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MP उपचुनाव: पंजाब से ज्यादा यहां दिख सकता है कृषि बिल विरोध का असर

क्यों एमपी उपचुनाव में यह कृषि बिल BJP को दे सकते हैं झटका

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भारत
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क्यों एमपी उपचुनाव में यह कृषि बिल BJP को दे सकते हैं झटका
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क्यों एमपी उपचुनाव में यह कृषि बिल BJP को दे सकते हैं झटका
(फोटो: क्विंट)

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मध्यप्रदेश में चुनावी माहौल एक बार फिर गर्म हो रहा है. 27 विधानसभा सीटों के लिये होने वाले उपचुनाव के लिये BJP और कांग्रेस दोनों ही पार्टी जोर लगा रही हैं. मध्य प्रदेश में सरकार बनाने और बिगाड़ने में किसान वर्ग अहम भूमिका निभाता आ रहा है, लेकिन इन दिनों केंद्र सरकार द्वारा पारित कृषि बिलों का किसान खुलकर विरोध कर रहे हैं. वहीं कांग्रेस इस मुद्दे को जमकर सपोर्ट कर रही है. ऐसे में BJP की चिंता बढ़ाना वाजिब है.

तो आइए जानते हैं क्यों एमपी उपचुनाव में यह कृषि बिल BJP को दे सकते हैं झटका. इसी के साथ यूपी में किसानों को लेकर राजनीति गरम हो रही है.

गेहूं खरीद में पंजाब से ऊपर पहुंचा मध्य प्रदेश

मध्यप्रदेश में पंद्रह साल बाद कांग्रेस की वापसी में किसानों की अहम भूमिका थी. मंदसौर किसान आंदोलन और किसानों की कर्जमाफी की घोषणा से सत्ता में वापसी का रास्ता कांग्रेस ने तय किया था. लेकिन पंद्रह वर्ष बाद सत्ता पाने वाली पार्टी पंद्रह महीने में ही सत्ता से बेदखल कर दी गई. BJP द्वारा कर्जमाफी को लेकर आए दिन प्रदर्शन और हो-हल्ला किया गया. लेकिन अब BJP पर फिर किसान विरोधी होने के बादल मंडराने लगे हैं.

बादल इसलिये मंडरा रहे हैं क्योंकि हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा जो तीन कृषि बिल पारित किये गये हैं उनका किसान और कांग्रेस जमकर विरोध कर रही हैं. आगामी 27 सीटों पर होने वाले उपचुनाव में निश्चित तौर पर ये बिल बीजेपी की चिंता बढ़ा सकते हैं.

  • 2018 चुनावी घोषणापत्र में कांग्रेस द्वारा कहा गया था कि सभी किसानों के 2 लाख रुपए तक के कर्जे माफ कर दिए जाएंगे. राहुल गांधी ने तब चुनावी सभाओं में यहां तक कहा था कि अगर कांग्रेस ने सत्ता में वापसी के 10 दिन बाद इस वादे को पूरा नहीं किया तो मुख्यमंत्री को बदल दिया जाएगा.
  • 2017 में मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों का आंदोलन उग्र होने के बाद पुलिस की फायरिंग में कम से कम 5 किसानों समेत 6 लोगों की मौत हो गई थी.

अब मध्य प्रदेश में किसानों के मुद्दे से ऐसे घिर रही है बीजेपी

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया अध्यक्ष, पूर्व मंत्री और विधायक जीतू पटवारी ने इस अध्यादेश के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुये कहा कि किसान विरोधी बिल खेती और किसानों को समाप्त करने के लिए मोदी सरकार लेकर आई है... एक एक किसान चाहे किसी पार्टी से जुड़ा हुआ क्यों न हो सब को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस पार्टी इस फैसले के खिलाफ सरकार का जमकर विरोध करेगी.

कुछ दिनों पहले ही पटवारी ने किसानों के मुद्दे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को घेरते हुये कहा था -

‘’आप (शिवराज) किसान को अपना भगवान कहते हैं, लेकिन आप अपने इस भगवान के साथ कर क्या रहे हैं? आपकी पिछली सरकार में किसानों पर गोलियां चलाई गईं, किसानों के बच्चों को जेल भेजा गया, टीकमगढ़ में किसानों को नंगा करके मारा गया. आपके राज में सबसे ज्यादा आत्महत्या किसानों ने की है. आपने सरकार में आते ही किसानों की कर्जमाफी योजना समाप्त कर दी, किसानों का कर्ज आपकी सरकार खा गई. कमलनाथ सरकार ने बिजली के बिल जो आधे किए थे, वह फिर आपकी सरकार ने बढ़ा दिए हैं जो किसानों के लिए सिर दर्द बने हुए हैं. किसानों पर यातनाएं बढ़ गई है.’’  
  • लगभग 16 लाख किसानों से 1 करोड़ 29 लाख 34 हजार मीट्रिक टन से अधिक गेहूं बेचा. ये पूरे देश में हुई गेहूं खरीद का एक तिहाई है.
  • केंद्र सरकार द्वारा फसल वर्ष 2019-20 (जुलाई-जून) में तैयार गेहूं की फसल के लिए तय न्यूनतम समर्थन मूल्य 1925 रुपये प्रति क्विंटल पर सरकारी एजेंसियां किसानों से गेहूं खरीदती है.
  • केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, इस खरीद सीजन में 42 लाख किसानों से 382 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया है.
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कृषि बिल में प्रावधान एकतरफा: आनंद जाट

मप्र युवा कांग्रेस के प्रवक्ता और युवा किसान आनंद जाट का कहना है कि खेती से जुड़े कानूनों में प्रस्तावित संशोधन एकतरफा हैं. ये अन्नदाताओं के नहीं बल्कि भारतीय कृषि पर बड़े कॉर्पोरेट और विदेशी कंपनियों के कब्जे की साजिश है. जाट ने कहा, "ये अध्यादेश बिना किसान संगठनों से चर्चा किये लागू कर दिये गये हैं."

