Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019देश के किसान क्यों कर रहे प्रदर्शन, 3 अध्यादेशों से क्या परेशानी

देश के किसान क्यों कर रहे प्रदर्शन, 3 अध्यादेशों से क्या परेशानी

कृषि क्षेत्र से जुड़े अध्यादेशों को लेकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना में किसानों के प्रदर्शन

वैभव पलनीटकर
भारत
Updated:
किसान संगठनों का देश में अलग-अलग जगह विरोध प्रदर्शन
i
किसान संगठनों का देश में अलग-अलग जगह विरोध प्रदर्शन
(फोटो- क्विंट हिंदी)

advertisement

10 सितंबर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में किसानों का बड़ा प्रदर्शन देखने को मिला जहां भारी तादाद में किसान सरकार के 5 जून को लाए गए तीन नए अध्यादेशों का विरोध करते हुए सड़क पर उतर आए. किसानों ने कुरुक्षेत्र के पिपली में नेशनल हाईवे को जाम कर दिया. भारतीय किसान यूनियन समेत कुछ और किसान संगठनों इस विरोध प्रदर्शन में हिसा लिया. लेकिन इसके बाद प्रदर्शन कर रहे किसानों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया और किसानों की पिटते हुए कई सारी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं.

किसानों ने 10 सितंबर को कुरुक्षेत्र में रैली निकाली(फोटो: Twitter/ @CaptAjayYadav)
कृषि क्षेत्र से जुड़े ही इन तीन अध्यादेशों को लेकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना में भी किसानों के प्रदर्शन देखने को मिले हैं. 14 सितंबर को अध्यादेश के विरोध में प्रदर्शन करने जा रहे भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं को दिल्ली से सटे अलग-अलग राज्यों की सीमा पर रोक लिया गया.

किसान प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में घुसने नहीं दिया गया

14 सितंबर को दिल्ली के जतंर मतंर पर प्रदर्शन करने निकले किसानों को सबसे पहले हरियाणा से अंबाला, कुरुक्षेत्र और करनाल के किसानों को नरेला थाने पर, उत्तर प्रदेश से गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, मेरठ ,मुजफ्फरनगर शामली के किसानों को यूपी गेट पर गाजीपुर, बिजनौर वह उत्तराखंड से पहुंचे किसानों को भी यूपी गेट पर रोक दिया गया. लेकिन भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओं ने यूपी गेट पर ही धरना प्रदर्शन शुरू कर दिया और सड़कों पर ही बैठकर नारेबाजी की.

किसान क्यों खफा?

केन्द्र सरकार द्वारा 5 जून को लाए गये अध्यादेशों का देश के कई किसान विरोध कर रहे हैं. वहीं सरकार इन अध्यादेशों को 'एक देश एक बाजार' के रूप में कृषि सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम बता रही है. किसानों के संगठन भारतीय किसान यूनियन का मानना है कि-

किसानों को इन कानूनों के कारण कंपनियों का बंधुवा बन जाने का खतरा है. कृषि में कानून नियंत्रण, मुक्त विपणन, भंडारण, आयात-निर्यात, किसान हित में नहीं है. इसका खामियाजा देश के किसान विश्व व्यापार संगठन के रूप में भी भुगत रहे हैं. देश में 1943-44 में बंगाल के सूखे के समय ईस्ट इंडिया कम्पनी के अनाज भंडारण के कारण 40 लाख लोग भूख से मर गये थे.
भारतीय किसान यूनियन

क्या कहते हैं तीनों अध्यादेश-

1. कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश

इस अध्यादेश के तहत किसान अपनी तैयार फसलों को कहीं भी किसी भी व्यापारी को बेच सकता है. अपने क्षेत्र की APMC मंडी में बेचने की मजबूरी नहीं होगी. सरकार इसे एक देश एक बाजार के रूप में सामने रख रही है.

2. मूल्य आश्वासन पर किसान समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश

इस अध्यादेश के तहत मोटे तौर पर किसान को अपनी फसल के मानकों को तय पैमानों के आधार पर फसलें बेचने का कॉन्ट्रैक्ट करने की मंजूरी देता है. माना जा रहा है कि इससे किसान का जोखिम कम हो सकता है.

3. आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन

साहूकार और व्यापारी पहले सस्ती दरों पर फसलों को खरीदकर भारी तादाद में भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे. सरकार ने इस कालाबाजारी को रोकने के लिए 1955 में आवश्यक वस्तु अधिनियम बनाया था. लेकिन अब नए संशोधन के तहत इसमें से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल और आलू जैसे कृषि उत्पादों को हटा लिया गया है. लेकिन शर्त ये रखी गई है कि राष्ट्रीय आपदा और आपातकाल की स्थिति में लागू नहीं होगा. इसके बाद से व्यापारी जितना चाहे उतने माल का भंडारण कर सकेंगे.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने क्विंट को बताया कि उनकी मूल चिंता MSP के सिस्टम में छेड़छाड़ को लेकर है. उनकी मांग है कि 'सरकार को समर्थन मूल्य पर कानून बनाना चाहिए. इससे बिचौलियों और कम्पनियों द्वारा किसान का किया जा रहा अति शोषण बन्द हो सकता है और इस कदम से किसानों की आय में वृद्धि होगी. समर्थन मूल्य से कम पर फसल खरीदी को अपराध की श्रेणी में रखा जाए'

सरकार की दलील

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सुखबीर सिंह बादल को पत्र लिखकर कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश के बारे में बताया कि इससे सिर्फ APMC मंडी के क्षेत्र के बाहर फसलें खरीदने बेचने की अनुमति मिलेगी. ये एक तरह से किसानों के लिए वैकल्पिक मार्केटिंग चैनल को तैयार करेगा. इसके साथ-साथ APMC मंडियां भी काम करती रहेंगी. अब किसानों के पास विकल्प होगा कि वो जहां चाहें वहां अपनी फसलें बेच सकेंगे. इससे ये भी होगा कि APMC को अपनी दक्षता में सुधार करने के लिए प्रतियोगिता भी मिलेगी.

