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कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच अब अगले दौर की बातचीत होगी. केंद्रीय कृषि मंत्रालय की तरफ से किसानों को कहा गया है कि वो 30 दिसंबर दोपहर 2 बजे बैठक के लिए आएं. पहली बैठकों की ही तरह इस बार भी विज्ञान भवन में केंद्र और किसान नेताओं की बातचीत होगी. इससे पहले किसानों ने सरकार को जवाब में बताया था कि वो 29 दिसंबर सुबह 11 बजे बैठक के लिए तैयार हैं. अब सरकार ने इस प्रस्ताव का जवाब दिया है.
केंद्र सरकार की तरफ से किसानों को कहा गया है कि,
अब सरकार की इस चिट्ठी में क्या लिखा, ये तो हमने आपको बता दिया. लेकिन इससे पहले जब सरकार की चिट्ठी के जवाब में किसानों ने तारीख और समय बताया था तो उसमें कई बातों का जिक्र हुआ. किसानों ने सरकार को बताया कि वो अपनी पूरी ताकत उनके आंदोलन को कमजोर करने और उसे गलत साबित करने पर न लगाए. साथ ही सबसे जरूरी बात ये थी कि किसानों की कृषि कानूनों को खत्म करने वाली मांग अब तक कायम है. चिट्ठी की शुरुआती दो शर्तों में साफ कहा गया था कि बैठक के दौरान कृषि कानूनों को खत्म करने को लेकर आगे की रणनीति पर बातचीत होगी. साथ ही दूसरी शर्त ये थी कि एमएसपी को कानूनी गारंटी देने को लेकर चर्चा की जाएगी.
किसानों की इन शर्तों के बाद गेंद पूरी तरह से केंद्र सरकार के पाले में थी. लेकिन अब केंद्र ने अपनी तरफ से भी बातचीत की तारीख और समय बता दिया है. अब आप सोच रहे होंगे कि, किसानों की कानून खत्म करने की शर्त के बावजूद सरकार ने हामी कैसे भर दी? इसके लिए एक बार फिर केंद्र की इस चिट्ठी में लिखी बातों पर गौर करना होगा. केंद्र सरकार की तरफ से चिट्ठी में कुछ शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. जिनमें एक लाइन ये है- भारत सरकार भी साफ नीयत और खुले मन से प्रासंगिक मुद्दों के तर्कपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध है. यहां "प्रासंगिक" और "तर्कपूर्ण" पर गौर कीजिए, मतलब साफ है कि जिन बिंदुओं पर आपत्ति है उनके तर्कपूर्ण समाधान पर ही बात होगी. जबकि किसानों से इन्हीं शब्दों में पहले भी बातचीत सरकार कर चुकी है.
कुल मिलाकर अब इस बातचीत के बाद भी कोई हल निकलता हुआ फिलहाल नजर नहीं आ रहा है. अब आपको कुछ और तथ्य बताते हैं, जिनसे साफ है कि केंद्र सरकार अपने इन कानूनों पर पीछे नहीं हटने वाली है. केंद्रीय कृषि मंत्री रोजाना सरकार और कानून समर्थक किसान संगठनों से मुलाकात कर रहे हैं. ऐसा कोई भी दिन नहीं गुजर रहा, जब मंत्री ट्वीट न करते हों कि उन्हें कृषि कानूनों पर भरपूर समर्थन मिल रहा है और किसान खुश हैं. यानी जो बात सरकार खुद कहना चाहती है वो अब किसानों के हवाले से किसानों को ही बताई जा रही है.
सोमवार 28 दिसंबर को भी एक बड़े ऑडिटोरियम में किसान संगठनों से कृषि मंत्री ने मुलाकात की. इसके बाद उन्होंने ट्विटर पर लिखा,
तो जब खुद कृषि मंत्री रोजाना किसानों के हवाले से ये बता रहे हैं कि कृषि कानूनों को किसी भी हाल में वापस नहीं लिया जाना चाहिए और सरकार को किसी दबाव में नहीं आना चाहिए तो ये साफ है कि किसानों की पहली शर्त तो किसी भी हाल में पूरी नहीं होगी. लेकिन किसानों का कहना है कि जब तक कानून वापसी नहीं होती है उनकी घर वापसी भी नहीं होगी. इसीलिए अब इस 7वें दौर की बैठक का नतीजा भी अभी से साफ नजर आ रहा है. हालांकि सरकार अगर एमएसपी को लेकर कानूनी गारंटी की बात करती है तो किसान थोड़े नरम जरूर पड़ सकते हैं.
वहीं इस बातचीत को लेकर भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि अगर सरकार ने बैठक में उनकी बात नहीं मानी तो वो दिल्ली में ही बैठे रहेंगे. उन्होंने कहा, "हम बैठक में शामिल होंगे और जो प्रस्ताव हमने रखे हैं, उस पर बात करेंगे. वहीं बात ठीक-ठाक रहती है तो अन्य मुद्दे भी बैठक में बताएंगे. बिल वापस नहीं लेंगे तो फिर बात करेंगे."
अब इस किसान आंदोलन को लेकर विपक्ष भी लगातार बीजेपी सरकार पर हमलावर है. एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि सरकार को इस आंदोलन को गंभीरता से लेना चाहिए. अगर ऐसा नहीं हुआ तो इसके बारे में सोचना होगा. उन्होंने कहा,
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