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Exclusive।संसद में पुरुषों के ‘दबदबे’ पर खुलकर बोलीं रेणुका चौधरी

मेरी परवरिश लड़के या लड़की की तरह नहीं बल्कि इस देश के नागरिक की हैसियत से हुई है

क्विंट हिंदी
भारत
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रेणुका चौधरी की हंसी के बाद संसद के बाहर और भीतर दोनों जगह कांग्रेस-बीजेपी में भिड़ंत.. 
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रेणुका चौधरी की हंसी के बाद संसद के बाहर और भीतर दोनों जगह कांग्रेस-बीजेपी में भिड़ंत.. 
(फाइल फोटो: PTI)

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कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी की हंसी पर पीएम के संसद में दिए गए बयान पर विवाद जारी है. दरअसल, रेणुका ने पीएम मोदी के इस दावे पर सदन में ठहाके लगाए थे कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान आधार कार्ड पर विचार किया गया था. सभापति नायडू ने जब रेणुका के ठहाके पर उन्हें टोका, तो पीएम ने कहा, सभापति महोदय, रेणुकाजी को मत रोकिए. 80 के दशक में 'रामायण' धारावाहिक देखने के बाद मुझे पहली बार ऐसी हंसी सुनने को मिली है. इसके बाद सत्तापक्ष के सांसदों ने ताली बजाकर इस बयान का स्वागत किया.

रेणुका समेत कई नेताओं ने इसका पुरजोर विरोध किया है. ऐसे में क्विंट ने इस मुद्दे पर रेणुका चौधरी से खास बातचीत की.

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किसी के हंसने जैसी व्यक्तिगत चीज पर राजनीति हो रही है. इस बात पर आप क्या कहेंगी?

मेरी परवरिश लड़के या लड़की की तरह नहीं बल्कि इस देश के नागरिक की हैसियत से हुई है. मैंने इसका खामियाजा भी उठाया है. चाहे कॉलेज में मोटरसाइकिल चलाने का मामला हो या ट्रैक्टर चलाने का. मेरे पिता ने भी मुझसे पहले ही कह दिया था कि मैं ही उनका अंतिम संस्कार करूंगी.

इसके बावजूद समाज आपकी आलोचना करता है, सवाल उठाता है, आपको नुकसान पहुंचाता है. आजकल तो नया मॉडल आ गया है, इन लोगों में आपका सामना करने की आदत तो होती नहीं है तो ये आपको ट्रॉल करते हैं. जिन लोगों को ये जानते भी नहीं उनके बारे में बुरा बोलते हैं.

लेकिन आपको इन सब से डील करना होता है. अगर आप इनकी वजह से झुक जाती हैं तो कोई आप क्या बोलते हैं उससे फर्क नहीं पड़ता. मैं सांसद हूं और अगर मैं कुछ कहती हूं तो मुझे वैसा ही कंडक्ट करना होगा. उदाहरण पेश करना होगा.

मैं बहुत खुशनसीब हूं कि ऐसा करने के लिए मुझे कोई अलग से कोशिश नहीं करनी होती. यह सब मुझमें मेरी परवरिश के दौरान ही शामिल हो गया था.

मैंने संसद में प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाई थी. कोई कैसे संसद में खड़ा हो कर कह सकता है कि आधार बीजेपी के समय में आया है. जबकि पहले यही लोग आधार की आलोचना किया करते थे. ऐसी स्थिति में आप हंसते या रोते हैं.

क्या आपको लगता है संसद में उस दिन जो हुआ उससे देश के सामने गलत तस्वीर पेश हुई.

वो एकदम वाहियात था. ये सब हम हर दिन झेलते हैं. सबसे बड़ी बात जिस संसद में लोग बैठकर महिलाओं के लिए कानून बनाते हैं, उन्हीं को सबसे ज्यादा शिक्षित करने की जरूरत है. कुछ लोगों को छोड़कर ज्यादातर लोग समझते हैं कि हम वहां उनकी बराबरी के नहीं हैं. ये लोग हमारे समाज का ही चेहरा हैं. वीमेन रिजर्वेशन के मुद्दे से ये समझा जा सकता है.

क्या वीमेन रिजर्वेशन के मुद्दे पर संसद में एकजुटता है?

हम भाग्यशाली हैं कि कांग्रेस में इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी जैसी नेता थीं तो लोग महिलाओं को कैसे सुना जाता है, ये बात समझते हैं. राहुल गांधी इस बात को समझते हैं.

क्या दूसरी पार्टियों की महिलाओं ने आपका समर्थन किया?

बिलकुल, हमने जाकर स्पीकर वेंकैया नायडू से भी बातचीत की. विप्लव ठाकुर, रजनी पाटिल, शैलजा कुमारी और दूसरी महिलाएं मेरे साथ गईं.

जब संसद में सत्ताधारी लोग हंस रहे थे, तब भी निर्मला सीतारमण चुप बैठी थीं?

बिलकुल, इसके लिए उनकी सदबुद्धि को क्रेडिट देनी चाहिए. उस वक्त लोग अपने नेता के कमेंट पर हंसे जा रहे थे, बेंच ठोक रहे थे, उनमें से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि खड़ा होकर बोले कि ये गलत हो रहा है, मैं महिलाओं का सम्मान करता हूं.

क्या आपको कोई ऐसा उदाहरण याद आता है जब राजनीति में आने के बाद आपके साथ कुछ गलत हुआ हो?

हम हर दिन इस तरह का व्यवहार झेलते हैं. संसद हमारे समाज का ही चेहरा है.

बता दें कि चौधरी ने अपने पिता का अंतिम संस्कार किया था, जिसके बाद खूब बवाल मचा था कि एक लड़की कैसे अंतिम संस्कार कर सकती है.

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Published: 11 Feb 2018,04:30 PM IST

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