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किसान आंदोलन को लेकर अब सरकार का रुख साफ हो चुका है, सरकार किसी भी हाल में कृषि कानूनों को वापस नहीं लेने वाली है. इसके लिए कृषि मंत्री की बड़ी प्रेस कॉन्फ्रेंस के अलावा कई मोर्चों पर तैयारी भी शुरू हो चुकी है. वहीं दूसरी तरफ किसानों ने भी ठान लिया है कि वो पीछे नहीं हटेंगे और दिल्ली को पूरी तरह चोक करने की चेतावनी दी जा रही है. यहां तक कि मामला अब सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. जानिए किसान आंदोलन को लेकर कुछ ऐसे ही बड़े अपडेट.
सबसे पहले आपको किसानों के मौजूदा रुख के बारे में बता देते हैं. किसान अब किसी भी हाल में दिल्ली से जाने के लिए तैयार नहीं हैं. किसानों ने आगे की पूरी तैयारी भी कर ली है. शनिवार 12 दिसंबर को किसानों ने दिल्ली-जयपुर हाईवे, आगरा-दिल्ली हाईवे बंद करने, बीजेपी नेताओं के घर-दफ्तरों का घेराव, अडानी-अंबानी के खिलाफ प्रदर्शन और ऐसे ही कई कार्यक्रम रखे हैं. साफ कहा जा रहा है कि धीरे-धीरे दिल्ली की सीमाओं को पूरी तरह सील कर दिया जाएगा. किसानों का कहना है कि अगर सरकार ने प्रस्ताव के जरिए माना है कि कानून में इतनी खामिया हैं तो फिर इन्हें वापस क्यों नहीं लिया जा रहा है. साथ ही एमएसपी को लेकर भी कानून की मांग की जा रही है.
किसानों और कृषि कानूनों का ये मसला अब एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. हालांकि ये पहली याचिका नहीं है. इससे पहले भी इन कानूनों के खिलाफ याचिकाएं दायर हो चुकी हैं. लेकिन अब किसान संगठन बीकेयू (भानू) ने याचिका दायर कर कहा है कि ये तीनों कानून किसान विरोधी हैं, इसीलिए इन्हें वापस लिया जाना चाहिए.
अब सरकार की बात करते हैं. सरकार का रुख कानूनों पर ये है कि वो संशोधन के लिए तैयार हैं, लेकिन कानून वापस नहीं लिए जाएंगे. केंद्रीय कृषिमंत्री ने साफ किया है कि वो अब भी फेरबदल के लिए तैयार हैं, यानी जिन मामलों में किसानों को समस्या है, उन्हें कानून से हटा दिया जाएगा या फिर नए विकल्प दिए जाएंगे. केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि वो सुधारों के लिए तैयार हैं और किसानों को अपना आंदोलन वापस लेना चाहिए. क्योंकि इससे उन्हें खुद और दिल्ली की जनता को भी समस्या हो रही है.
किसान आंदोलन के पहले खालिस्तान से तार जोड़े गए थे, आज भी कई खालिस्तानी झंडे वाली फेक तस्वीरें आपको सोशल मीडिया पर तैरती नजर आ जाएंगीं. लेकिन अब इस आंदोलन से एक और विवाद जुड़ गया है. टिकरी बॉर्डर पर किसान पिछले दो हफ्ते से प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन इसी जगह एक पोस्टर लगाया गया, जिसमें देशद्रोह के आरोप में जेल गए शरजील इमाम और उमर खालिद समेत कई लोगों की तस्वीरें लगाई गई हैं और इनकी रिहाई की मांग की गई है.
अब इन पोस्टरों के जरिए एक बार फिर सरकार को आंदोलन पर सवाल खड़े करने का मौका मिल गया.
बता दें कि किसान आंदोलन को लेकर हर प्रदर्शन की तरह अब जमकर गलत खबरें फैलाई जा रही हैं. कई फेसबुक पेज पर किसान आंदोलन को कभी कांग्रेस का आंदोलन बताया जा रहा है तो कुछ लोगों ने किसानों को ही नकली करार दे दिया है. कुल मिलाकर आंदोलन को कमजोर करने के लिए सोशल मीडिया पर भी जोरदार अभियान छिड़ा है.
अब भले ही किसानों के इस आंदोलन को अब कई अलग-अलग रंग दिए जा रहे हों, लेकिन विपक्ष लगातार सरकार पर दबाव बना रहा है. विपक्ष के एक्टिव होने के बाद सरकार ये भी कह रही है कि उसने किसानों के आंदोलन को हाईजैक कर लिया है. इसी बीच राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपने वाले एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि सरकार को किसानों के सब्र का इंतेहान नहीं लेना चाहिए. उन्होंने सरकार को चेताया कि अगर समय रहते फैसला नहीं लिया गया तो दिल्ली और उसकी सीमाओं पर चल रहा ये आंदोलन और ज्यादा फैल सकता है.
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