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कमला भसीन, महिलाओं की आवाज उठाने वाली लेखिका का निधन

कमला भसीन का निधन महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है.

क्विंट हिंदी
भारत
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<div class="paragraphs"><p>नारीवादी लेखिका कमला भसीन</p></div>
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नारीवादी लेखिका कमला भसीन

फोटो- द क्विंट

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प्रख्यात नारीवादी, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली, कवयित्री, लेखिका कमला भसीन (Kamla Bhasin) का आज 25 सितंबर की सुबह से पहले 3 बजे निधन हो गया है.

कमला भसीन का निधन महिला आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका है. जन आंदोलनों को आवाज देने वाली कमला ने दक्षिण एशियाई नारीवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.

2002 में, उन्होंने एक फेमिनिस्ट नेटवर्क ‘संगत’ की स्थापना की थी. आज उनके निधन की खबर एक्टिविस्ट कविता श्रीवास्तव ने ट्विटर पर दी.

नारीवाद की आवाज को बुलंद किया था

महिलाओं की आवाज बनने वाली कमला भसीन का जन्म 24 अप्रैल 1946 को हुआ था. उन्होंने महिलाओं के लिए 1970 से काम करना शुरू कर दिया था. लैंगिक भेदभाव, शिक्षा, मानव विकास और मीडिया पर उन्होंने खूब काम किया था.

कमला भसीन एक प्रख्यात लेखिका भी थीं. उन्होंने ने जेंडर इक्वालिटी, नारीवाद और पितृसत्ता के मुद्दों पर कई किताबें लिखी, ये किताबें कई भाषाओं में अनुवादित होकर बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंची.

2002 में फेमिनिस्ट नेटवर्क 'संगत' की स्थापना कर कमला ने ग्रामीण और आदिवासी समुदायों की वंचित महिलाओं के साथ काम किया, जो अक्सर नाटकों, गीतों और कला जैसे गैर-साहित्यिक साधनों का उपयोग करती हैं.

कमला ने एक बार कहा था कि "सोचकर देखिए कि आज अगर महिलाएं कह दें कि या तो हमारे साथ सही से व्यवहार करें नहीं तो हम बच्चा पैदा नहीं करेंगे. क्या होगा? होगा ये कि सेनाएं ठप हो जाएंगी. मानव संसाधन कहां से लाएंगे आप?"

वह कई बार भाषणों में कह चुकी थी कि 'जब बच्चा पैदा होता है तो वह केवल इंसान होता है, मगर समाज उसे धर्म, भेद, पंथ, जाति आदि में बांट कर उसकी पहचान को छोटा बना देता है. प्रकृति इंसानों में भेद करती है लेकिन भेदभाव नहीं करती. भेदभाव करना समाज ही सिखाता है. इस भेदभाव से ही लोगों में एक दूसरे के प्रति नफरत बढ़ रही है और हिंसा में बढ़ोतरी हो रही है.'

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