Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019झोपड़ी में रहने वाले किसान की बेटी बनी जेल सुपरिटेंडेंट

झोपड़ी में रहने वाले किसान की बेटी बनी जेल सुपरिटेंडेंट

माता-पिता खुद नहीं पढ़ पाए, तो उन्होंने अपनी बेटी पढ़ाने का किया दृढ़ निश्चय

क्विंट हिंदी
भारत
Updated:
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में आदिवासी किसान राधू सिंह चौहान की बेटी है रंभा
i
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में आदिवासी किसान राधू सिंह चौहान की बेटी है रंभा
(फोटो: IANS)

advertisement

किसी ने सच कहा है कि प्रतिभा और मेहनत के आग मुश्किलों की कोई हैसियत नहीं रह जाती. मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के झोपड़ी में रहने वाले आदिवासी किसान राधू सिंह चौहान की बेटी रंभा ने इस कहावत को सही साबित कर दिखाया है.

राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षा में सहायक जेल अधीक्षक के पद के लिए रंभा का सेलेक्शन हो गया है. रंभा के पिता राधु सिंह चौहान झाबुआ के नवापाड़ा गांव के निवासी हैं. उनका परिवार झोपड़ी में रहता है. उनका गांव जिला मुख्यालय से महज 18 किलोमीटर दूर है. इस इलाके में आदिवासी समाज के लोग अधिकतर अपनी बेटियों की कम उम्र में ही शादी कर देते हैं.

मेरे माता-पिता ने पढ़ाई को सबसे ज्यादा महत्व दिया है. तभी आज मेरा पीएससी परीक्षा 2017 में सहायक जेल अधीक्षक के पद पर सेलेक्शन हो पाया है.
रंभा, मध्य प्रदेश

पिता राधूसिंह बताते हैं कि उन्होंने बेटी को पढ़ाने का संकल्प लिया था, उसके बाद बेटी को लगातार मोटिवेट करते रहे. वहीं रंभा की मां श्यामा कहती हैं कि वह खुद नहीं पढ़ पाईं, इसका उन्हें हमेशा हमेशा अफसोस रहता है. इसीलिए उन्होंने रंभा से कहा था, "तुम पढ़ाई पूरी करना और जब तक कोई नौकरी नहीं मिल जाए, तब तक रुकना मत."

रंभा अपने माता-पिता के मोटिवेशन के कारण अपने लक्ष्य की ओर बढ़ती रही.

बचपन से थी पढ़ने की ललक

रंभा ने अपनी शुरुआती पढ़ाई नवापाड़ा गांव के सरकारी स्कूल से की थी. गांव में आगे की पढ़ाई की सुविधा नहीं थी, तो वह 18 किलोमीटर दूर झाबुआ रोजाना पढ़ने जाती थी. इसके लिए उसे रोज डेढ़ किलोमीटर तक पैदल भी चलना पड़ता था, क्योंकि गांव तक कोई बस आती नहीं थी.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

रंभा के पिता राधू और मां श्यामा चौहान ने कहा कि वह खुद पढ़ाई नहीं कर पाए, इसका मलाल मन में हमेशा रहता था. लेकिन सोच रखा था कि बेटियों को जरूर पढ़ाएंगे. इस समय उनके गांव में त्योहार जैसा माहौल है. गांव के लोग और रिश्तेदार बधाई देने रंभा के घर पहुंच रहे हैं और रंभा के साथ-साथ उसके माता-पिता को भी शुभकामनाएं दे रहे हैं.

रंभा माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली महिला बछेंद्री पाल से काफी प्रभावित हैं. वह गांव की लड़कियों से भी कहती है, "जो मैं कर सकती हूं, वो आप क्यों नहीं कर सकतीं. मेहनत करो, सफलता जरूर मिलेगी."

ये भी पढ़ें- झाड़ू-पोछा, चक्की- राजस्थान शिक्षा विभाग का महिलाओं को फिटनेस मंत्र

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 29 Dec 2017,09:39 PM IST

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT