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भगत सिंह, आजाद, सुखदेव...सिंघु बॉर्डर पर कई हिस्सों का ‘नामकरण’

किसान आंदोलन में गुरुद्वारा, पुस्तकालय, मॉल, अस्पताल, लंगर और जिम लगाए गए हैं.

क्विंट हिंदी
भारत
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किसान आंदोलन के 47 दिन
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किसान आंदोलन के 47 दिन
(फाइल फोटो: Altered by Quint)

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सिंघु बॉर्डर पर विरोध कर रहे किसानों ने देश के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने का नया तरीका अपनाया है. 10 जनवरी को सिंघु बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों ने कुंडली राजमार्ग पर अलग-अलग इलाकों के लिए नए नाम रखे हैं. ये नाम भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखे गए हैं. प्रदर्शन स्थल के मुख्य स्टेज के पास एक हरे रंग का साइन बोर्ड भी लगाया गया है. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि उन्होंने ये बोर्ड आंदोलन के मकसद को समझाने के लिए लगाया है.

इलाके को किसानों ने 7 हिस्सों में बांटा

विरोध प्रदर्शन का इलाका दस किलोमीटर से ज्यादा लंबा है. जिसे किसानों ने 7 हिस्सों में बांट दिया है. इन इलाकों का सुखदेव, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, करतार सिंह सराभा जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रखा गया है.

पूरे विरोध स्थल में सबसे भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों में से एक, जो मुख्य मंच से केसेल ग्रांड मॉल तक फैला हुआ है, उस इलाे का नाम बदलकर 17 वीं सदी के सिख योद्धा बंदा सिंह बहादुर के नाम पर रखा गया और इसे बंदा सिंह बहादुर नगर कहा जा रहा है. इसी तरह केसेल मॉल से एचपी पेट्रोल पंप तक के पैच को सरदार भगत सिंह नगर नाम दिया गया है.

किसान आंदोलन में कभी लाइब्ररी तो कभी जिम जैसी अलग-अलग चीजें बनाई गई हैं. और अब इलाकों का नाम बदला गया है.

बता दें कि कुंडली सीमा पर पिछले 47 दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों और समाजिक संगठनों ने अपना खुद का गुरुद्वारा, पुस्तकालय, मॉल, अस्पताल, लंगर और जिम लगाए हैं. 

20 साल के जगजीत सिंह, जो कि एक निहंग सिख हैं उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए कहा कि जब तक कृषि कानूनों को रद्द नहीं किया जाता है, तब तक प्रदर्शनकारी किसान सिंघु सीमा पर रहेंगे. उन्होंने कहा,

“यही वजह है कि हमने अपने लीडर की याद में इन इलाकों का नाम तय किया है.”
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‘ये एक सांस्कृतिक आंदोलन है’

इसे प्रतीकात्मक बताते हुए, संयुक्त किसान मोर्चा (40 से अधिक किसान समूहों का एक संगठन) के मीडिया संयोजक, हरिंदर सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि जारी विरोध केवल किसानों का आंदोलन नहीं है, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन भी है. उन्होंने कहा, "हमें अपने स्वतंत्रता सेनानियों और नेताओं की विरासत को याद रखने की जरूरत है, यही कारण है कि हाईवे के अलग-अलग प्वाइंट को उनके नाम दिए गए हैं,"

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