरेसन कहते हैं, “डॉ. कलाम ने कहा था, अगर मेरे पास भी ये डिग्री होती तो मैं शिक्षक बन सकता था. उन्होंने मुझे डॉक्टरेट करने के लिए भी कहा, ताकि मैं कॉलेज में लेक्चरर बन सकूं.”
काथीरेसन करीब दस साल तक डॉ. कलाम के ड्राइवर के तौर पर तैनात रहे.
लेकिन कलाम की दी गई प्रेरणा काथीसेरन के दिल में आगे बढ़ने की लगन जगा चुकी थी. इसी के चलते साल 1998 में काथीसेरन ने सेना से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. इसी साल काथीेरेसन ने तमिलनाडु के तिरुनेलवेली स्थित मनोनमण्यिम सुंदरनार यूनिवर्सिटी में पीएचडी के लिए नामांकन कराया. पीएचडी के लिए उन्होंने विषय के तौर पर ‘तिरुनेलवेली जिले में चल रही जमींदारी व्यवस्था’ को चुना.
काथीरेसन ने यह विषय डॉ. कलाम द्वारा पॉलीगार्स पर आधारित उन्हें भेंट की गई पुस्तक से प्रेरित होकर चुना था. काथीरेसन कहते हैं “यह पुस्तक मेरी रिसर्च में बहुत काम आई. इसी के जरिए मैंने जमींदारी व्यवस्था को गहराई से समझा.”
साल 2002 में डॉक्टरेट पूरी करने के बाद काथीरेसन ने कुछ समय तक एक सरकारी स्कूल में बतौर अध्यापक भी काम किया. इसके बाद उनकी तैनाती विरुधुनगर डिस्ट्रिक्ट कलेक्टरेट में हुई. जहां वह टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम कॉर्डिनेट करते थे.
साल 2008 में, उन्हें अथूर के आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किए जाने का आदेश मिला. इसके आलावा कुछ दूसरे गर्वंमेंट कॉलेजों में भी तैनात रहने के बाद, फिलहाल वह अपने गृहनगर के पास तिरुनेलवेली में प्रोफेसर के पद पर तैनात हैं.
काथीरेसन कहते हैं, कि डॉ. कलाम ने ही उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया. “उन्होंने मेरी फीस दी और मुझे किताबें भी खरीदकर दीं.” उन्होंने मुझे अच्छी सीख दी और मेरा बहुत ख्याल रखा.
काथीरेसन ताजा मामला याद करते हुए कहते हैं, “हाल ही में हुए एक समारोह में वह मुझसे एक दोस्त की तरह मिले. वह मुझ पर गर्व करते थे. जब मैं मादुराई के पास मैलूर के एक कॉलेज में काम कर रहा था तो एक बार उन्होंने मेरा इंटरव्यू करने के लिए जापानी पत्रकारों की एक टीम भेज दी थी.”
वह कहते हैं,“डॉ. कलाम बहुत ही सादगी पसंद इंसान थे. साल 2011 में, वह मेरे घर आए थे. उन्होंने मेरे और मेरे परिवार के साथ खाना खाया था.”
काथीरेसन की पत्नी भी एक स्कूल टीचर है और उनका बेटा वीके राघवन चेन्नई के एक कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई कर रहा है.
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