भारतीय जनता पार्टी और सरकार कह रही है इससे किसानों को अधिक विकल्प उपलब्ध होंगे दूसरी तरफ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को मान्यता प्रदान की गई है. जिसमें किसान लिखित अनुबंध के आधार पर किसान अपने ही खेत में मजदूर बनकर रह जाएगा. वह एक उद्यमी को अपनी उपज बेचने के लिए बाध्य हो जाएगा. ऐसे में बाजार का भाव क्या हो? इस पर किसान का नियंत्रण नहीं होगा, विकल्प नहीं होंगे. कार्पोरेट ने यदि उपज खरीदने से इनकार कर दिया तो क्या किसान अदालत के चक्कर लगाता रहेगा?  
आनंद जाट, मप्र युवा कांग्रेस के प्रवक्ता और युवा किसान

आनंद जाट का कहना है, "जमाखोरी की सीमा खत्म करके कालाबाजारी को वैधता प्रदान की गई है. इससे किस प्रकार किसानों और आम उपभोक्ताओं का भला होगा यह समझ से परे है." जाट ने स्थानीय सांसद से इस मुद्दे पर कई सवाल भी किये हैं. पत्र जारी कर कहा कि यदि आपने उचित माध्यम से उत्तर नहीं दिया तो किसान विरोधी कानूनों को बिना किसानों से चर्चा करने के कारण विदिशा संसदीय क्षेत्र के युवा किसान आपके खिलाफ सत्याग्रह करेंगे.

कांग्रेस इन मुद्दों को उठा रही

  • द फार्मर्स प्रोडयूस ट्रैड एंड कॉमर्स (प्रमोशन एंड फैसिलिटेशन) अध्यादेश 2020 जिसका उद्देश्य मंडियों के एकाधिकार को समाप्त करना है. मंडी खत्म करने से कृषि उपज खरीद की पूरी व्यवस्था नष्ट हो जाएगी.
  • कृषि सेंसस 2015 के अनुसार देश में 86 प्रतिशत किसानों के पास 5 एकड़ से कम भूमि है. यह 86 प्रतिशत किसान क्या अपने माल को कहीं भी ले जाने में सक्षम है? मंडी व्यवस्था खत्म होने से सीधा प्रहार इन्हीं किसानों व इनसे जुडे़ मजदूरों पर होगा.
  • दूसरा कानून अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम है जिसमें खाद्य कृषि उत्पाद जैसे, चावल, दाल, गेहूं, फल-सब्जी आदि की संग्रहण सीमा को समाप्त कर दिया गया है. इससे न तो किसान को फायदा होगा और न ही देश के आम उपभोक्ता को. किसान के पास तो अपनी उपज को ही संग्रहित करने की आर्थिक क्षमता नहीं है. ऐसे में सीधा अर्थ यह है कि जमाखोरी के लिए सीमा हटाने का फैसला खाद्य उत्पादों का व्यापार करने वाले बड़े कार्पोरेट के हित में है और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए इस कानून में बदलाव किया गया है.
  • तीसरा, एक नया कानून एफएपीएएफएस (फार्मर एम्पावरमेंट एंड प्रोटेक्शन एग्रीमेंट ऑन प्राइस एश्यूरेंस एंड फार्म सर्विसेज) अध्यादेश 2020 बनाया गया है. इस अध्यादेशी कानून के माध्यम से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (अनुबंध खेती) को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है ताकि बड़े व्यावसायी और कंपनियां अनुबंध के जरिये खेती-बाड़ी के विशाल भू-भाग पर ठेका आधारित खेती कर सके. वास्तव में यह किसान को ‘ठेका प्रथा’ में फंसाकर अपनी ही जमीन पर मजदूर बनाने की कोशिश है. क्या 5 एकड़ से कम जमीन का मालिक गरीब किसान बड़ी-बडी कंपनियों से खरीद फरोख्त का कांट्रैक्ट करने में सक्षम होंगे?

उत्तर प्रदेश में भी राजनीति गरम

कृषि बिलों के विरोध में यूपी में किसान प्रदर्शन करने सड़क पर उतर रहे हैं. किसानों का कहना है कि इन बिलों से उनका नुकसान है और ये सिर्फ कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाएंगे. उत्तरप्रदेश के मेरठ में तीन कृषि अध्यादेशों के विरोध में सैकड़ों किसानों ने जमकर हंगामा किया. उत्तर प्रदेश में किसानों के एक समूह ने दिल्ली-यूपी सीमा पर केंद्रीय कृषि अध्यादेशों का विरोध करने के लिए दिल्ली बॉर्डर तक मार्च किया.

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश सचिव अंशु तिवारी ने हाल ही में कहा कि वर्ष 2022 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस छात्रों, बेरोजगारों, किसानों और व्यापारियों के मुद्दों को लेकर जनता के बीच मुखर होकर जाएगी. ट्विटर पर अखिलेश यादव ने भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि जवान और किसान, दोनों ही खिलाफ हो चुके हैं इसलिए अब दंभी सत्ता के चार दिन ही बचे हैं. अखिलेश यादव ने शायराना अंदाज में लिखा, ''जब जवान भी खिलाफ, किसान भी खिलाफ, तब समझो दंभी सत्ता के दिन अब बचे हैं चार.''

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