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जहां एक तरफ देश और दुनिया विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) मना रहे थे वहीं पर्यावरण को लेकर एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है. इस रिपोर्ट में भारत के लिए खतरे की घंटी बज रही है. भारत की नदियों में जल प्रसार में बढ़ोतरी से पांच राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश खतरे में हैं.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत, चीन और नेपाल में 25 हिमनद झीलों और जलाशयों के जल प्रसार क्षेत्रों में 2009 के बाद से 40 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. जिसकी वजह से भारत के पांच भारतीय राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के लिए गंभीर खतरा पैदा हो गया है.
हालांकि, यह सिर्फ जल प्रसार में बढ़ोतरी का मामला नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 1990 और 2018 के बीच भारत के एक तिहाई से अधिक तटरेखा में कुछ हद तक कटाव देखा गया है. पश्चिम बंगाल सबसे बुरी तरह प्रभावित है, जिसकी 60 प्रतिशत से अधिक तटरेखा भूमि के कटाव होने से प्रभावित है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि चक्रवात की घटनाओं में और समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी के अलावा मानवजनित गतिविधियां, जैसे कि- बंदरगाहों का निर्माण, समुद्र तट पर खनन और बांधों का निर्माण तटीय कटाव के कुछ कारण हैं.
CSE की रिपोर्ट के मुताबिक, 117 नदियों और सहायक नदियों में फैले एक-चौथाई निगरानी स्टेशन में, दो या उससे अधिक जहरीले धातुओं के उच्च स्तर की खबर मिली है.
गंगा नदी के 33 निगरानी केंद्रों में से 10 में प्रदूषण का स्तर अधिक है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के वन क्षेत्र का 45 से 64 फीसदी 2030 तक जलवायु हॉटस्पॉट बनने की संभावना है. साल 2050 तक, देश का लगभग पूरा वन क्षेत्र जलवायु हॉटस्पॉट बनने की संभावना है.
117 नदियों और सहायक नदियों में फैले एक-चौथाई निगरानी स्टेशनों में, दो या अधिक जहरीली धातुओं के उच्च स्तर की सूचना मिली है। गंगा नदी के 33 निगरानी स्टेशनों में से 10 में प्रदूषण का स्तर अधिक है.
जलवायु हॉटस्पॉट एक ऐसे क्षेत्र को कहा जाता है जो जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों का सामना कर सकता है.
रिपोर्ट से पता चला है कि भारत ने 2019-20 में पैदा हुए 35 लाख टन प्लास्टिक कचरे में से 12 प्रतिशत का रिसाइकिल किया और 20 फीसदी को जला दिया. इसमें कहा गया है कि बाकी 68 फीसदी प्लास्टिक कचरे के बारे में कोई जानकारी नहीं है, जो संभवतः डंपसाइट्स और लैंडफिल साइट में खप गया होगा.
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