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Droupadi Murmu: मयूरभंज से महामहिम की कुर्सी तक द्रौपदी मुर्मू का सफर

Droupadi Murmu profile: पति-बेटों की मौत ने उजाड़ दी थी जिंदगी, अब बनीं मैडम प्रेजिडेंट

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<div class="paragraphs"><p>Draupadi Murmu: पति-बेटों की मौत ने उजाड़ दी थी जिंदगी, अब बनीं राष्ट्रपति</p></div>
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Draupadi Murmu: पति-बेटों की मौत ने उजाड़ दी थी जिंदगी, अब बनीं राष्ट्रपति

(फोटो- Altered By Quint)

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देश को अपना अगला राष्ट्रपति मिल गया है. राष्ट्रपति चुनाव में सत्ताधारी एनडीए की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने आधिकारिक रूप से अपने प्रतिद्वंद्वी यशवंत सिन्हा को बड़े अंतर से हरा (Droupadi Murmu Won Presidential Election 2022) दिया है. ओडिशा में एक पार्षद के रूप में सार्वजनिक जीवन की शुरूआत से लेकर भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और दूसरी महिला राष्ट्रपति बनने का यह सफर व्यक्तिगत त्रासदी से उबरने और अपनी नियति खुद लिखने की कहानी है.

64 साल की उम्र में राम नाथ कोविंद के बाद राष्ट्रपति पदभार ग्रहण करने वालीं द्रौदपी मुर्मू सबसे कम उम्र की और स्वतंत्रता के बाद पैदा होने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति भी होंगी. वह 25 जुलाई को शपथ लेंगी.

जानिए Droupadi Murmu की कहानी 

20 जून 1958 को ओडिशा में द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ था. द्रौपदी मुर्मू ओडिशा में मयूरभंज जिले के कुसुमी ब्लॉक के उपरबेड़ा गांव के एक संथाल आदिवासी परिवार से आती हैं और वह दिवंगत बिरंची नारायण टुडू की बेटी हैं. मुर्मू की शादी श्याम चरम मुर्मू से हुई थी.

उन्होंने रामा देवी विमेंस कॉलेज से बीए की पढ़ाई पूरी की थी. राजनीति में आने से पहले रायरंगपुर में एक जूनियर सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया था.

उनकी राजनीतिक यात्रा 1997 में शुरू हुई जब वह ओडिशा के रायरंगपुर जिले में पार्षद चुनी गईं. उसी साल वह रायरंगपुर की उपाध्यक्ष बनीं. ठीक तीन साल बाद, वह रायरंगपुर के उसी निर्वाचन क्षेत्र से राज्य विधानसभा के लिए चुनी गईं.

2000-2004 के बीच, नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली BJP सरकार में, उन्होंने परिवहन और वाणिज्य विभाग और मत्स्य पालन और पशुपालन में मंत्री पद संभाला. द्रौपदी मुर्मू ने 2002 से 2009 तक और फिर 2013 में मयूरभंज के बीजेपी जिलाध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.

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2015 में, उन्हें झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया और वह 2021 तक इस पद पर रहीं.

माना जाता है कि मुर्मू बड़ी आध्यात्मिक हैं और ब्रह्म कुमारियों की ध्यान तकनीकों को अपनाती हैं. इसे उन्होंने 2009-2015 के बीच केवल छह वर्षों में अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खोने के बाद अपनाया था.

फरवरी 2016 में दूरदर्शन को दिए एक साक्षात्कार में, सुश्री मुर्मू ने अपने जीवन के उन उथल-पुथल भरे दौर की एक झलक दी, जब उन्होंने 2009 में अपने बेटे को खो दिया था. उन्होंने बताया था कि "मैं तबाह हो गयी थी और डिप्रेशन से पीड़ित थी. मैंने अपने बेटे की मौत के बाद रातों की नींद खो दी."

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