बजट 2018 की सारी बड़ी हेडलाइंस एडवांस में जान लीजिए

2018 के बजट में आपको क्या कुछ मिल सकता है, देखिए उसकी झलक

संजय पुगलिया
भारत
Updated:
बजट में सम्भावनाओं, जरूरतों और अनुमानों की लिस्ट तो बनती है
i
बजट में सम्भावनाओं, जरूरतों और अनुमानों की लिस्ट तो बनती है
(फाइल फोटो: AP)

advertisement

हमने 2018 के बजट कवरेज का नाम दे दना धन रखा है. पीएम मोदी को गरीबी दूर करने, रोजगार देने और ग्रोथ लाने के लिए बहुत सारे पैसों की जरूरत है. 2019 के चुनाव जीतने के लिए बजट उनके लिए बहुत अहम औजार नहीं, लेकिन एक औजार तो है, जिससे वो अपने प्रो-गरीब मैसेज पर जोर डाल सकें. उसके लिए गरीबों को वो दनादन पैसे देना चाहेंगे.

इस सरकार का ये विश्वास है कि राष्ट्रवाद के साथ रोकड़ा अच्छे-अच्छों को जज्बाती बना सकता है. जरूरी है कि शहरी भारत और मिडिल क्लास की दीवानगी टूटने न पाए. इसलिए उन्हें मरहम और मदद, दोनों दी जाए. इसके लिए अमीरों से ले दना धन भी हो सकता है.

भारत में बजट अब भी पूरी तरह महज एक अकाउंटिंग एक्सरसाइज नहीं है, ये पॉलिटिकल इकनॉमी पर सरकारों की सोच और रणनीति बताता है. इस नजरिए से देखें तो बजट में सम्भावनाओं, जरूरतों और अनुमानों की लिस्ट कुछ इस तरह की बनती है:

इनकम टैक्स

छोटे टैक्सपेयर को राहत मिल सकती है. (फोटो: iStock)

इनकम टैक्स को 33 से 25% तक लाने वाला रोडमैप भूल जाइए. सरकार ने 2015 में वादा किया था कि तीन साल में टैक्स रेट कम किए जाएंगे. कॉरपोरेट सेक्टर ने ये उम्मीद छोड़ रखी है. लेकिन छोटे टैक्सपेयर को राहत मिल सकती है, यानी ढाई लाख रुपये तक टैक्स छूट की सीमा बढ़ाकर 3 लाख की जा सकती है. महिलाओं, बुजुर्गों को भी उस हिसाब से कुछ और रियायतें दी जा सकती हैं.

GST

क्या सरकार वसूली बढ़ाने के लिए पेट्रोलियम और रियल इस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाएगी?(फोटो: iStock)

सरकार भले ही न माने. ये बड़ा सिरदर्द है. जीएसटी दरों को और युक्तिसंगत बनाने के ऐलान करने पड़ेंगे. जब पहले राउंड में जीएसटी से कारोबार को झटका लगा, तो गुजरात चुनाव से पहले सरकार में अचानक 180 चीजों पर रेट 28% से घटा कर 18% कर दिया. इससे टैक्स वसूली घट गई. क्या सरकार वसूली बढ़ाने के लिए पेट्रोलियम और रियल इस्टेट को जीएसटी के दायरे में लाएगी? बजट में इस पर भी नजर रखिए.

शेयर कमाई पर टैक्स

शेयर बाजार में लॉन्ग टर्म गेन टैक्स नहीं है. बाजार अभी उफान पर है. ऐसे में बाजार का मूड बिगाड़े बिना टैक्स कैसे लाया जाए, इस पर सरकार सोच रही है. विदेशी निवेशक को देशी निवेशको से ज्यादा सहूलियत मिलती है.

राष्ट्रवाद कहता है कि दोनो को बराबर किया जाए. देखना होगा कि इस मोर्चे पर सरकार क्या करती है. सुनते हैं एक गुगली आएगी- लॉन्ग टर्म के बजाय शॉर्ट टर्म गेन्स की परिभाषा बदल दी जाए. यानी एक साल के बाद शेयर निवेश से कमाई पर टैक्स का टर्म बढ़ाकर तीन साल कर दिया जाए. टैक्स रेट वही रहे- 15%. ये इम्पैक्ट तो पूरा बनाएगा लेकिन इस से बहुत ज्यादा रेवेन्यू नहीं आने वाला.