किसानों को MSP सिस्टम खत्म होने का डर

इंडियन एक्सप्रेस में हरीश दामोदरन की रिपोर्ट के मुताबिक किसानों के इस प्रदर्शन के पीछे 2 चीजें हैं. पहला वो किसान जो APMC की मोनोपोली पर निर्भर है वो इन अध्यादेश से नाराज हैं. उनका मानना है कि इस नई व्यवस्था के आने के बाद सरकारी MSP खरीदी की प्रक्रिया खत्म कर दी जाएगी. हालांकि अध्यादेश में प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष तौर पर इस तरह की कोई बात नहीं कही गई है कि इस नए सिस्टम के बाद MSP आधारित सरकारी खरीद को खत्म कर दिया जाएगा.

किसान नेताओं का मानना है कि इस अध्यादेश के लाने के पीछे नीयत ये है कि शांता कुमार की हाई लेवल कमेटी की सिफारिशों को लागू किया जाए. इस पैनल ने 2015 में अपनी रिपोर्ट सबमिट की थी और कहा था कि फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (FCI) को सारी खाद्य संरक्षण की जिम्मेदारी पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, ओडिशा और आंध्र प्रदेश की सरकारों को दे देना चाहिए. कहा जा रहा है कि केंद्र खरीदी और भंडारण से अपना हाथ खींचने की कोशिश कर रही है.

राज्यों को भी हो सकता है टैक्स का नुकसान

विरोध का एक स्वर राज्य सरकारों और मंडियों में काम करने वाले आढ़तियों से उठ रहा है. जैसे सिर्फ पंजाब राज्य में काम करने वाले 28 हजार आढ़ती हैं. जो तैयार फसलों की तुलाई, भराई, सफाई, लोडिंग, अनलोडिंग, बोली लगाने का काम करते हैं. इन आढ़तियों को भी इसमें कमीशन मिलता है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अध्यादेश के जरिए जो नया सिस्टम आ रहा है उससे इनकी तय कमाई पर असर पड़ेगा. राज्यों की भी इन मंडियों में लगने वाली ड्यूटी से अच्छी खासी कमाई होती है. तो इस तरह से राज्यों को टैक्स का नुकसान होगा.

'खुले बाजार की नीति भारत के लिए नहीं बनी'

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा बताते हैं कि 'कृषि क्षेत्र में जो हम खुले बाजार की नीति पर काम कर रहे हैं. ये हम अमेरिका और यूरोप की नकल करने की कोशिश कर रहे हैं. अमेरिका में एग्रीकल्चर सेक्टर में खुले बाजार की नीति बुरी तरह फेल हो चुकी है. आज हालात ये हैं कि अमेरिका में पिछले 6-7 दशकों से ओपन मार्केट चल रहा है. वहां के देश भी एग्रीकल्चर संकट से जूझ रहे हैं. किसानों को सिर्फ और सिर्फ सरकारी मदद ही बचा रही है.

(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)
खुले बाजार की नीति जब अमेरिकी एग्रीकल्चर में काम नहीं कर पाई तो भारत में कैसे काम करेगी. खुले बाजार की नीति भारतीय कृषि तंत्र के लिए नहीं बनी है.
देविंदर शर्मा, कृषि विशेषज्ञ

'ये कैसा एक देश. एक बाजार?'

कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा सवाल उठाते हैं कि "सरकार कह रही है APMC में अलग मार्केट होगा और बाहर अलग मार्केट होगा तो ये तो 'एक देश दो बाजार' हो गया. फिर सरकार क्यों एक देश एक बाजार कह रही है?"

(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)
भारत में 86% किसान 2 हेक्टेयर वाले किसान है, ये किसी कहीं दूसरी जगह जाकर अपनी फसल नहीं बेच सकते तो फिर नीति किसके लिए आ रही है. सरकार जो अध्यादेश लेकर आई है, इससे देश की मंडियां खत्म हो जाएंगी. जब मंडियां खत्म हो जाएंगी तो MSP भी खत्म हो जाएगा. पिछले 8-9 साल से MSP को खत्म करने की कोशिश हो रही है. सरकार ने भंडारण की सीमा हटाकर जमाखोरी को कानूनी बना दिया है. अब सरकार को नहीं पता होगा किसने कितना स्टोर किया है.
देविंदर शर्मा, कृषि विशेषज्ञ
(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)

सभी किसान संगठन एकजुट नहीं

ऐसा नहीं है कि सारे किसान संगठन इन अध्यादेशों के विरोध प्रदर्शन को लेकर एक जुट हों. महाराष्ट्र के किसान नेता और दो बार से सांसद राजू शेट्टी का कहना है कि प्रोसेसिंग कंपनियां, रिटेलिंग कंपनियां और एक्पोर्टर्स अगर खाद्य संरक्षण में निवेश करते हैं तो ये अच्छा ही होगा. अभी किसानों को मंडी तक अपना माल ले जाने के लिए खर्च करना होता है, लेकिन नई व्यवस्था आने के बाद ये खर्च भी बचेगा.

जो किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं उनका कहना है कि जिन किसानों के लिए ये कानून बनाया गया है उन संगठनों से चर्चा किए बिना ये अध्यादेश लाया गया है. साथ ही जिस जल्दबाजी से इस कोरोना वायरस संकट के दौरान ही इससे सरकार और किसानों के बीच विश्वास टूटा है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 16 Sep 2020,07:42 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT