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Dussehra 2022: UP के एक गांव में 47 साल से मुस्लिम कर रहे रामलीला का आयोजन

Dussehra: रामलीला कमेटी के अध्यक्ष मुस्लिम समाज के ही शिबाल हैदर हैं.

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<div class="paragraphs"><p>UP: अमरोहा के इस गांव में मुस्लिम करते हैं रामलीला का आयोजन, 47 साल पुरानी प्रथा</p></div>
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UP: अमरोहा के इस गांव में मुस्लिम करते हैं रामलीला का आयोजन, 47 साल पुरानी प्रथा

फोटो- altered by quint  

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के अमरोहा (Amroha) जिले के नौगांवा सादात में पिछले 47 वर्षों से मुस्लिम समाज रामलीला (Ramlila) का आयोजन कराता है. मात्र 20 फीसदी हिन्दू समाज के लोगों के साथ मिलकर मुस्लिम लोग ही रावण का पुतला बनाकर फूंकते हैं. इसकी शुरुआत 1975 में सैय्यद अहसान अख्तर ने रामलीला कमेटी गठित करके की थी. जो आज भी जारी है. अब रामलीला कमेटी के अध्यक्ष मुस्लिम समाज के ही शिबाल हैदर हैं.

गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल 

सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल अमरोहा में नौगांवा सादात की रामलीला हिन्दू मुस्लिम एकता का परिचय देती है. दरअसल कस्बे में हर साल मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की लीला का मंचन होता है. जिसका सारा दारोमदार रामलीला कमेटी के कंधों पर है.

इस रामलीला की कमान मुस्लिमों के हाथों में है. रामलीला के मंचन से लेकर रावण के पुतला दहन की सारी जिम्मेदारी मुस्लिम ही पूरी शिद्दत से अदा करते आ रहे हैं. करीब 12 दिन तक आयोजित होने वाली रामलीला के लिए हिंदू और मुसलिम दोनों से चंदा इकठ्ठा किया जाता है.

समाजसेवी सैय्यद अहसान अख्तर के नेतृत्व में शुरू हुआ रामलीला का आयोजन हर साल परंपरागत ढंग से जारी है.

कमेटी के मौजूदा अध्यक्ष शिबाल हैदर ने बताया कि,

"अहसान अख्तर ने करीब 30 साल तक रामलीला के आयोजन की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया था. उनके बाद गुलाम अब्बास किट्टी ने समिति अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली. फिलहाल वह अध्यक्ष की जिम्मेदारी के साथ आपसी सौहार्द की रामलीला का आयोजन करा रहे हैं."

रामलीला के आयोजन की शुरुआत में होने वाले पूजन में मुस्लिम समाज के लोग शामिल रहते हैं. मंत्रोच्चार की गूंज के बीच रोली-चावल का तिलक लगाए मुस्लिम भाइयों की मौजूदगी अपने आप में मिसाल है. अध्यक्ष शिबाल ने कहा कि ये यहां की गंगा-जमुनी तहजीब है, जो हमारे खून में बसी है. 

आंकड़ों की बात करें तो नौगांवा सादात कस्बे में आबादी का 80 फीसदी हिस्सा मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखता है. जबकि यहां केवल 20 फीसदी ही हिन्दू समाज के लोग रहते हैं. यहां हिंदू-मुस्लिम आपसी सौहार्द कायम है और दशहरे का यह आयोजन इसकी जीती जागती मिसाल है.

(इनपुट्स - प्रबल प्रभाकर)

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