गरीब

इरादा तो डाइरेक्ट कैश ट्रांसफर का है. जनधन, आधार और मोबाइल की ट्रिनिटी की मेहनत इसीलिए तो की गई थी. खजाना अगर इजाजत दे तो यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम को सिर्फ बेहद गरीबों के लिए लाएं और उनके खातों में कुछ हजार, एक या उस से ज्यादा किस्तों में ट्रान्स्फर कर दें. मोदी सरकार का बीमा पर बड़ा जोर रहता है. मौजूदा बीमा योजनाओं का विस्तार होगा और नई स्कीम भी आएगी

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

किसान

सरकार ने समर्थन मूल्य ज्यादा नहीं बढ़ाए(फाइल फोटोः Reuters)

चेतावनी सामने है. किसान बड़ा नाराज है. इस सरकार ने रिस्क लिया. समर्थन मूल्य ज्यादा नहीं बढ़ाए, क्योंकि उस से महंगाई बढ़ती, लेकिन जो बढ़ा उससे किसान का फायदा नहीं हुआ. ये बजट जो दो तीन हेडलाइन बनाए उसमें किसान प्रमुखता से दिखे, इसका इंतजाम होगा.

यानी समर्थन मूल्य, कर्ज माफी, बीमा और बाजार तक पहुंच- इस पर बजट में खूब बातें होंगी. कार्जमाफी पहले से जर्जर बैंकिंग तो और तकलीफ देगी. सरकार इस बात से वाकिफ है. मोदी और जेटली दोनो फिस्कल अनुशासन के हिमायती रहे हैं. बड़ा चैलेंज है, देखना होगा कि कर्जमाफी पर दोनों क्या राय बनाते हैं.

शहर

गुजरात चुनाव का मैसेज ये है कि शहरी मध्यवर्गीय भारत पर मोदी मैजिक जारी है, गांव में ये मैजिक अभी वर्क इन प्रोग्रेस है. 2019 चुनाव में शहरी भारत बीजेपी के साथ खड़ा रहे, इसके लिए शहरी गरीबों के लिए हाउसिंग और रोजगार पर खर्चा बढ़ेगा. मिडिल क्लास को टैक्स और निवेश में सहूलियतों के अलावा कैसे फील गुड दिया जाए इस पर नॉर्थ ब्लॉक में माथापच्ची चल रही है.

छोटे उद्यमी

सबसे ज्यादा रोजगार देने का काम माइक्रो, लघु, और मीडियम साइज के उद्यमी कर रहे हैं. जीएसटी राज में उनका बुरा हाल हुआ है. सरकार ने माना भी है. अब उसका वादा है कि उन्हें राहत देने के लिए रेट में सुधार किए जाएंगे और मदद की स्कीम भी लाई जाएगी.

आरएसएस के मजदूर संगठन तक ने सरकार को कहा है कि छोटे कारोबार की टूटी कमर को सीधा करने के सारे उपाय किए जाएं. जीएसटी राज में भी काला धन बन रहा है, नए तरीके निकल आएं हैं. सरकार इससे वाकिफ है. काले धन के खिलाफ मुहिम भी जारी रखनी है. नए कदम इस मोर्चे पर भी उठेंगे.

SME और MSME पैदा कर रहे हैं सबसे ज्यादा रोजगार(फोटो: iStock/ Altered by The Quint)

डिसइंवेस्टमेंट

सभी सरकारें विनिवेश से पैसा जुटाने का इरादा रखती हैं, पर उतना जुटा नहीं पाती जितना पैसा खजाने को चाहिए. लगता है कि सरकार एक PSU से दूसरे PSU का शेयर खरीद कर अपने खाते में रेवेन्यू दिखाने का आसान रास्ता अपनाएगी, जबकि सरकार के पास निजी कम्पनियों के क्षेत्र हैं, उन्हें बेचना चाहिए. हिसाब लगाएं- BSNL के पास 1700 एकड़ जमीन पड़ी है, उसे बेच कर अगर वो 8-10 हजार करोड़ उठा ले तो ये बेहतर ऐसेट मोनेटाइजेशन होगा. ये एक मिसाल है. ऐसे बहुत से रास्ते हैं जिससे विकास के कामों में लगाने के लिए उठाया जा सकता है. ऐसा पैसा सरकारी खर्चों और खैरात में नहीं खपना चाहिए.

