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जिस समय यह लिखा जा रहा है, उस समय भारतीय संसद में मानो बमबारी हो रही है.
ना-ना, किसी विधेयक या अध्यादेश पर हंगामा नहीं हो रहा है. ये सब उस किताब को लेकर हो रहा है जिससे हमारे गणतंत्र की रुपरेखा तय होती है.
भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया. वर्ष 1949 में इसी दिन देश के गणतंत्र को अपनाया गया था, बाद में 26 जनवरी 1950 को यह प्रभाव में आया और वह दिन गणतंत्र दिवस के रुप में मनाया गया.
प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट किया कि नवंबर 26 को संविधान दिवस के रूप में मनाने के पीछे उद्देश्य सिर्फ संविधान के प्रति जागरुकता फैलाना ही नहीं, बल्कि लोगों को डॉ. अंबेडकर के बारे में जागरुक करना भी है.
पर, क्या आप जानते हैं कि दुनिया के सबसे विस्तृत और सबसे अधिक शब्दों वाले संविधान के निर्माता डॉ. अंबेडकर इस संविधान को जला देना चाहते थे.
देश में एक गवर्नर की शक्तियां बढ़ाने पर हो रही चर्चा के दौरान डॉ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान संशोधन का पुरजोर समर्थन किया.
स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में अर्थशास्त्र की सह-प्राध्यापिका श्रुति राजगोपालन भारतीय संविधान में 1950-78 के दौरामन हुए संशोधनों पर बात करते हुए डॉ. अंबेडकर की नाराजगी के बारे में भी बात करती हैं.
दो साल बाद, 19 मार्च 1955 को राज्यसभा सदस्य डॉ. अनूप सिंह ने डॉ. अंबेडकर के बयान को एक बार फिर उठाया था.
चौथे संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान उन्होंने अंबेडकर को याद दिलाया, “पिछली बार आपने कहा था कि आप संविधान को जला देंगे.”
संविधान को लेकर हजारों मीडिया रिपोर्ट्स और दृष्टिकोण छापे जा चुके हैं. और फिर हमारे राजनेता भी हैं, पर आज तक किसी ने भी आज तक यह जानने की जरूरत नहीं समझी कि आखिर हमारे संविधान निर्माता ने ऐसा क्यों कहा.
हम आपसे ही यह जानना चाहते हैं कि अगर आप वाकई किसी को याद रखना चाहते हैं, उसे सम्मानित करना चाहते हैं तो क्या बस आप उनकी याद में बस एक उत्सव मनाएंगे या फिर उनकी कही हुई बातों को याद रखते हुए उन्हें अमल में लाएंगे?
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