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चुनाव आयोग (Election Commission) से सुझाव मिलने के बाद अब सरकार ने चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के लिए चुनावी खर्च की सीमा 10% बढ़ा दी है. इससे अब बिहार और बाकी राज्यों में हो रहे चुनावों में लड़ रहे उम्मीदवार चुनावी तैयारियों में अब ज्यादा रकम खर्च कर पाएंगे. कानून और न्याय मंत्रालय ने चुनाव नियम, 1961 के संशोधन का नोटिफिकेशन जारी किया. चुनावी खर्चे की सीमा को बढ़ाने की मांग बीजेपी सहित तमाम राजनीतिक दलों ने की थी.
वहीं संसदीय चुनावों के लिए भी चुनावी खर्चे की लिमिट बढ़ाकर 70 लाख रुपये से 77 लाख रुपये कर दी गई है. वहीं जहां अब तक 54 लाख रुपये लिमिट थी वहां अब चुनावी खर्चे की लिमिट 59 लाख रुपये कर दी गई है.
करीब 20 राज्य और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में अब विधानसभा और लोकसभा में उम्मीदवारों के खर्च करने की लिमिट अब बढ़कर क्रमशः 30.8 लाख और 77 लाख रुपये हो गई है. वहीं 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अब ये लिमिट बढ़कर 22 लाख और 59 लाख हो गई है.
चुनावी खर्च की सीमा चुनावी आचार संहिता के नियम 90 के तहत आती है और इसमें बदलाव के लिए कानून मंत्रालय की अनुमति जरूरी होती है.
राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से मांग की थी कि खर्च की सीमा को बढ़ाया जाए. पार्टियों का कहना था कि महामारी होने से और डिजिटल तरीके से अभियान करने से खर्च बढ़ गया है. ये आमतौर पर होने वाले चुनाव से ज्यादा महंगा हो गया है. इसके अलावा भी राजनीतिक दलों को अपने पार्टी काडर और वोटर्स को मास्क, हैंड सैनेटाजर वगैरह उपलब्ध कराना है, ये भी एक खर्च शामिल हुआ है. इस मांग पर ही चुनाव आयोग ने समिति का गठन किया था और कमेटी ने सुझाव दिया था कि चुनावी खर्चे की लिमिट 10% बढ़ाई जानी चाहिए. सरकार ने भी इस सिफारिश को मान लिया.
चुनाव आयोग के सूत्रों ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया है कि ये कदम सिर्फ कोरोना संकट को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है. प्रत्याशियों को चुनाव के दौरान आमतौर पर प्रचार गाड़ियों, रैलियों, पोस्टर, प्रचार तंत्र, मीडिया, पर्चे इन सब पर खर्च करना पड़ता है. लेकिन इस बार पार्टियों को सोशल मीडिया, डिजिटल कैंपन पर भी खर्च करना पड़ रहा है.
हर चुनाव प्रत्याशी को चुनावी नतीजों के ऐलान के 30 दिन के अंदर अपने चुनावी अभियान पर हुए खर्च का ब्योरा चुनाव आयोग को देना पड़ता है. अगर उम्मीदवार का खर्च सीमा से ज्यादा होता है तो ये चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है.
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