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जम्मू-कश्मीर में अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले ने घाटी के हालात को एक बार सामने ला दिया है. पिछले 29 सालों में कश्मीर में हुए कई आतंकी हमलों में 14,768 नागरिकों ने अपनी जान गंवा दी है.
ऐसे में जम्मू-कश्मीर में फैले आतंकवाद और इसे फैलाने वाले आतंकी संगठनों पर एक नजर डालते हैं.
कश्मीर में आतंक तो साल 1947 में बंटवारे के बाद से ही शुरू हो गया था. लेकिन राज्य में आतंक को पाकिस्तान ने साल 1989 के बाद बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया. पाकिस्तान के पूर्व राजनयिक और वाशिंगटन डीसी के हडसन इंस्टीट्यूट में साउथ और सेंट्रल एशिया के निदेशक हुसैन हक्कानी अपनी किताब में लिखते हैं:
ऐसे में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ने मौके का फायदा उठाते हुए बड़े पैमाने पर कश्मीरी युवकों और दूसरे 'बाहरी' आतंकियों की भर्ती की. यहीं से जिहाद के नाम पर आतंक फैलाने का कारोबार शुरू हुआ, जिसमें साल-दर-साल लोग अपनी जान गंवाते रहे.
साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों में साल 1988 से लेकर 9 जुलाई 2017 तक:
आंकड़ों से ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि औसतन हर 3 आतंकी को ढेर करने में देश का 1 सुरक्षाबल शहीद हुआ है. जाहिर है कि इससे देश को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता है.
पोर्टल के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में फिलहाल 10 से ज्यादा संगठन आतंक फैला रहे हैं. इनमें से ज्यादातर का सीधा संबंध पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी से है:
हिजबुल मुजाहिदीन कश्मीर के सबसे बड़े आतंकी संगठनों में से एक है. जून, 2017 में इसके सरगना सैयद सलाउद्दीन को अमेरिका ने ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया था.
इस आतंकी संगठन का हेडक्वॉर्टर PoK के मुजफ्फराबाद में है. घाटी में साल 1989 में ये संगठन सक्रिय हुआ.
इस आतंकी संगठन को पाकिस्तान समेत कई जगहों से आतंक के लिए फंडिंग मिलती है.
13 दिसंबर, 2001 में संसद भवन पर हुए आतंकी हमले को इसी आतंकी संगठन ने अंजाम दिया था. 31 जनवरी, 2000 में आतंकी मौलाना मसूद अजहर ने इस संगठन को पाकिस्तान के कराची में बनाया था. बता दें कि मसूद अजहर वही आतंकी है, जिसे इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट को हाइजैक करके साल 1999 में आतंकियों ने छुड़ाया था. ये आतंकी संगठन अधिकतर आत्मघाती हमलों को अंजाम देता है.
लश्कर-ए-तैयबा का सरगना हाफिज मोहम्मद सईद है. इस आतंकी संगठन को अफगानिस्तान में साल 1990 में बनाया गया था. साल 1993 में इसकी पहली धमक जम्मू-कश्मीर में दिखी. लश्कर-ए-तैयबा को जमात-उद-दावा के तौर पर भी जाना जाता है. अमरनाथ यात्रियों पर हुए हमले में इसी संगठन का नाम सामने आ रहा है.
हाफिज सईद ही इस संगठन को पाकिस्तान से ऑपरेट करता है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस संगठन के तार पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी ISI, तालिबान और अलकायदा से भी जुड़े हैं.
हिजबुल मुजाहिदीन का पहला बिखराव साल 1990 में आतंकी संगठन जमीयत उल मुजाहिदीन के तौर पर हुआ. उस दौरान आतंकी नसीरुल इस्लाम ने हिजबुल के आतंकी अहसान डार से बगावत की और नया संगठन बनाया. इसका पहला चीफ बना अब्दुल बासित.
इस संगठन ने अपने शुरुआती दिनों में राज्य के सूचना निदेशक मोहम्मद सईद की हत्या की. बाद में कई आतंकी घटनाओं से जमीयत उल मुजाहिदीन का नाम जुड़ा.
ये आतंकी संगठन कब अस्तित्व में आया था, इसका ठीक-ठीक कोई अनुमान नहीं है. इसकी जड़ें पाकिस्तान से जुड़ी हुई है, बांग्लादेश में भी इसका पूरा नेटवर्क है. रिपोर्ट के मुताबिक सोवियत-अफगान वार के दौरान ही ये हरकत में आया. उस दौरान पाकिस्तान के कराची में छात्र रहे कारी सैफुल्लाह अख्तर और उसके दो साथियों ने इस संगठन को खड़ा किया था.
कुछ सालों पहले तक इस आतंकी संगठन का नेटवर्क भारत, ईरान, चेचेन्या समेत 20 देशों तक फैला हुआ था.
हरकत-उल-मुजाहिदीन को साल 1985 में बनाया गया था. 1997 में अमेरिका ने इस आतंकवादी संगठन के कैटेगरी में डालते हुए बैन किया था, जिसके बाद इसने अपना नाम बदलकर हरकत-उल-अंसार रख लिया है.
इस आतंकी संगठन को बाकी आतंकी संगठनों के मुकाबले थोड़ा कम नुकसान पहुंचाने वाला माना जाता है. इसकी सरगना है आसिया आंद्राबी, जो अक्सर अपने बेतुके बयानों के कारण चर्चा में रहती है. ये संगठन कभी पाकिस्तान का झंडा फहराकर, कभी शांति वार्ता के बीच बेतुके बयान देकर कश्मीर के माहौल को बदतर करने में जुटा रहता है.
आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) में विवादों के बाद इस संगठन को बनाया गया. मुश्ताक अहमद जरगार नाम के आतंकी ने साल 1989 में खड़ा किया था. शुरुआती दौर में ये संगठन घाटी के युवाओं को आतंक के लिए बहकाता था और अपने संगठन से जोड़ता था.
बता दें कि जरगार को को भी कांधार प्लेन हाइजैक मामले में साल 1999 में छोड़ा गया था.
ये आतंकी संगठन फिलहाज कश्मीर में सक्रिय है. इसे खड़ा करने में PoK में रहने वाले आतंकी लुकमान का बड़ा हाथ था. फिलहाल आतंकी बख्त जमां इस संगठन का चीफ कमांडर है. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, इस संगठन को पाकिस्तान के इंटेलिजेंस एजेंसी का पूरा समर्थन मिलता है.
कहा जा सकता है कि जब तक पाकिस्तान जैसे कुछ देश आतंक को बढ़ावा देना, उनकी फंडिंग करना नहीं रोकेंगे, तब तक ये संगठन न सिर्फ कश्मीर के लिए, बल्कि दुनियाभर के लिए सबसे बड़ा खतरा बने रहेंगे.
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