डूबे कर्ज में फंसे बैंक

बड़े कॉरपोरेट कर्जों का किस्सा बेहद जटिल है. वसूली के बड़े बड़े उपाय किए गए हैं और बैंकों की सेहत सुधारने के लिए दो लाख करोड़ का पैकेज दिया गया है. ये पैसे हमारे हैं, टैक्स पेयर के हैं. देनदार, लेनदार, नेशनल कम्पनी लॉ ट्रिब्यूनल, रिजर्व बैंक, रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल और अदालत जैसे कई खिलाड़ियों के बीच इस मसले का हाल फुटबॉल मैच जैसा है.

विजय माल्या को पकड़ना है या उसका पैसा पकड़ना है, ये सरकारी तंत्र के दिमाग में साफ नहीं है. कर्ज वाले बिजने, बचाने है, कर्जदार मालिक को निकालना है ये तो ठीक है. लेकिन अभी का हाल ये है कि कई बिजनेस इस प्रक्रिया के चलते वास्तविक कीमत के बजाय कबाड़ के दाम बिकेंगे. अमीर विरोधी राजनीतिक नारों के कारण इस बात पर ध्यान कम है कि इकनॉमी पर इसका नेगेटिव असर ना पड़े. बजट में लोग इस बात का जवाब खोजेंगे कि निवेश का माहौल कैसे लौटेगा. बैंकों की सेहत सुधरे बगैर ग्रोथ का चक्र कैसे चलेगा. वित्तमंत्री से लोग ये जानना चाहेंगे.

रुपया और तेल

फिलहाल रुपया कमजोर हो, ये देश के लिए अच्छा है, लेकिन ये राष्ट्रवादी मन को रास नहीं आता. चुनौती ये है कि हमारा एक्स्पोर्ट घट रहा है, क्योंकि हम मुकाबले में नहीं टिकते और इम्पोर्ट बढ़ रहा है. उधर जिस सस्ते तेल ने हमारी अर्थव्यवस्था को कष्ट से बचाया वो अब महंगा हो रहा है. 65 डॉलर के ऊपर जा कर टिक गया तो हमारे बजट का संतुलन बिगड़ जाएगा. इस सरकार का फिस्कल स्पेस और सिकुड़ा तो ग्रोथ के लिए निवेश, निवेश का माहौल और रोजगार के मौके सब बिगड़ जाएंगे. बड़े और बुनियादी सुधारों की एक अलग लिस्ट है, लेकिन सरकार अभी अपनी प्राथमिकता पर चलेगी और वो है बजट के जरिए रूठों को मानना और इकनॉमी को पटरी पर रखना.

ये सरकार बहुत सारे आर्थिक कदम बजट के बाहर भी उठाएगी. सरकार का ये पांचवां पूर्ण बजट है. 2018 में इकनॉमी से छेड़छाड़ किए बिना विकास की डिलिवरी एक बड़ी चुनौती है. तीन रास्ते हैं- कामचलाऊ, क्रांतिकारी और शुद्ध चुनावी यानी पॉप्युलिस्ट- एक फरवरी को हमें पता चलेगा कि सरकार कौन से रास्ते पर चलती है.

ये भी पढ़ेंः बजट 2018: 10 शब्द जो आपको वित्तमंत्री का भाषण समझने में करेंगे मदद

[ गणतंत्र दिवस से पहले आपके दिमाग में देश को लेकर कई बातें चल रही होंगी. आपके सामने है एक बढ़ि‍या मौका. चुप मत बैठिए, मोबाइल उठाइए और भारत के नाम लिख डालिए एक लेटर. आप अपनी आवाज भी रिकॉर्ड कर सकते हैं. अपनी चिट्ठी lettertoindia@thequint.com पर भेजें. आपकी बात देश तक जरूर पहुंचेगी ]

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 15 Jan 2018,01:32 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT