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पूर्व सीएजी विनोद राय ने द क्विंट से 2G घोटाला, सीएजी, सीबीआई और अपनी नई किताब पर बात की है. पूर्व सीएजी विनोद राय का कहना है, ‘‘मैं आज भी 100 फीसदी उस 1 लाख 76 हजार करोड़ के आंकड़े के साथ खड़ा हूं.’’
इसके साथ ही राय ये भी मानते हैं कि अगर वही ऑडिट फिर से किया जाए तो वही सब दोहराया जाएगा जो उस वक्त हुआ. विनोद राय के मुताबिक, कभी भी आंकड़ों को बढ़ाचढ़ा कर पेश नहीं किया गया.
लोकतंत्र में सरकारी संस्थाओं का बड़ा महत्व है यही संस्थाएं सरकारों पर निगरानी भी रखती है. लेकिन जब यही संस्थान विश्वसनीयता खो रहे हों तो लोकतंत्र का क्या होगा? पूर्व सीएजी विनोद राय अपनी किताब ‘Rethinking Governance: Holding to account India's Public Institutions’ में यही सवाल उठा रहे हैं और इसपर अपने विचार भी बता रहे हैं.
जब विनोद राय से पूछा गया कि उनकी किताब पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के इस बयान के साथ शुरू होता है जिसमें सिंह ने कहा था कि ‘‘सीएजी ने पहले कभी भी नीतिगत मामलों पर कमेंट नहीं किया वो संविधान द्वारा निर्धारित अपना काम करें.’’
इसके जवाब में राय ने कहा कि उन्होंने कभी भी अपनी मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं किया. सीएजी साफ तौर पर मानती है कि नीतियां बनाना सरकार का काम है. इसमें सीएजी का कोई काम नहीं है. लेकिन एक बार जब नीति बन जाती है और सरकार काम करने लगती है चाहे वो खर्चे हों या कोई प्रोजेक्ट और स्कीम शुरू करने की बात हो. उन्होंने कहा कि किसी प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद सीएजी का काम शुरू होता है, सीएजी चाहे तो वह जांच या ऑडिट कर सकती है कि नीति निर्धारण का पूरी तरह से पालन हो रहा है या नहीं.
राय ने कहा कि वो आज भी उस आंकड़े पर कायम हैं और उस वक्त सीएजी ने उसे अनुमानित घाटा कहा था. विश्व बैंक से लेकर कई और ऑडिट करने वालों की बोलचाल में अनुमानित घाटे की परिभाषा का इस्तेमाल किया जाता है.
राय ने बताया कि इस अनुमानित घाटे के लिए 4 फॉर्मूले बताए थे. क्योंकि 1 लाख 76 हजार करोड़ का आंकड़ा बहुत बड़ा था इसलिए मीडिया ने इसे ही उठाया.
राय के मुताबिक, सीएजी ऑडिट करता है और ऑडिट जांच नहीं होती. ऑडिट रिकॉर्ड्स को देखता है, गाइडलाइन्स, नीतियों और नीतियों के लागू होने और फिर उसके क्या नतीजे आते हैं फिर इसके बाद वो एक रिपोर्ट तैयार करते हैं जिसे संसद में पेश किया जाता है.
उस वक्त सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर की गई, कोर्ट ने पीआईएल दायर होने के बाद पाया नीतियों के लागू होने में कई गड़बड़ियां थी जिसके चलते लाइसेंस रद्द कर दिए गए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक बात साफ कही थी कि वो सीएजी रिपोर्ट के आधार पर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच रहे हैं क्योंकि रिपोर्ट पीएसी के सामने पेश की जा चुकी थी. सुप्रीम कोर्ट ने उन सबूतों और दस्तावेजों के आधार पर फैसला किया था जो कोर्ट में पेश किया गया. कोर्ट ने लाइसेंस रद्द किए और फिर सीबीआई ने जांच की और जो सबूत, दस्तावेज और गवाह मिले वो सभी ट्रायल कोर्ट में पेश किए गए.
सीबीआई पर बात करते हुए राय ने कहा, ‘‘सीबीआई में राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं. मैंने 'नादिर' की बात तब की थी, जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई के 'पिंजरे का तोता' कहा था. मैं इसी विश्वसनीयता की बात कर रहा हूं जब देश के सबसे बड़े न्यायालय ने सीबीआई के काम करने के तरीके पर सवाल उठाए.”
राय ने कहा, “सांगठनिक तौर पर बात की जाए तो देखा जा सकता है कि सीबीआई में कई कमियां है और कई आयोगों ने सुधार के लिए भी कहा है. सीबीआई वो घुड़सवार है जिसका दोनों पांव दो घोड़ों पर हैं. इसीलिए मैं सीबीआई में सांगठनिक अक्षमता की बात करता हूं.’’
राय ने कहा कि उनका मानना है कि सरकारी संस्थानों को संस्थानों की तरह ही देखा जाना चाहिए..उनकी स्वायत्ता बरकरार रखने की जरूरत है. इन संस्थानों में काम करने वाले लोगों की विश्वनसीयता भी बनी रहनी चाहिए. जब तक इन लोगों के चुने जाने की प्रक्रिया पारदर्शी है और विश्वसनीय है तब तक इसपर कोई सवाल नहीं उठा सकता.
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